Monday, April 4, 2011

शर्म करो इंडिया शर्म करो !!!


क्रिकेट कभी अपनी जिन्दादिली और जांबाजी के लिए जाना जाता था , बदलते नियमों ने जहां तेज गेंदबाजी को मलिंगा जैसे चकर के हाथ पहुंचा दिया वहीँ इस खेल की सर्वोच्च संस्था मुरली जैसे चकर को विश्व रिकार्ड बनाने के लिए आधारभूत नियम तक बदल डालती है |अगर गेंदबाजी कि वह धार कायम रहने दी जाती तो कई भगवानो को आइना देखना पड़ता मगर जिस तरह नियमों का बहाना बना कर भारतीय हाकी को कुचला गया , उसी तरह WESTENDISE जैसे देश में खेल को बोथरा करने के सारे प्रयास किये गए और इसी संस्करण में २०-२० का बच्चों वाला क्रिकेट लाकर पहले ही इस खेल के चाहने वाले (समझने वाले ) दिलों को कब का तोड़ा जा चुका है | अब तो ये एक मंडी है जिसमे सब बिकता है और इस मंडी के दलाल कौन है सब जानते है |

आज बदल चुके परिवेश और प्राथमिकताओं के दौर में पिछड़ चुके भर्स्ट देश के लिए २८ वर्ष के बाद मिला यह कप किसी दकियानूसी परिवार में , बुढापे में जन्मे बालक , जैसा है |इस पर मिल रही प्रतिक्रियाये तो हमारे नितांत खाप समाजी सोच को ही बताती है | जिस खेल ने राष्ट्रीय खेल सहित सभी प्रतिभाओं को साबुत निगल लिया हो उसके अति दीवानगी दिखाती भीड़ में वो पालक भी होंगे जिनके नौनिहाल कई क्षेत्रों में देश का नाम रौशन कर सकते होंगे और हम ऐसा चरित्र दिखाए भी क्यों ना , आखिर गर्व करने के लिए , बलात्कारी भ्रष्ट और गरीब देश के पास यही तो उपलब्धि है |

ग़ालिब चचा का शेर याद आता है "हमको मालूम है जन्नत की हक़ीकत लेकिन दिल के ख़ुश रखने को 'ग़ालिब' ये ख़याल अच्छा है। "

भारत जैसा देश जिसकी ना मालुम कितनी जनसंख्या , खिलौना बन चुकी गरीबी रेखा के नीचे सड कर मरने के लिए मजबूर कर दी गयी है | जो देश शिक्षा तक का विनिवेश करने पर उतारू है | उस देश के तथाकथित बुद्धिजीवी नेता , जिनमे देश के सर्वोच्च आसनों पर विराजित महानुभाव भी है , आज सभी मेहनत से कमाई देश कि पूजी खेल तमाशों पर लुटाने को बैचैन दिखते है | ये इस देश के लिए घोर शर्म और निराशा का विषय है की इसने तुच्छ स्वार्थी घरानों और प्रतिष्ठानों का हित साधने के लिए अपना विवेक भी घिनौने शो बाजार के बिस्तर पर चढ़ा दिया है |
जनता वही स्वांग रचती है जिसको महामना अपनाते है तो किस मुह से हम अपनी अगली पीढ़ी को मानवता के पाठ पढ़ा कर ये अपेक्षा रख पायेंगे की वो देश कि सदियों पुरानी साख को बढाए ना सही बरकरार ही रख सके | इस जूनून को देख कर तो भविष्य गर्त में जाता दिखता है |

शर्म करो इंडिया शर्म करो !!!

Thursday, March 31, 2011

दिवानॊ का शहर है इन्दॊर

दिवानॊ का शहर है इन्दॊर , क्योंकि युवाऒ का शहर है इन्दॊर |
बस कहनॆ भर कॊ शहर है, रहबर है यार , दॊर‍‍-ऎ-बहर है इन्दॊर |
www.whoistarun.blogspot.com

Friday, March 25, 2011

स्मृति : द्रष्टान्त एवं गायत्री मन्त्र के प्रज्ञा तंत्र(gyroscope) की नितांत अपरिहार्यता




भोला और रामा , बेलापुर से चले किशनपुर को , रास्ते में एक चौराहा आया | किसी मुर्ख उपद्रवी ने चौराहे पर संकेतक गिरा दिया था | अब बताइये भोला और रामा उस संकेतक को कैसे पुनर्व्यवस्थित करे कि उन्हें किसनपुर की सही राह मिल सके | बड़ी मासूम सी लगने वाली यह पहेली एक पत्रिका में पढ़कर , बालक हल कर रहा था | उसने चहकते हुवे उत्तर खोज निकाला और हमें बताया | उत्तर बहुत सहज था कि अगर बेलापुर , जहा से दोनों चले थे , संकेतक में उसे ठीक तरह दिखा दे तो , किशनपुर की दिशा स्वत: ज्ञात हो जायेगी |

