सब ऐसा ही क्यों है
बदलता है
तो
बदलता क्यों है
जो थमा है
बदलता क्यों नहीं है
अजीब सी
तंद्रा
उदासी है
चहु ओर छाई है
जो
हर बदलाव की
खबर भर से
बैचैन
हो उठती है
कोहरे में
टटोल कर चलना
आँख वालों में
आदत
बन चुका है
सहन नहीं होती
धूप की चुभन
सदियों से
बंद आँखों को
ये कौन
आँख का अंधा
शोर मचाता
चला आ रहा है
इसे रोको
वरना
सब
देखने लगेंगे
और पायेंगे
ठगा सा
खुद को
तब
बड़ी शर्मिंदगी होगी
.....
खुद से |
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