भोला और रामा , बेलापुर से चले किशनपुर को , रास्ते में एक चौराहा आया | किसी मुर्ख उपद्रवी ने चौराहे पर संकेतक गिरा दिया था | अब बताइये भोला और रामा उस संकेतक को कैसे पुनर्व्यवस्थित करे कि उन्हें किसनपुर की सही राह मिल सके | बड़ी मासूम सी लगने वाली यह पहेली एक पत्रिका में पढ़कर , बालक हल कर रहा था | उसने चहकते हुवे उत्तर खोज निकाला और हमें बताया | उत्तर बहुत सहज था कि अगर बेलापुर , जहा से दोनों चले थे , संकेतक में उसे ठीक तरह दिखा दे तो , किशनपुर की दिशा स्वत: ज्ञात हो जायेगी |
अनायास ही भगवत गीता में भगवान श्री कृष्ण का वह अमर संवाद गूंज पडा कि " क्रोध से स्मृति का नाश होता है और स्मृति के नाश होने से ..."आदि आदि| हम सभी धर्म के अबूझ मार्ग पर संस्कारों द्वारा चलाये जाते है , बीच बीच में अपने विवेक (?) के कारण पथ भ्रष्ट होने का खतरा सदैव उपस्थित रहता है | ऐसे में "प्रज्ञा " रूपी "जायरोस्कोप" हमें दिशा भ्रम और सत्यानाश से बचाता है | उसी प्रज्ञा के लिए हम गायत्री मन्त्र द्वारा निकटस्थ सृष्टि बिंदु सविता की उपासना करते है | और स्वस्तिक आदि शुभ चिन्ह व ना ना विधान व ज्ञान हमें स्मृति से ही लब्ध है | जो भारत की महान मनीषा ने यहाँ जन्मे व्यक्ति मात्र को सुलभ कराया है और समस्त जगत जिसका पिपासु बना इसके गिर्द डोलता है , उसके प्रति आज जो घोर अवसरवादी उपेक्षित व्यवहार सत्ता से व्यक्ति तक दिख पड़ रहा है , वह नितांत सोचनीय व भारत वर्ष की सनातनता में उपजी हीन ग्रंथियों का दु:खद परिचायक मात्र है |
उपरोक्त विवरण के माध्यम से बस इतना निवेदन है कि , जो स्वर्णिम जीवन रत्न भारत पुत्र / पुत्री बन जन्मने का सौभाग्य हमें सहज मिला है | वह हमारे पूर्व के सतसहस्र जन्मो के सुकर्मों का फल है और हम तकनीक और विकास की नयी रीत के मारे , अपनी इस थाती को बेमोल गवा रहे है | नयी पीढ़ी से इस सन्दर्भ में आशा रखना भी मूर्खतापूर्ण जान पड़ता है |
आइये उसी सविता देवता कि शरण हो उनसे इस अज्ञान वेला की निवृत्ति हेतु नित्य प्रार्थना करे , इतना अनुरोध है |