वो
ना कल मोहताज थी
ना आज है मुफलिस
किसी मर्द ने ही
बेचे
ख़रीदे होंगे
उसके जेवर
उसका बदन
फिर
उसके बचे खुचे
वजूद को
मिटाने के लिए
ये चाल भी
खूब चली गयी होगी
औरत
क्या सिर्फ
औरत के हाथो
यू फिर फिर
छली गयी होगी !
आदमी खूब जानता है
वर्चस्व के पैतरे
त्रिया चरित्र
जैसे जुमले
आज
जड़ों से
उखाड़ चुके
नारी की
स्वाभिमान की अभिलाषा
उसे ही
फिर गढ़नी होगी
एक
"नारी" होने की परिभाषा ...
... बेहद प्रभावशाली अभिव्यक्ति है ।
ReplyDeleteदंग हो गयी हुँ...' फिरसे उसे गढनी होगी "नारी" होने की परिभाषा...' simply great...!
ReplyDeleteDhanywad Adaraniya !
Deleteder se hi sahi ... par dhanywad kubul kare Sanjay ji
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