आज बहुत दिनों बाद
फिर चेतना लौटी है
मैं भी लौटा हू
चेतना में
बेसुध
बहुत लड़ा
अँधेरे की बंदिशों से
विश्वास
और
श्रद्धा की खडग भी
छूटने लगी थी..
तभी
इश्वर स्वयं
खडग बन
ढाल बन
खड़े हो गए
जीत हार का
अब मै क्या करू...
दे रहा हू दुवाए
दुश्मनों को
के
उन्हीने ही सही
ईश्वर का
दीदार तो करा दिया !
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