अनायास ही भगवत गीता में भगवान श्री कृष्ण का वह अमर संवाद गूंज पडा कि " क्रोध से स्मृति का नाश होता है और स्मृति के नाश होने से ..."आदि आदि| हम सभी धर्म के अबूझ मार्ग पर संस्कारों द्वारा चलाये जाते है , बीच बीच में अपने विवेक (?) के कारण पथ भ्रष्ट होने का खतरा सदैव उपस्थित रहता है | ऐसे में "प्रज्ञा " रूपी "जायरोस्कोप" हमें दिशा भ्रम और सत्यानाश से बचाता है | उसी प्रज्ञा के लिए हम गायत्री मन्त्र द्वारा निकटस्थ सृष्टि बिंदु सविता की उपासना करते है | और स्वस्तिक आदि शुभ चिन्ह व ना ना विधान व ज्ञान हमें स्मृति से ही लब्ध है | जो भारत की महान मनीषा ने यहाँ जन्मे व्यक्ति मात्र को सुलभ कराया है और समस्त जगत जिसका पिपासु बना इसके गिर्द डोलता है , उसके प्रति आज जो घोर अवसरवादी उपेक्षित व्यवहार सत्ता से व्यक्ति तक दिख पड़ रहा है , वह नितांत सोचनीय व भारत वर्ष की सनातनता में उपजी हीन ग्रंथियों का दु:खद परिचायक मात्र है |

उपरोक्त विवरण के माध्यम से बस इतना निवेदन है कि , जो स्वर्णिम जीवन रत्न भारत पुत्र / पुत्री बन जन्मने का सौभाग्य हमें सहज मिला है | वह हमारे पूर्व के सतसहस्र जन्मो के सुकर्मों का फल है और हम तकनीक और विकास की नयी रीत के मारे , अपनी इस थाती को बेमोल गवा रहे है | नयी पीढ़ी से इस सन्दर्भ में आशा रखना भी मूर्खतापूर्ण जान पड़ता है |

आइये उसी सविता देवता कि शरण हो उनसे इस अज्ञान वेला की निवृत्ति हेतु नित्य प्रार्थना करे , इतना अनुरोध है |

ॐ भूर्भुवः स्वः
तत् सवितुर्वरेण्यं
भर्गो देवस्य धीमहि
धियो यो नः प्रचोदयात् ॥

Thursday, March 24, 2011

क्या बदलेगा बोलो !

अब तो कप
जीत लिया समझो
फिर
फटाको के शोर
और
बाजारू जोर में
खालिस मुद्दे
घुट घुट
मर जायेंगे
मरे किसानो
लुटी अबलाओं
की नुची चमड़ी से
शापित मदारी
डुगडुगी बनायेंगे
पत्र और चैनल
बावरी जनता को
नाच
दिखाएँगे
सिखायेंगे
नचाएंगे
और बेसुध ही
सत्ता के
बिस्तर तक
पहुचाएंगे
जहां
देशभक्ति
और
लोकतंत्र का
बार बार
बलात्कार होता है
विपक्ष
जिस पर
कभी कभार
रोता है
फिर
वही होता है
जो
रोज होता है
विखंडन
हर क्षण
विडम्बना की कोख में
वित्रश्ना के
बीज बोता है
युग
अब
क्षणजीवी हो गए है
अगुवा सब
परभक्षी
परजीवी
हो गए है
इन
जुगुप्सामय
घ्रणित अध्यायों में
मेरा मैं
बड़ी मुश्किल में
जीता है
शिव मौन हो
विवशता के ढोंग का
कटु तिक्त हलाहल
रोज पीता है
पर
मंथन
बस नाट्य भर
हो रहा है
स्वार्थी युग में
शिवतत्व का भी
शोषण
हो रहा है |

Wednesday, March 23, 2011

मन्ना बदनाम हुवे ...किसके लिए ?




नाम मन को मोहने वाला
काम
पानी पी कोसने वाला
और
मन्ना बदनाम भी हुवे
तो किसके लिए
जिस पार्टी ने
सिक्खों का
कत्लेआम किया
गांधी को
अगवा कर
अपने नाम किया
अरे मिया
माना
की
बदनामी के
बहुत है
छिछोरी
राजनीति में फायदे
मगर
सदन में बैठने के भी
होते है कायदे
आज
पिछले दरवाजों से
घुसाने वाला चूहा
चुने हुवे
प्रतिनिधियों को
हुंकार रहा है
देश का
राशन पानी
मय दल खा पीकर
डकार रहा है
और
नाकारा विपक्ष
उसके
छिच्चोरे शेर पर
बगले झाँक रहा है
अरे
जनता से
गलती हो गयी भैया
तो अब क्या
देश का चिर हरोगे
तब ही चुल्लूभर
थूक में डूब मरोगे ???

