देश खडा है
बैलगाड़ी में
लादे
अपेक्षाओं के
अनबिके धान
और
निचुड़े पसीने वाला
पिरोया हुवा
किसान/ मजदूर
इस ओर
जिधर से
पगडंडी
गाँव को जाती है
उधर
पटरी के
उस तरफ
अनियंत्रित
शहर है
स्वछंदता
और
व्यस्तता की
धूल से अटा
बीच में
पटरी है
विकास की
जो
राजधानी
ले जाती है
अपराधियों
बलात्कारियों
देशद्रोहियों
और
चाटुकारों को
कल ही
गाव का हरिया
और
परसों
शहरी
सरिता की
लाशें
कटी मिली थी
इस
बगैर फाटक की
रेल लाइन पर |
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