Thursday, February 24, 2011

सोचता हूँ

सब ऐसा ही क्यों है
बदलता है
तो
बदलता क्यों है
जो थमा है
बदलता क्यों नहीं है

अजीब सी
तंद्रा
उदासी है
चहु ओर छाई है
जो
हर बदलाव की
खबर भर से
बैचैन
हो उठती है

कोहरे में
टटोल कर चलना
आँख वालों में
आदत
बन चुका है
सहन नहीं होती
धूप की चुभन
सदियों से
बंद आँखों को

ये कौन
आँख का अंधा
शोर मचाता
चला आ रहा है
इसे रोको
वरना
सब
देखने लगेंगे

और पायेंगे
ठगा सा
खुद को
तब
बड़ी शर्मिंदगी होगी
.....
खुद से |

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