वो तो चाहते है
के
मै लडू तुमसे
और
वो जीत जाए
उनका काहिलपन
उनकी लाचारी
कैसे भी
छुप जाए
चाहे मंदिर जले
मंदिर टूटे
अस्मते लूटे
या
गिरे लाशें
उन्हें
करने है
नित नए तमाशे
तुम देखो
तुम्हे क्या करना है
मै
अपने विवेक पर हू
उन्हें लगने दो
के
उनकी ही टेक पर हू ...
उनकी ही तर्ज पर
कल
कुछ तुम बोल देना
मै सुन लूंगा
मै
गर कुछ कह भी दू
तुम भी भूल जाना
इन्हें आसान है
इनकी तर्ज पर हराना ..
अब
न्यायालय
और चुनाव आयोग
निरपेक्ष नहीं लगते
तो क्या करे ?
व्यवस्था ना सही
अव्यवस्था के ही साथ
ईमानदारी ना सही
भ्रष्टाचार के हाथ
इस अन्धकार युग से
लोकतंत्र की नैया
कैसे भी खेनी है
वो जो कर चुके
उसकी भरपाई
हमें भी देनी है |
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