नव वर्ष तुम कैसे हो ?
नया वर्ष
बस आने को था
तो सोचा
हाल चाल पुछू
पुछू कि
इस बरस
कैसा रहेगा
लाभ हानि
जमा खर्च का
अनसुलझा गणित
और
कैसी तबियत
रहेगी
दुश्मनों की
रकीबों की
हबीबों की
जानशिनों की
जानना चाहता था
फलसफा भी
हाल-ऐ-दुनिया
हाल - ऐ दिल भी
मगर
दिनों दिन
रातो रात
उछलती
उफनती
महंगाई की बाढ़ में
बह गए
डूब गए
सारे प्रश्न
बस
कुछ
बचे खुचे
सपनों की गठरी
सर पर लादे
शरणार्थी सा
बैठा हू
कि
आओ नव वर्ष
बचा लो
मुझे
और
मेरे निरीह देश को
इन बेईमान
और
मक्कार नेताओं से
जो
ना मरने देते है
ना जीने ही देते है
लूटते है दोतरफा
और
बिना टेक्स
ना तो
मरहम देते है
ना
मरने की इजाजत ही देते है
आशा ही करता हू
कि
नया वर्ष
शुभ होगा
उनके लिए भी
जिन्हें
हर बरस
इन्तेजार रहता है
कि
नया बरस
केलेंडर के साथ
बदल देगा
बूढी
मरियल
लाचार
व्यवस्था को
ताकि
जवां खून
दौड़ सके
पिछड़ते
देश की रगों में
और
लाचार
बूढों को
मिले कुछ विश्राम
क्योंकि
देश के सर्वोच्च आसन
सोने के लिए तो
नहीं बने है ना |
No comments:
Post a Comment