Monday, April 5, 2010

इसलिए

आधी शताब्दी
बाद भी
मच्छर ,
मलेरिया ,
और
अशिक्षा
से
मुक्ति ना दिला पाया
प्रशासन
आतंकवाद से
सुरक्षा का
दावा करता है


इसलिए
हर घर में
कछुवा
जलता हैं
जिसका
अब
ज्यादा
जोर
नहीं चलता है


देश में
राजनीति की
दो-दो
धुरियाँ हैं
मगर
उनमे
मतभेद,
मनभेद ,
दुरी की
अनगिनत
सोची समझी
मजबूरियां है |


इसलिए
देश
एकमत होकर
मतदान
करता है
अपना पेट
काटकर
इनका
घर भरता है |


लगान
अब
नहीं
चुकाना पड़ता
पहले ही
काट लिया जाता है
जड़ों से


इसलिए
छोटे किसान की
फसल
और
मध्यमवर्गीय की
बचत
पनप
नहीं पाती

महंगाई
चढ़ता सूरज हैं
सर छुपाने से
क्या होगा ?
शाम तलक
खुदा जाने
अंजाम
क्या होगा ?


इसलिए
आशाओं को
इच्छाओं को
ढूंढ़ ढूंढ़ मारों
ये
अभिजात्य ,
सामंत
और
भ्रष्टाचारियों
की
दासियाँ हैं
तुम कभी
इन्हें
अपने घर की
शोभा
बना ना सकोगे |


अरे ओ !
मूढ़ ,
पढ़े लिखे श्रमिक
ज़रा
देश की
अर्थी को
कान्धा तो लगा
अभी
श्मशान दूर हैं
क्या पता
मुर्दे में
फिर
जान आ जाये


इसलिए
ऐ आम इंसान
अपनी भीड़ को
नियंत्रित कर
थोड़ा
हासियें पर होले
अभी
इस
राजपथ पर
एक
लाल बत्तियों
का
काफिला गुजरेगा
जिसे
कईं
खाकी जिस्म
सलामी देंगे
जिनकी
आत्माएं
उन्होंने
नौकरियों के एवज में
गिरवी रख ली है ...


नौजवानों ,
नौनिहालों ,
तुम
किसी बात का
शोक ना करना
रंज ना रखना
तुम्हारें तमाशों में
कोई
कमी
रखी नहीं जाएगी


इसलियें
शहीदों ,
देशभक्तों ,
और
जन सेवकों ,
विशारदों
की
भीड़ को
चीरता
कोई
क्रिकेटिया
भारत रत्न से
नवाजा जाएगा
अभी रुको
जलसा
ख़त्म नहीं हुवा
अभी
इसी मोड़ से
बस
थोड़ी देर में
देश का
जनाजा जाएगा |

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