Friday, January 14, 2011

बसंत गुमनाम है !

उसे सब बसंत कहते है ,
अपनी पसंद भरते है ,
उसकी बाते भी करते है ,
इंतज़ार करते है ,
इसरार भी
मगर
कोई उससे नहीं पूछता
कि
क्यों बसंत उदास रहता है
भटकता रहता है
संग लिए
पागल पवन
और
सूखी
नाकाम
प्रेम पातियाँ
जो
कभी नहीं पहुचती
प्रेमी ह्रदय तक
उन्हें
कवि बटोर लेता है
वाचता है
आंसुओं में लिखी
आरजुओं की गज़ल
और
रचता है
विरह
और
वेदना में डूबे
प्रणय गीत
हे बसंत !
वो भी
तुम्हे कोई नाम
अब तक तो नहीं दे पाया |

1 comment:

  1. tarun ji ek umda rachna bahut hi achha laga isse padhna shubhkamnayen

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