Friday, March 31, 2023

लिखने का नैतिक दुस्साहस !



लिखने का नैतिक दुस्साहस !
करते है
कुछ
मेरे जैसे लोग
कुछ
तुम में से भी होंगे
बिना जाने
कि
कैसे एक एक शब्द
एक एक वाक्य
तुम्हारा पर्याय बन
जुट जाता है
उस रचना में
जो शायद
मेरा
या
तुम्हारा
मंतव्य ही ना था
सोचा ना था
इतनी दूर निकल जायेंगे
वो शब्द
और
इतना
विराट होगा
उनके अर्थों (अनर्थों !)
का फैलाव
कि
फिर समेट ही ना सकेगा
कोई कवि
कभी
उस भटकाव को
फिर
चाहे
कितने सुन्दर
अलंकारों
और
सधे छंदों में
रचते रहों
श्रष्टि पर्यंत
वेदों पर उपवेद
और
महाग्रंथ
या उनपर भाष्य
छद्म मनुष्यता
अश्प्रश्य ही रहेगी
चाहे पहन ले
कितने ही
शब्दाडम्बरों के
चमचमाते
चौधियाते
मुक्ता मणि |

12 comments:

  1. ये चोथा लेख है, आपके ब्लॉग पर जो में पद रहा हूँ.
    थोड़ा धुंधला सा लगता है
    शायद मेरी आँखों में पानी है

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    1. प्रिय आदरणीय हरदीप सिद्धू जी !बारह बरस बाद ही सही आपका दिल से बहुत बहुत धन्यवाद !

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    1. आदरणीया अनीता जी ! सादर वन्दे मातरम !
      आपका बहुत बहुत साधुवाद !

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  3. जी नमस्ते ,
    आपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा कल रविवार (०२-०४-२०२३) को 'काश, हम समझ पाते, ख़ामोश पत्थरों की ज़बान'(चर्चा अंक-४६५२) पर भी होगी।
    आप भी सादर आमंत्रित है।
    सादर

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    1. आदरणीया अनीता सैनी "दीप्ती" जी ! सादर वन्दे मातरम !आपको एवं समस्त चर्चामंच परिवार को , नवरात्री , श्री राम नवमी एवं नव संवत की हार्दिक शुभकामनाएं !
      रचना के भाव को स-सम्मान मंच प्रदान करने के लिए आपका बहुत बहुत साधुवाद !सभी सम्मानित रचनाकार महानुभाव को बहुत बधाई अभिनन्दन !

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  4. विराट होगा
    उनके अर्थों (अनर्थों !)
    का फैलाव...बेहद संवेदनशील रचना...बहुत ही बढ़िया...

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    1. आदरणीय शांतनु सान्याल जी ! प्रणाम !
      आपका बहुत बहुत साधुवाद !

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  5. सुंदर प्रस्तुति

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    1. आदरणीय ! प्रणाम !
      आपका बहुत बहुत साधुवाद !

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  6. हर समय अच्छा लिखना सरल नहीं होता हर किसी के लिए..... .. बहुत खूब!

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    1. आदरणीया कविता रावत जी ! सादर वन्दे मातरम !
      आपका बहुत बहुत साधुवाद !

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