Friday, April 7, 2023

और आत्मसम्मान बिकने लगा




पापा !

मुन्नू के पापा
उसे कार से
स्कूल छोड़ते है ...

और आप
फीस के लिए
गुल्लक तोड़ते है ?

मैं
आजकल
थोड़ा उदास रहता हू...

अपना दुःख
भीतर ही
सहता हू...

आप गुस्सा होंगे
इसलिए
नहीं कहता हू !

पापा
मैं समझता हू
 
आपने
कुछ सोच कर ही
इस स्कूल में डाला है
 
ये आपके
सपनों की पाठशाला है !

मगर
आप नहीं जानते...

टीचर से
ड्राइवर अंकल तक
सब
भेद करते है,

अपनी सोच का जहर
मेरे
नन्हे दिमाग में
रोज भरते है,

मैं क्या करू ?

मुरझा कर
रह जाता हू
 
तभी तो
बोर्नविटा पीकर भी
पनप नहीं पाता हूँ,

उसका
उतना दुःख नहीं है
 
आपके करीब होना
कम सुख नहीं है
 
मैं पलभर को
अपना गम
भूल भी जाता हू
 
जब
आपसे लिपट जाता हू
 
मगर फिर
जब माँ
आपसे तकरार करती है ....

बंगले
गाडी का
इसरार करती है...
 
तब मैं भी
मचल जाता हू !
 
जब वो ही
नहीं समझती
आपकी मजबूरी,
 
मेरी तो
अभी समझ भी
है अधूरी !

पापा !
मैंने भगवान से
कहा है...

मेरे पापा को
खूब पैसा देदे,

जिससे
खरीद सके वो
हमारे लिए
ढेर सारी खुशियाँ
 
और
अपने लिए
थोड़ा सा
सम्मान भी |


पापा !
ये "आत्मसम्मान" किसे कहते है ?

मैंने टीचर दीदी से पूछा
मगर वो
नाराज हो गयी !!

क्यों पापा ?
क्या वो इतनी बुरी चीज है ???

4 comments:

  1. तरुण जी,एक बालमन में उमडे इन की इस मर्मांतक प्रश्नों को काश!अतिमहत्वाकांक्षी और सरलमना पिता समझ पाये तो वैभव और विलासिता की पाठशाला में एक निरीह और नासमझ बालमन कुण्ठा और आत्महीनता के विकार से शायद मुक्त हो सम्मान और आत्मसम्मान का पाठ और अर्थ दोनों सहजता से समझ पाये।वो नादान पिता नहीं समझ4पाते दुनिया उनके हृदय सी सरल और उदार नहीं।अभी समाज संकीर्णता से मुक्त नहीं हो पा रहा।उसे ऊँच नीच की परम्परा का निर्वाह हर हाल में करना ही है।एक मार्मिक अभिव्यक्ति के लिए निशब्द हूँ!!!

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    1. आदरणीया रेणु जी ! सादर प्रणाम !
      सबसे पहले तो , इस आपाधापी और अतिव्यस्त युग में समय निकाल कर , की गयी आपकी वृह्द्द सहृदय प्रतिक्रिया के लिए , आपको बहुत बहुत साधुवाद !
      यह आपबीती वर्ष २०११ में मेरे छोटे से बालक पर बीती थी और तब की यह रचना फिर झाड़ पोंछ कर यहाँ रख रहा हूँ ! लगता है सिर्फ समय बदला है हालात तो और भी चुनौतीपूर्ण बन पड़े है !
      आपका पुन : अभिनन्दन , आशीर्वाद बनाये रखे !
      जय भारत ! जय भारती !

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  2. ग़रीबी का दंश जो झेलते हैं वही उसकी पीड़ा समझ सकते हैं

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    1. आदरणीया अनीता जी ! सादर प्रणाम !
      सत्य कहा आपने , यह आपबीती अब जगबीती बन गयी लगती है , रचना के मर्म को समर्थन देने के लिए
      आपका अभिनन्दन !
      जय भारत ! जय भारती !

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