कितने राजा
कितने कलमाड़ी
कितने पवार
पैदा करोगे
तुम वो भस्मासुर हो
जो
देश को
साथ लेकर मरोगे

ऐसी निकम्मी सरकार
और
हिजड़ों की फौज
आज
सत्ता पर काबिज है
कि
इस देश का
अब
अल्लाह ही
हाफिज है

Tuesday, March 22, 2011

सोलहवे चुनाव के नज़ारे






बहुत सारे
गांधी
नजर आयेंगे
कुछ लोगो को
राम भी
याद आयेंगे
बाबा रामदेव भी
जुगाडासन लगायेंगे
दो चार करोड़
फर्जी
और
बीस पच्चीस करोड़
विथ मर्जी
वोटर लिस्ट में
जुड़ जायेंगे
बेरोजगार
दिग्भ्रमित
युवा
ना ना मोर्चो के
झंडे उठाएंगे
जेल भी जायेंगे
लाठियां
गोलियां
खायेंगे
सिम्पेथी की खातिर
एकाध गांधी
लुढ़का भी दिए जायेंगे
बीते मुद्दों की
मटियामेट
मजारों पर
भाषणों के
बासी फूल
चढ़ाएंगे
घराने
पुराने
दीवाने
सभी
किस्मत आजमाएंगे
छुट्टी वाले दिन
माध्यम वर्गी
झुंझलाते
निम्न वर्गी
धकियाते
उच्च वर्गी
इतराते
बटन दबाने जायेंगे
अंततोगत्वा
करोड़ो गधे मिलकर
नया धोबी
चुन आयेंगे
जो
संसद के
धोबीघाट पर
कलंकितों के
काले कपडे धोएगा
वक्त बेवक्त
विदेश जाकर
सोयेगा
मीडिया
और
विश्व मंच पर
रोयेगा
इससे
हमारी
निरुपारॉय वाली
रोतालू इमेज
फिर जमेगी
नयी सरकार
लुट खसोट के
नए पैतरे चलेगी

अपन को
इसमे
कोई इंटरेस्ट नहीं है
ये इंडिया
अपना भारत
जो नहीं है
अपने राम तो
स्वराज्य से सुराज के
सपने बुनेंगे
ऐसे ही किसी
लोकतंत्र के
मातमी ठीये पे
अपन फिर मिलेंगे

Tuesday, March 8, 2011

हमार गुजारिस !

सोचा
चलो एक याचिका
हम भी
डाल आते है
क्या है ना कि
यहाँ के जज
हमारे मौसा है
तो साहब
डाल दिए अर्जी
कि
इच्छा मृत्यु चाहिए
बुलाये गए
कोर्ट मा
दुई वकील
पिल पड़े
सरकारी किताब का
लट्ठमार भाषा में
क्यों भाई कल्लू
इच्छा मृत्यु चाहिए ?
हम कही
हां साहेब
हुई सके तो
बड़ी मेहरबानी होगी
कागज़ पत्तर
सब तैयार है
कौनो कमी रही
तो हुजुर देख ले
बाकी तो
आप खुदे समझदार है
जो खर्चा होगा
देख लेंगे
एक बार
इच्छा मिरतु मिल जाय
बस
हमारे चहरे को
बड़े गौर से
तक रहे थे
काले कोट वाले बाबू
गले मा अटक गया
उनके तमाकू
बोले हीचकाय के
डोले मचकाय के
क्या राशन कार्ड बनवा रहे हो
हमें कोर्ट में ही
रिश्वत खिला रहे हो
अरे भाई
क्यों
अदालत का वक्त
बर्बाद करते हो
बताओ बात क्या है
क्यों मरना चाहते हो
एड्स , केंसर
या लकवा हुवा है ?
या ब्रेन डेड हो लिए हो
अरे भाई
अदालत ने
अभी छूट नहीं दी है
अभी संसद की
मुहर बाकी है
इसीलिए हमने
इस पर
ना
की है
का कहा हुजुर
तो का
इच्छा मिरत्तु भी
संसद ही देगी
ससुरों के पास
पहले का
पावर कम थी
जो उनका
जमराज बनाय रहे हो
अरे हत्यारन हाथों
इच्छा मृत्यु
थमाय रहे हो !!!
अरे
हम तो सोचे थे
महाभारत के
भीष्म की तरह
देश की जनता को
वरदान मिला है
एही खातिर
अरजी दिए थे
के कम से कम
मरने का अधिकार
तो
अपना होगा
अब तो लागत है
घर मकान
खेत दूकान
कि तरह
ये भी बस
सपना होगा

त़ा हम तो
बुझ लिए
बकील बाबू से
और
देखे जाइत है
गुजारिश
बाकी
ऐ हमार
किसान
मजूर भाई
ना मरिहोऊ
छोड़ के
घर बिटुआ
देश
इन हरामियन के हाथ
छोड़ के लावारिस |
बस
आपन तो
इतनी ही हो
जनता से गुजारिश |