याद है मुझे कब पिछली बार हँसी थी वो ,
मेरी ही किसी बात पर बहुत हँसी थी वो |
जाने तब क्या सोच कर बहुत हँसी थी वो ...
खैर जो भी हो मगर क्या खूब हँसी थी वो |
हंसते हुवे पल्लू से ढँक लिया था चेहरा
आँचल के पार बिखर गयी ऐसी हंसी थी वो |
मैं भी हंसा था साथ था हाथों में उसका हाँथ
लेकर हाँथ मेरे साथ सारी रात हँसीं थी वो |
नहीं भूलती उसकी खनक आज भी सुनता हूँ
किसी घुंघरूं किसी पायल कि सी हँसी थी वो |
रूप और भी उजास से रंगों से भर गया था उसका
कोई भूलना भी चाहे ना भूले ऐसी हँसी थी वो |
एक अहसान है मुझपर उसका चुकाए नहीं चुकता
दिल उदास था उसका थी परेशान फिर भी हँसी थी वो |
उसकी हँसीं पर वरना क्यों नज्म लिखता यु ही तरुण
सारे अपने गम भुला के सिर्फ मेरे लिए हँसी थी वो |
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