Thursday, March 3, 2011

हमारी भी गिनती हो गयी !

हरिया खुश
घरवाली खुश
चलो
हमारी भी
गिनती हो गयी

टीचर पस्त
कर्मचारी त्रस्त
अब
बेगारों में
इनकी भी
गिनती हो गयी

सरकार मस्त
तेज है गस्त
चलों
ये भी
खानापूर्ति
हो गयी

कौन गरीब ,
कौन किसान ,
अगड़ा ,
पिछड़ा ,
महिला ,
पुरुष ,
सब
गडमड पडा है
सरकारी गोदामों में |

अब
इसमे से
आंकड़े
निकाले जायेंगे
अंदाजे
लगाए जायेंगे
विदेशो से
ऋण
उगाहे जायेंगे

ना
गरीबी घटी
ना ही बढ़ी
विकास दर
लो
हमने
मानदंड ही
बदल दिए
अब देखो
नए चश्मे से
सब
हरा हरा
दिखाया जाएगा
सन पचास को
नया माडल
बनाया जाएगा

नयी
जनसंख्या नीती
और
विकास की
अफलातूनी झांकी
सजाई जायगी
फिर
दस बरस बाद
नयी
जनगणना की
डुगडुगी
बजाई जायेगी

तब तक
जो हाथ पैर
मार सका
खुद ही
किनारे
लग जाएगा
बाकी का
भारत
खुद ही
सलट जाएगा

ज़रा पूछो
ये
किसे
मुरख बनाते है
और
किस मुह से
नयी पीढ़ी को
पुराने सबक
पढ़ाते है

आज
कितने सरकारी
स्कूलों में
शिक्षक आते है ?
श्रेष्ठी वर्ग के बच्चे
किस स्कूल में
जाते है ?
बिना ईलाज
कितनी मौते
रोज होती है ?
किसानो की
आत्महत्या पर
कितनी विधवाएं रोती है ???

कितने लोग
फूट्पातों पर
सोते है ?
कितने
बलात्कार
हर मिनट होते है ?
मासूम बच्चे
क्यों
बोझा
ढोते है ?
आज भी
मंत्री की
उपस्थिति में
कितने
बाल विवाह
होते है ???

किसके बच्चे
विदेशों में
पढ़ते है ?
किसके बच्चे
मिटटी से
भविष्य
गढ़ते है ?

कौन
बेवकूफ !!!
अपने
आँख के तारे को
सीमा पर
भेजता है ?
किसका दिल
भूख पर
पसीजता है ?

कौन
चुराता है टेक्स ?
किसके घर
पड़ते है
दिन में भी डाके ?
किसको
करने होते है
हर रोज फाके ?

कोई जनगणना
जवाब नहीं देती
किसी
देशहित के सवाल का
कौन खर्च उठाता है
आखिर
इस तुगलकी बवाल का ?

1 comment:

  1. करोड़ो गधे मिलकर
    नया धोबी
    चुन आयेंगे
    Mind Blasting Tarun
    जुग जुग जियो
    unable to post comment on proper place

    ReplyDelete