क्रान्ति के पूर्व
होती है छटपटाहट
भीतर
कही कोने में
नक्कारखाने में
तूती की तरह
जैसे
रात के अँधेरे में
करते हो शोर
ढेर सारे झींगुर
मगर ...
क्रान्ति नहीं होती
लोग जागते है
या
जब अलसभोर हो
या
जब सिंह दहाड़ते है
निकट ,
निपट,
निर्भीक !
फिर कोई लोभ का रावण , साधू सा वेश धर वोट मांगता है | शहीदों ने खिंची थी जो लक्ष्मण रेखा वो फिर लहू मांगती है || Tarun Kumar Thakur,Indore (M P) "मेरा यह मानना है कि, कवि अपनी कविता का प्रथम पाठक/श्रोता मात्र होता है |"
Sunday, June 27, 2010
Monday, June 21, 2010
मेरी अपनी एक डगर है
कोई साथ चले ना चले
मुझे भीड़ से क्या लेना |
मेरी अपनी एक डगर है
मुझे भीड़ से क्या लेना ||
भीड़ मिटा देती स्व को |
भीड़ बड़ा देती भव को |
मै लिए सहज समभाव |
मुझे भीड़ से क्या लेना ||
भीड़ फिरा देती है सोच |
जगा कर उन्मादित जोश |
रुग्न ज्वर सी वेदनामय ,
मुझे भीड़ से क्या लेना ||
कसमसाता विवेक मुट्ठियों में
लहराता ज्यों सागर पर फेन |
जो अबूझ पहेली , हो स्वयं प्रश्न
मुझे भीड़ से क्या लेना ||
मेरी अपनी एक डगर है
मुझे भीड़ से क्या लेना ||
मुझे भीड़ से क्या लेना |
मेरी अपनी एक डगर है
मुझे भीड़ से क्या लेना ||
भीड़ मिटा देती स्व को |
भीड़ बड़ा देती भव को |
मै लिए सहज समभाव |
मुझे भीड़ से क्या लेना ||
भीड़ फिरा देती है सोच |
जगा कर उन्मादित जोश |
रुग्न ज्वर सी वेदनामय ,
मुझे भीड़ से क्या लेना ||
कसमसाता विवेक मुट्ठियों में
लहराता ज्यों सागर पर फेन |
जो अबूझ पहेली , हो स्वयं प्रश्न
मुझे भीड़ से क्या लेना ||
मेरी अपनी एक डगर है
मुझे भीड़ से क्या लेना ||
Friday, June 18, 2010
याद है मुझे कब पिछली बार हँसी थी वो
याद है मुझे कब पिछली बार हँसी थी वो ,
मेरी ही किसी बात पर बहुत हँसी थी वो |
जाने तब क्या सोच कर बहुत हँसी थी वो ...
खैर जो भी हो मगर क्या खूब हँसी थी वो |
हंसते हुवे पल्लू से ढँक लिया था चेहरा
आँचल के पार बिखर गयी ऐसी हंसी थी वो |
मैं भी हंसा था साथ था हाथों में उसका हाँथ
लेकर हाँथ मेरे साथ सारी रात हँसीं थी वो |
नहीं भूलती उसकी खनक आज भी सुनता हूँ
किसी घुंघरूं किसी पायल कि सी हँसी थी वो |
रूप और भी उजास से रंगों से भर गया था उसका
कोई भूलना भी चाहे ना भूले ऐसी हँसी थी वो |
एक अहसान है मुझपर उसका चुकाए नहीं चुकता
दिल उदास था उसका थी परेशान फिर भी हँसी थी वो |
उसकी हँसीं पर वरना क्यों नज्म लिखता यु ही तरुण
सारे अपने गम भुला के सिर्फ मेरे लिए हँसी थी वो |
मेरी ही किसी बात पर बहुत हँसी थी वो |
जाने तब क्या सोच कर बहुत हँसी थी वो ...
