Monday, June 28, 2010

थूंक के छींटे ..अगली पीढ़ी तक !

उसने जब
सड़क पर थूका
बेलिहाज
बेअदब
शायद
बेसबब नहीं था |
रोज
सैकड़ो हजारों
की ये हरकत
जिसमे
कुछ अजब नहीं था ,
खटकी थी
अटकी थी
चंद निगाहों में |

जिन्हें
जीवन
गिनती सा सरल
और पहाड़े जितना
कठिन लगा होगा |
..अब तक |

"मास्साब" वो आप थे ?
नहीं ! नहीं !
कोई हमशक्ल रहा होगा |

2 comments:

  1. बहुत सुन्दर कविता , मजा आ गया पढ़कर

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  2. बेहतरीन...शायद कोई हमशक्ल ही होगा!!

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