|| सेन्योरुभ्योर्मध्ये विषीदन्तमिदं ||
स्वभाव है जिनका ,
श्मशान में भी !
भूल गया है ,
अति-आधुनिक
बहु-संपन्न-प्रबुद्ध-सबल मानव ?
इसलिए तो कुरुक्षेत्र में बहु-संपन्न-प्रबुद्ध-सबल मानव ?
केवल वो गुरु है ,
ईश्वर है !
और पार्थ, तो बेबस मानव है !
जो छीन रहे हँसी
दुधमुहों
नवविवाहिताओं
कुमारिकाओं तक की
वे हो कोई , कभी , कही वही कुरुसेनाहै |
निश्चय ही अधम है
दनुज है ,
वही दानव है !
अस्तु उपलब्धि है योग की !
चरम अवस्था है ध्यान की !!
पराकाष्ठा प्राणायाम की !!!
हास्य करुणा है !हास्य अनुभव से अर्जित
अजेय निर्भयता है ! प्रिय पार्थ !
अस्त्र है हास्य
जो हर लेता है
विकट काल को
सभी प्रपंच और जंजाल को भी |
जो हर लेता है
विकट काल को
सभी प्रपंच और जंजाल को भी |
राधा के रमण
बृज के गोपाल
रच कर युद्ध का देखो कैसा महारास हँसे ....