खैर जो भी हो मगर क्या खूब हँसी थी वो |
हंसते हुवे पल्लू से ढँक लिया था चेहरा
आँचल के पार बिखर गयी ऐसी हंसी थी वो |
मैं भी हंसा था साथ था हाथों में उसका हाँथ
लेकर हाँथ मेरे साथ सारी रात हँसीं थी वो |
नहीं भूलती उसकी खनक आज भी सुनता हूँ
किसी घुंघरूं किसी पायल कि सी हँसी थी वो |
रूप और भी उजास से रंगों से भर गया था उसका
कोई भूलना भी चाहे ना भूले ऐसी हँसी थी वो |
एक अहसान है मुझपर उसका चुकाए नहीं चुकता
दिल उदास था उसका थी परेशान फिर भी हँसी थी वो |
उसकी हँसीं पर वरना क्यों नज्म लिखता यु ही तरुण
सारे अपने गम भुला के सिर्फ मेरे लिए हँसी थी वो |
गाँधी
गाँधी ,
एक शब्द है ,
जिसमे आत्मा भी है |
गांधी ...
एक विचार
भर नहीं है |
एक समस्या बन गया है !
उनके लिए ,
जिन्हों ने ,
सहज ही साध रक्खे है '
सत्ता के सारे सूत्र |
उनकी पीढिया ,
पहन रही है ,
गाँधी की उतरन |
बेशर्म होकर ,
जिन्होंने ,
गरीबो की झोपडियो में ,
झुग्गियों में ,
किलेबंदी
कर रक्खी है |
उस सोच के खिलाफ ,
जिसका नाम ,
गाँधी है |
एक शब्द है ,
जिसमे आत्मा भी है |
गांधी ...
एक विचार
भर नहीं है |
एक समस्या बन गया है !
उनके लिए ,
जिन्हों ने ,
सहज ही साध रक्खे है '
सत्ता के सारे सूत्र |
उनकी पीढिया ,
पहन रही है ,
गाँधी की उतरन |
बेशर्म होकर ,
जिन्होंने ,
गरीबो की झोपडियो में ,
झुग्गियों में ,
किलेबंदी
कर रक्खी है |
उस सोच के खिलाफ ,
जिसका नाम ,
गाँधी है |
अकल बड़ी कि भैस बड़ी ?
अकल बड़ी कि भैस बड़ी ?
इसी सोच में अकल पड़ी
भैस खडी पगुराएगी
अकल कि चल ना पाएगी
सींग उठाए भैस खडी
पूंछ उठाए भैंस खडी
गोबर देगी या दूध अड़ी
पड़ी चौराहे अकल सड़ी
भैंस बिक गयी खडी खडी
दूध पीकर जो अकल बड़ी
भैंस से जाकर जुडी कड़ी
कैसे अहसान चुकाएगी
भैंस समझ ना पायेगी
अकल बीन बजाएगी
भैंस खडी मुस्काएगी
जो भैंस पानी में उतर गयी
रह जायेगी अकल खडी
अकल के पीछे भैंस पड़ी
जमीन जाकर अकल गडी
चारा बन उग जायेगी
भैंस उसे चर जायेगी
अकल लग रही हरी हरी
भैंस देखकर डरी डरी
भैंस देखकर अकल झड़ी
भैंस बड़ी कि अकल बड़ी ???
इसी सोच में अकल पड़ी
भैस खडी पगुराएगी
अकल कि चल ना पाएगी
सींग उठाए भैस खडी
पूंछ उठाए भैंस खडी
गोबर देगी या दूध अड़ी
पड़ी चौराहे अकल सड़ी
भैंस बिक गयी खडी खडी
दूध पीकर जो अकल बड़ी
भैंस से जाकर जुडी कड़ी
कैसे अहसान चुकाएगी
भैंस समझ ना पायेगी
अकल बीन बजाएगी
भैंस खडी मुस्काएगी
जो भैंस पानी में उतर गयी
रह जायेगी अकल खडी
अकल के पीछे भैंस पड़ी
जमीन जाकर अकल गडी
चारा बन उग जायेगी
भैंस उसे चर जायेगी
अकल लग रही हरी हरी
भैंस देखकर डरी डरी
भैंस देखकर अकल झड़ी
भैंस बड़ी कि अकल बड़ी ???
