फिर कोई लोभ का रावण , साधू सा वेश धर वोट मांगता है |
शहीदों ने खिंची थी जो लक्ष्मण रेखा वो फिर लहू मांगती है ||
Tarun Kumar Thakur,Indore (M P)
"मेरा यह मानना है कि, कवि अपनी कविता का प्रथम पाठक/श्रोता मात्र होता है |"
Thursday, February 11, 2021
बड़े वो है ..... मुहलगे !
हमारे वो ... वैसे तो कुच्छ नहीं हमारे सामने | कुच्छ कहती नही हूँ उनको इसलिए कि वो है नेता जी के बड़े ही मुहलगे ||
आग मूत रक्खी है मोहल्ले में समझाती नहीं हूँ ... जाने दो जीजी कौन ऐसो के मूह लगे !!
जय श्री राम। राधे-राधे।
ReplyDeleteआदरणीय डाँ. साहब सादर वंदन !
Deleteजय श्री राम। राधे-राधे।
निशब्द करते सपष्ट भाव
ReplyDeleteआदरणीय संजय भास्कर साहब !
Deleteसादर वंदन एवं हार्दिक आभार !!