फिर कोई लोभ का रावण , साधू सा वेश धर वोट मांगता है |
शहीदों ने खिंची थी जो लक्ष्मण रेखा वो फिर लहू मांगती है ||
Tarun Kumar Thakur,Indore (M P)
"मेरा यह मानना है कि, कवि अपनी कविता का प्रथम पाठक/श्रोता मात्र होता है |"
Tuesday, April 20, 2010
गुलाम
फिर बनी उनकी सरकार सब नौकर हो गए सता पर काबिज फिर संतरी और जोकर हो गए ! वंशवाद और सामंती शासन की स्मृती मिटती नहीं गुलाम मानस से परिवर्तन से जिनका जी घबराता है वो निश्चित ही सिंह की संतान नहीं !
bahut sundar rachana
ReplyDeleteshekhar kumawat
http://kavyawani.blogspot.com/