Wednesday, June 16, 2010
आपस की बात Day 1
दिल तो है दिल
दिल तो पागल है
दिल ही तो है
ये दिल ना होता बेचारा
आदि
ना जाने कितने जुमलो से
सताया दिल को
फिर
दिल टूट गया एक दिन
तो रोना लेकर बैठे
दिल तोड़ने वाले
दिल तोड़के जाते हो
टूटे हुवे दिल से
वगैरह वगैरह
अरे भाई
दिल एक है
और कीमती भी
व्यस्त भी
और
तुम्हारे कारण
त्रस्त भी
उसे अपने कारण नहीं
तुम्हारी गलतियों के कारण
करवाना पड़ते है
तीन तीन बाइपास
और
तुम्हारे चक्कर में बेचारा
हो जाता है
नापास
तुम तो झट कह देते हो
यार हार्ट फेल हो गया
अरे कभी
किसी को
ये कहते सुना है
कि हमारा दिल अव्वल आया है
लो मिठाई खालो
नहीं ना
तो हमसे कुछ नुस्खे ले लो
मुफ्त नहीं मिलेंगे
यहाँ ससुरी सबको
मुफ्त की बड़ी चाट लगी है
अभी मुफ्त दे दूंगा
तो कल कौन पूछेगा
तो भाई
कीमत मैं बाद में वसुलुंगा
आखिर में ..
पहले नुस्खे नोट कीजिये
नुस्खा नंबर एक
बन जाइए नेक
ना की घुटने टेक
भाई भीतर के स्वाभिमान को
जिलाए रखिये
और
इसके लिए
एक शौक जरुर पालिए
क्या कहा
शौक नहीं पालते
पालना भी नहीं चाहते
तो
एक कुत्ता पाल लीजिये
क्या कहा
कुत्ते से एलर्जी है
कुत्ता काट लेता है
कुत्ता गन्दगी करता है
लीजिये
अभी नुस्खे देना
शुरू भी नहीं किया
और नखरे शुरू
चलिए नुस्खा नंबर दो
अपना नंबर दो
हां हां
अपना नंबर दीजिये
और मेरा लीजिये
अगर लड़का है
तो लड़की को
आंटी है तो अंकल को
कवि है तो श्रोता को
कवि , कवि को भी दे सकते है
क्या कहा
आपने दिया है
और आप ज्यादा परेशान है
किसको दिया
बीमा वाले को
बैंक वाले को
रिकवरी वाले को भी
अरे बाप रे उनको भी
चलिए छोडिये
आपकी समस्या
ज्यादा गंभीर है
आप बात ही
पूरी नहीं सुनते
कान की दवा आँखों में
आँखों की वहा
जाने क्या क्या करते है
नुस्खा नंबर तीन
हो जाओ तल्लीन
हां
किसमे
नहीं दारु बिलकुल नहीं
सेक्स भी योग्यता अनुसार
लिहाज शर्म और एहतियात के साथ
मैं तो
ध्यान की बात कर रहा हूँ
ध्यान दो बाबा
विषय से मत भटको
अब तुम क्या करने लगे
बाबा रामदेव खोल कर बैठ गए
अरे बाबा वो योग है
मैं ध्यान
ध्यान कि बात कर रहा हु
रुको
इससे पहले कि तुम और किसी
बाबा का चैनल
लगा लो
मैं सबसे आसान
एक दम घरेलु टैप का
नुस्खा बताता हु
दिल लगाओ
जी हां दिल को
काम में लगाओ
वो काम नहीं
अच्छा एक दिन
गलती से
सुबह उठो
जोगिंग सूट पहनो
और सड़क पर
गार्डन में
पार्क में
घूम आओ
तुम्हे दिल लगाने के
कई सामान मिलेंगे
और
मौके भी
तो क्या कहते हो
मिले सुबह
कहा पार्क में या
मैदान में
अजी साहब
सुबह जल्दी जागने
और भागने वालो से
दिल लगाइए
आपका दिल नहीं टूटेगा
और
फेल तो क्या
सप्लिमेंटरी भी नहीं आएगी
पास कराने की
हमारी गारंटी है साहब
अब लगे हाथो
फीस कि बात भी
कर डालते है
तो
जनाब
अब तो मुस्कुरा दो
आहा
ज़रा और , ज़रा और
ये हुई ना बात
तो ये थी आज की बात
क्या कहते हो
होती है
कल फिर मुलाक़ात
लिखना जरुर
कैसी लगी
ये
आपस की बात
