फिर कोई लोभ का रावण , साधू सा वेश धर वोट मांगता है |
शहीदों ने खिंची थी जो लक्ष्मण रेखा वो फिर लहू मांगती है ||
Tarun Kumar Thakur,Indore (M P)
"मेरा यह मानना है कि, कवि अपनी कविता का प्रथम पाठक/श्रोता मात्र होता है |"
Sunday, June 27, 2010
क्रान्ति !!! , कब ????
क्रान्ति के पूर्व होती है छटपटाहट भीतर कही कोने में नक्कारखाने में तूती की तरह जैसे रात के अँधेरे में करते हो शोर ढेर सारे झींगुर मगर ... क्रान्ति नहीं होती लोग जागते है या जब अलसभोर हो या जब सिंह दहाड़ते है निकट , निपट, निर्भीक !
प्रेरणादायी पंक्तियां।
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