खुशगवार मौसम में
जैसे तबियत भी
और
मौका भी
दस्तूर भी
ऐसी खुशनसीबी सा
होता है दोस्त |
जब
गम से
और
दुनियावी थकावट
या
बनावटों से
उकताई आँखे
मुंदती हो
खुशबू भरे
ठन्डे
मगर
गर्म अहसासों से
सराबोर
बासंती झौके से ...
वो
उतर जाता है
सहलाते हुवे
सपना बन
मन की
अतल
सूनी
गहराइयों में
जैसे
स्वाति बूंद
चुपचाप
किसी
सीप में
उतर जाती है
मोती होने को |
प्रतिध्वनित होता है
मेरा हर स्पंदन
उस
सांझा मन में
कहना नहीं पड़ता
और
वो
भाप जाता है
मेरा
सारा दू:ख
संताप
जिसके साथ
जीवन की
सारी खुशिया
बाटी जा सकती है
केवल एक
चाय के प्याले से
ऐसा
बिना शर्त
बेतर्क
बेतुका (दुनिया के लिए)
होता है दोस्त |
दोस्त
तब भी
वहा भी
होता है
जब
कोई नहीं होता
मैं भी नहीं
तब भी
पीछे
होता है दोस्त |
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