दिल तो पागल है
दिल ही तो है
ये दिल ना होता बेचारा
आदि
ना जाने कितने जुमलो से
सताया दिल को
फिर
दिल टूट गया एक दिन
तो रोना लेकर बैठे
दिल तोड़ने वाले
दिल तोड़के जाते हो
टूटे हुवे दिल से
वगैरह वगैरह
अरे भाई
दिल एक है
और कीमती भी
व्यस्त भी
और
तुम्हारे कारण
त्रस्त भी
उसे अपने कारण नहीं
तुम्हारी गलतियों के कारण
करवाना पड़ते है
तीन तीन बाइपास
और
तुम्हारे चक्कर में बेचारा
हो जाता है
नापास
तुम तो झट कह देते हो
यार हार्ट फेल हो गया
अरे कभी
किसी को
ये कहते सुना है
कि हमारा दिल अव्वल आया है
लो मिठाई खालो
नहीं ना
तो हमसे कुछ नुस्खे ले लो
मुफ्त नहीं मिलेंगे
यहाँ ससुरी सबको
मुफ्त की बड़ी चाट लगी है
अभी मुफ्त दे दूंगा
तो कल कौन पूछेगा
तो भाई
कीमत मैं बाद में वसुलुंगा
आखिर में ..
पहले नुस्खे नोट कीजिये
नुस्खा नंबर एक
बन जाइए नेक
ना की घुटने टेक
भाई भीतर के स्वाभिमान को
जिलाए रखिये
और
इसके लिए
एक शौक जरुर पालिए
क्या कहा
शौक नहीं पालते
पालना भी नहीं चाहते
तो
एक कुत्ता पाल लीजिये
क्या कहा
कुत्ते से एलर्जी है
कुत्ता काट लेता है
कुत्ता गन्दगी करता है
लीजिये
अभी नुस्खे देना
शुरू भी नहीं किया
और नखरे शुरू
चलिए नुस्खा नंबर दो
अपना नंबर दो
हां हां
अपना नंबर दीजिये
और मेरा लीजिये
अगर लड़का है
तो लड़की को
आंटी है तो अंकल को
कवि है तो श्रोता को
कवि , कवि को भी दे सकते है
क्या कहा
आपने दिया है
और आप ज्यादा परेशान है
किसको दिया
बीमा वाले को
बैंक वाले को
रिकवरी वाले को भी
अरे बाप रे उनको भी
चलिए छोडिये
आपकी समस्या
ज्यादा गंभीर है
आप बात ही
पूरी नहीं सुनते
कान की दवा आँखों में
आँखों की वहा
जाने क्या क्या करते है
नुस्खा नंबर तीन
हो जाओ तल्लीन
हां
किसमे
नहीं दारु बिलकुल नहीं
सेक्स भी योग्यता अनुसार
लिहाज शर्म और एहतियात के साथ
मैं तो
ध्यान की बात कर रहा हूँ
ध्यान दो बाबा
विषय से मत भटको
अब तुम क्या करने लगे
बाबा रामदेव खोल कर बैठ गए
अरे बाबा वो योग है
मैं ध्यान
ध्यान कि बात कर रहा हु
रुको
इससे पहले कि तुम और किसी
बाबा का चैनल
लगा लो
मैं सबसे आसान
एक दम घरेलु टैप का
नुस्खा बताता हु
दिल लगाओ
जी हां दिल को
काम में लगाओ
वो काम नहीं
अच्छा एक दिन
गलती से
सुबह उठो
जोगिंग सूट पहनो
और सड़क पर
गार्डन में
पार्क में
घूम आओ
तुम्हे दिल लगाने के
कई सामान मिलेंगे
और
मौके भी
तो क्या कहते हो
मिले सुबह
कहा पार्क में या
मैदान में
अजी साहब
सुबह जल्दी जागने
और भागने वालो से
दिल लगाइए
आपका दिल नहीं टूटेगा
और
फेल तो क्या
सप्लिमेंटरी भी नहीं आएगी
पास कराने की
हमारी गारंटी है साहब
अब लगे हाथो
फीस कि बात भी
कर डालते है
तो
जनाब
अब तो मुस्कुरा दो
आहा
ज़रा और , ज़रा और
ये हुई ना बात
तो ये थी आज की बात
क्या कहते हो
होती है
कल फिर मुलाक़ात
लिखना जरुर
कैसी लगी
ये
आपस की बात
Tuesday, June 15, 2010
लो सखी आया झूम के सावन !
