जैसे
तुम हो शुद्ध
शाकाहारी
और
गुज़र जाओ
व्यस्त
मच्छी बाजार से
और ऐसे ही
कभी
किसी एक दिन
जेठ की
जलती दोपहर में
कोई विमान
तुम्हे छोड़ आये
हरी भरी
बर्फीली
वादियों में
दिन वही था
तुम भी
फिर भी
फर्क था
कही बाहर
और भीतर में
कुछ टूट गया था
मच्छी बाजार में
और जुड़ गया था
वादियों में
बस एक बार
तोड़ कर देखो
इस जुड़ाव को
और
फिर वही शान्ति
अंतर में
गूंजती रहेगी
निरंतर
निराधार