नहीं जानता
मैं
समय की
सीमाएँ
समय जानता है
सबकुछ
तय करता
बदलता
सबकी / सारी / सांझी
परिसीमाएँ
बदल बदल
बहुत बदल सको
तो भी बस
बदल सकोगे
कालांतर
युग बदल गये होंगे
लव निमेष ही में
नव सृष्टि
गढ़ेगा महाकाल
ईति शेष बचेंगे
रूपांतर
क्या उदित
अनुदित
अपघटित हो
रहे विदित
वेदना के पल-छिन
हो रहे भंग
सब शिलाखंड
एक सृष्टि भ्रंश
सौ ब्रह्मांड प्रकट
विकट-निकट
वह डमरू नाद
हरता विषाद
सब पाप ताप
कर भस्म
करे जो लेप
वही निर्लेप
करे संक्षेप
सदाशिव हरे हरे !!
हर हर !! महाशिव हरे हरे !!!
बम बम ....
फिर कोई लोभ का रावण , साधू सा वेश धर वोट मांगता है | शहीदों ने खिंची थी जो लक्ष्मण रेखा वो फिर लहू मांगती है || Tarun Kumar Thakur,Indore (M P) "मेरा यह मानना है कि, कवि अपनी कविता का प्रथम पाठक/श्रोता मात्र होता है |"
Sunday, February 28, 2021
हर हर !! महाशिव हरे हरे !!!
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डमरू नाद
ReplyDeleteहरता विषाद
सब पाप ताप
कर भस्म
करे जो लेप
वही निर्लेप
करे संक्षेप
सदाशिव हरे हरे !!,..शिवशक्ति और महिमा का अनुपम वर्णन..सुंदर अति सुंदर ..
आदरणीया जिज्ञासा जी
Deleteहर हर महादेव !
हर हर महादेव । शिव के डमरू का नाद विषाद है लेता है ।कितनी मनोरम कल्पना । सुंदर प्रस्तुति ।
ReplyDeleteआदरणीया संगीता स्वरुप जी
Deleteहर हर महादेव !
बहुत सुन्दर और सार्थक रचना।
ReplyDeleteहर-हर महादेव।
आदरणीय डॉ. साहब सादर प्रणाम
Deleteहर हर महादेव !
अनुपम वर्णन...
ReplyDeleteआदरणीय संजय भास्कर जी
Deleteहर हर महादेव !
महांकाल, महादेव, त्रिपुरारी मोक्ष-मुक्ति के दाता दूषित कलुषित मानस उनके कोप से ना बच पाता |
ReplyDeleteसत्यम शिवम सुंदरम, एक अनुपम प्रस्तुति |
सुंदर सृजन
ReplyDeleteआदरणीय MANOJ KAYAL जी
Deleteहर हर महादेव !