लो सखी आया झूम के सावन !
गिरी बूंदे "खन खना खन"
मन के आँगन ,
पसर गया पानी राहो पे
भींगी छत भरी छाजन |
इसी की राह तो तकती थी
आये झूम के सावन|
सखी देख इतरा के
वो आया झूम के सावन ||
लता भी , झाड , झाडी ,
घास ,पत्ते, मन
भिंगो कर हर कली
हर अनछुआ तन |
सिंगार अवनी का बना ,
ज्यों कृपण को धन
सहेजू तो कहा? कैसे?
हर कतरा मधुर कण-कण ||
इतराऊ भी इठलाऊ,
बजा पायल सजा कंगन
लिवाने अबके गौने में
जैसे आये मेरे साजन ||
एक बूंद तो देखो कैसे
होठो पर गिरी बेहया बैरन
बन पिया का प्रेम चुम्बन
जो उडी संग ही ले गई मन ||
मंदिर भी भींगा ,भींगी मस्जिद,
"बिगड़ बन बन" "बिगड़ बन बन" |
मानो गा रही बूंदे भी
"जन - गण - मन" हां "जन - गण - मन"||
जैसे बजते हो नुपुर
"छनक छम छम " "झनन झुन झुन "|
तबले पर थाप हो जैसे
"तिगड़ धिन त़ा " "तिगड़ धुन धुन"||
इतना ही तो माँगा था हरिया ने
हो नत , कर नमन भींगे नयन |
चिड़िया ने माँगा दाना-दुग्गा,
माँगा एक नीड ना माँगा ऊचा भवन ||
तू श्याम हो जा ,श्याम से घनश्याम होजा
ओ रुपहले नीले गगन |
तेरे स्वर में तर बतर हो "तरुण "
भीजता ,
सीजता,
शीतल ,
मगन ||
गिरी बूंदे "खन खना खन"
मन के आँगन ,
पसर गया पानी राहो पे
भींगी छत भरी छाजन |
इसी की राह तो तकती थी
आये झूम के सावन|
सखी देख इतरा के
वो आया झूम के सावन ||
लता भी , झाड , झाडी ,
घास ,पत्ते, मन
भिंगो कर हर कली
हर अनछुआ तन |
सिंगार अवनी का बना ,
ज्यों कृपण को धन
सहेजू तो कहा? कैसे?
हर कतरा मधुर कण-कण ||
इतराऊ भी इठलाऊ,
बजा पायल सजा कंगन
लिवाने अबके गौने में
जैसे आये मेरे साजन ||
एक बूंद तो देखो कैसे
होठो पर गिरी बेहया बैरन
बन पिया का प्रेम चुम्बन
जो उडी संग ही ले गई मन ||
मंदिर भी भींगा ,भींगी मस्जिद,
"बिगड़ बन बन" "बिगड़ बन बन" |
मानो गा रही बूंदे भी
"जन - गण - मन" हां "जन - गण - मन"||
जैसे बजते हो नुपुर
"छनक छम छम " "झनन झुन झुन "|
तबले पर थाप हो जैसे
"तिगड़ धिन त़ा " "तिगड़ धुन धुन"||
इतना ही तो माँगा था हरिया ने
हो नत , कर नमन भींगे नयन |
चिड़िया ने माँगा दाना-दुग्गा,
माँगा एक नीड ना माँगा ऊचा भवन ||
तू श्याम हो जा ,श्याम से घनश्याम होजा
ओ रुपहले नीले गगन |
तेरे स्वर में तर बतर हो "तरुण "
भीजता ,
सीजता,
शीतल ,
मगन ||
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