
भूखे पेट 
सोये देश की
खोखली 
बंजर 
जमीन के नीचे 
चूहों ने 
बिल बनाये थे 
कुछ तो 
यही पैदा हुवे 
कुछ 
बाहर से 
आये थे |
खाकर 
दाना पानी
अब 
बीज पर 
नजर थी | 
इसकी 
अन्ना को 
फिकर थी | 
वो जाग रहा था 
जगा रहा था 
टूटा चरखा 
चला रहा था 
जो 
दरअसल 
गांधी के 
रथ का पहिया था |
जिसमे 
सुराज की 
धुन बाकी थी 
जिसने 
अपनी धोती 
फाड़ कर
अबला भारत की 
इज्जत ढ|की थी   |
उस सूत में 
अभी भी 
जान बाकी थी |
वो उठा 
उसने शंख बजाया था 
मरी भारतीयता को 
संजीवनी मन्त्र 
सुंघाया था |
आज वो ही 
अन्ना 
जंतर मंतर पर 
अड़ा है 
जाने किस दम पर 
खडा है |
मगर 
चूहों की सरकार में 
मची खलबली है 
दिल्ली में 
अजब सी 
चलाचली है 
जिसे देखो 
मैदान छोड़ 
भाग जाना चाहता है 
एक ही शोर है 
भागो चूहों भागो !
कि अन्ना आता है !
वाह! कमाल का लिखा है, दिल खुश हो गया पढ़कर, अन्ना जिंदाबाद!
ReplyDeletewa bhai wa!
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