आम नागरिक होना
हमारा मौलिक अधिकार है
और नेता चुनना
हमारा मौलिक कर्तव्य
सो किसी भी
अन्य अधिकार जैसे
हम इसे भी
एन्जॉय करते है
और
कर्तव्य
अनेको
अन्यान्य कर्तव्य जैसे
निभा दिया जाता है
जब चाहे
हमें आदेश दे
हम
आँख कान मूंद कर
छटे हुवे
काईया नेताओं
और
छुटभैयों
या
रसूखदारों में
किसी को भी
पहुचा देते है
वहां
जहां से
वो जैसे चाहे
खेलते रहे
सता के खेल
हम
तभी चौकते है
जब बात
अधिकारों तक आती है
आखिर
आम होने का
ये ख़ास अधिकार
हमारी बपौती है
सो
महंगाई बढ़ा कर
भ्रष्टों को आश्रय दे
सरकार
हमारे उसी अधिकार की
रक्षा ही तो करती है
तो फिर
हम क्यों लड़े
उनसे
जिन्हें
हमने ही चुना है
अपने
कर्तव्यों का
पालन कर के
फिर
शाहजहाँ की तरह
ये भी तो
हाथ काट लेते है
हमारे
सत्ता के
ताज निर्माण के बाद !
संविधान ???
नहीं देता हमें
इन्हें
सत्ता च्युत करने का
मौलिक अधिकार ???
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