"सत्यम शिवम् सुन्दरम " ये तीन शब्द हमेशा मानस में मथते रहते है , और भारतीय सनातन मनीषा में इनका गहरा लक्ष्य या सरोकार कला से रहा है , या यू कहे कि समस्त जगत शिव पार्वती का क्रीडांगन ही है तो जीवन के वृहत्त पटल पर सूक्ष्म से लेकर अत्यंत व्यवहारिक चेतन सृष्टि तक , समस्त सार ही इन शब्दों में समा जाता है |
इन शब्दों का अलग अलग अर्थ तो बहुत व्यापक हो ही सकता है परन्तु इस विन्यास में ये सर्वाधिक सार्थक बन पड़े है | "सत्य ही शिव है , शिव ही सुन्दर है !" जैसा कि सामान्यत: भावार्थ किया जाता है , इसे भी सहज ही समझ पाना और आत्मसात कर पाना वैसे ही बहुत कठिन है फिर इसके ना ना अर्थों और व्याख्याओं का अनंत सिलसिला मिल सकता है |
सत्य बिना लाग लपेट के शुद्ध आचरण का आग्रह है और यहाँ प्रवंचना की कोई गुंजाइश है ही नहीं सो शिव को साक्षात करता है सत्य और केवल इसी रूप में दर्शनीय हो सकता है , सो यदि कोई ईश्वरीय सत्ता के साक्षात करना चाहता है तो उसका आधार व निष्कर्ष सत्य के अतिरिक्त और कुछ हो ही नहीं सकता | "सत्य ही शिव है ..." ये आख्यान हमारी श्रद्धा और विश्वास को अंतिम परिणिति देता है , वैसे तो सत्य प्रथमतया एक कल्पना या अवधारणा ही होता है , फिर उसका चाहे कोई नाम रख लो , मगर वो सत्य की ओर ही ले जाता है और वहा हमारा शिव सत्य से एकाकार हो जाता है और हम नि:संदेह शिव से एकाकार हो चुके होते है , बहुत पहले ही , तो सत्य तक यात्रा का लक्ष्य है शिव |
शिव की सहज व्याख्या करना अपने आप में एक अक्षम्य धृष्टता होगी , सो उनके पावन चरणों में श्रद्धा के फूल चढ़ाकर उन परम सनातन को प्रार्थना से ही प्रसन्न करना होगा , मगर प्रार्थना के मूलभूत नियमों में सर्वोपरि , पवित्रता को मासूमियत को सदैव स्मरण रखना होगा |ईमानदारी , स्वाभिमान , नि:स्वार्थता , त्याग कितने ही रूपों में कई तरह से ये प्रार्थना नित्य घटित होती है और जब यह घटित हो तो इसके साक्षी बने .... वही मार्ग है कैलाशवासी शिव के चरणों का |
"शिव ही सुन्दर है " , नाना प्रकार के आकर्षणों से बना ये जीवन वृत्त , इसमे पिता शिव , माँ पार्वती के साथ क्रीडा करते है , जगत कि स्रष्टि और लय ही नहीं करते , मध्य में विपुल सौन्दर्य और असीम वैविध्य का आमूल सर्जन भी करते है | उस घटित, अघटित , स्थूल एवं सूक्ष्म सौन्दर्य को कई तरह पुन:प्रस्तुत किया गया है , कई कई कलारूपों में और नाना भाति प्रयास जारी ही है | हर कण और हर नवसृजन हमें उसी कि झांकी देता है , जो शिव है जो सत्य है , बस हमारी दृष्टि की सीमा और प्रस्तोता कि मर्यादा उसे एकायामी या बहुआयामी तो बना पाती है पर पुर्नायाम तो शिव में ही मिलते है|
अंत में "सत्यम शिवम् सुन्दरम !" कह कर यही तक कह सकूंगा , उसके बारे में जिसे वेद भी "नेति , नेति .." कह चुके है |
श्री कृष्ण जन्माष्टमी की हार्दिक बधाई ।
ReplyDeleteअच्छा लेख ....
कृपया एक बार पढ़कर टिपण्णी अवश्य दे
(आकाश से उत्पन्न किया जा सकता है गेहू ?!!)
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Bahut badhiya lekhan
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