वो रोज अनशन करता है
फुटपाथ पर
झोपड़ों में
जंगलों
दुरान्चलों
और
तुम्हारी गली में भी
भूख
और
गरीबी के खिलाफ
जो
रची
थोपी
गयी है
पीढ़ी दर पीढ़ी
उनके
और
उनकी
संतानों द्वारा
इन पर
इनके
बाप
दादाओं पर
वो
तभी से
अनशन पर है
उसकी
मंशा है
कि
कोई भी
कभी भी
तुड़वा सकता है
उसका
अनिश्चितकालीन
आमरण अनशन
देकर
एक टुकड़ा
बासी रोटी
सड़ा अनाज
या
जूठन ही
मानवता के
उत्सवी जनाजों की
उड़ती उड़ती
अफवाह है
अब
इसका भी
बड़ा बाजार है
वो मायूस तो है ही
मरने को है
ये जानकर कि
भूख
अब डर नहीं
साधन बन गयी है
डराने का
वो जो
नगर चौक पे
गद्दों पर पसरा
भीड़ से घिरा
अनशना रहा है
कुंवर है
ऊँचे घराने का |
अनशन
अब सीढ़ी है
स्वार्थ की
इससे निबटना
जानती है
सामंती सत्ता
वो डरती नहीं
आकलन करती है
भीड़ में
विरोधी वोटों का
उसका
आमरण अनशन
हमेशा
सफल रहा है
मरण बन कर
उसके साथ ही
मिट जायेगी
भूख
गरीबी
और
नाकामियाँ
नाकारा
सरकार की |
vah
ReplyDeleteआपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा कल रविवार (14-05-2017) को
ReplyDelete"लजाती भोर" (चर्चा अंक-2631)
पर भी होगी।
--
सूचना देने का उद्देश्य है कि यदि किसी रचनाकार की प्रविष्टि का लिंक किसी स्थान पर लगाया जाये तो उसकी सूचना देना व्यवस्थापक का नैतिक कर्तव्य होता है।
--
चर्चा मंच पर पूरी पोस्ट नहीं दी जाती है बल्कि आपकी पोस्ट का लिंक या लिंक के साथ पोस्ट का महत्वपूर्ण अंश दिया जाता है।
जिससे कि पाठक उत्सुकता के साथ आपके ब्लॉग पर आपकी पूरी पोस्ट पढ़ने के लिए जाये।
हार्दिक शुभकामनाओं के साथ।
सादर...!
डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक