फिर कोई लोभ का रावण , साधू सा वेश धर वोट मांगता है |
शहीदों ने खिंची थी जो लक्ष्मण रेखा वो फिर लहू मांगती है ||
Tarun Kumar Thakur,Indore (M P)
"मेरा यह मानना है कि, कवि अपनी कविता का प्रथम पाठक/श्रोता मात्र होता है |"
Showing posts with label Rendering to Respected Kedar Ji. Show all posts
Showing posts with label Rendering to Respected Kedar Ji. Show all posts
क्रान्ति के पूर्व होती है छटपटाहट भीतर कही कोने में नक्कारखाने में तूती की तरह जैसे रात के अँधेरे में करते हो शोर ढेर सारे झींगुर मगर ... क्रान्ति नहीं होती लोग जागते है या जब अलसभोर हो या जब सिंह दहाड़ते है निकट , निपट, निर्भीक !