जिसने रचा विश्व,
ब्रह्माण्ड, धरा ,गगन,
जल, अग्नि सहित समीर |
गहन वारिध को बांध,
तपा, वर्षाता,
बही: गतिमान,
अंत: स्थिर ||
तेज
तमोगुण से
आच्छादित,
रजोमयी,
मायाडम्बर वस्त्र धरे अनुपम |
तमोगुण से
आच्छादित,
रजोमयी,
मायाडम्बर वस्त्र धरे अनुपम |
लिंग , जाती , धर्म ,
विविध का रचनाकर
स्वयंभू अम्ब हे !
पुरुषोत्तम ||
विविध का रचनाकर
स्वयंभू अम्ब हे !
पुरुषोत्तम ||
तू ही अक्षर,
मात्रा,सब छंद
तुम्ही
तुझको लिखता
मन पाती बन
करुणाकर !
मात्रा,सब छंद
तुम्ही
तुझको लिखता
मन पाती बन
करुणाकर !
आशीष बनो
जगदीश !
हो कर कमल,
कागद मै बनु ,
मसि बनो तुम
गुणसागर !
जगदीश !
हो कर कमल,
कागद मै बनु ,
मसि बनो तुम
गुणसागर !
सुंदर प्रार्थना
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