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Thursday, July 1, 2010

सरस्वती-पुत्र, एक विडम्बना !

ये वक़्त भी
गुजर जाएगा
फिर नया कोई
दौर आयेगा |

तब लिखूंगा
कविता
देशकाल
और
समाज पर

मिल जाए
पुरस्कार ,
कुछ राशि ,
रोयल्टी ...वगैरह |

बिटिया का ब्याह
बेटे का ठौर
क्या
कवि की
कोई जिम्मेदारी नहीं ?

साहब !
आप तो
समझ ही नहीं सके
के क्यों
लिखते है
कवि छद्म नाम से ?

क्यों ?
कोई कवि
आगे नहीं चलता
किसी
जनांदोलन में ?

क्यों
प्रसंस्तिया ..
शोक / विरह गीत
और
श्रृंगार रत
रहता है सदा कवि ?

क्यों
उसके अश्रुओं से
नहीं धुलती
उसकी अपनी स्याही
या
क्यों नहीं जल उठत़ा
कागज़
उसकी ज्वलंत लेखनी से ?

क्यों
आखिर क्यों ?
सरस्वती-पुत्र कहलाता
बैठा है
हारा
नाकारा
निस्तेज
अपनी ही माया में
मस्त
सहता क्लेश ,
नियोजित कष्ट !!!