Wednesday, September 15, 2010

"नारी" होने की परिभाषा ...

वो
ना कल मोहताज थी
ना आज है मुफलिस
किसी मर्द ने ही
बेचे
ख़रीदे होंगे
उसके जेवर
उसका बदन
फिर
उसके बचे खुचे
वजूद को
मिटाने के लिए
ये चाल भी
खूब चली गयी होगी
औरत
क्या सिर्फ
औरत के हाथो
यू फिर फिर
छली गयी होगी !

आदमी खूब जानता है
वर्चस्व के पैतरे
त्रिया चरित्र
जैसे जुमले
आज
जड़ों से
उखाड़ चुके
नारी की
स्वाभिमान की अभिलाषा
उसे ही
फिर गढ़नी होगी
एक
"नारी" होने की परिभाषा ...

Monday, September 13, 2010

"नारी" और कितने छिद्रान्वेषण

नारी
एक छेद भर नहीं है
के
तुम उढेल दो
अपनी कुंठाएं
और
पूर्वाग्रह

नारी
बिस्तर भी नहीं है
के
तुम बिछा दो
ढक दो
तप्त
नंगी
सच्चाइयों को

नारी
खिलौना नहीं है
के
बदलते रहो
तोड़ते रहो
अपनी समझ के
बुढ़ाने तक

नारी
शराब नहीं है
जो
परोसी जाए
गलीज सौदे के एवज

नारी
सीढ़ी नहीं है
के
घिसती रहे
पत्थर होने तक !

नारी
एक दिल है
आत्मा है
आस्था है
स्तम्भ है
जिस पर टिकी है
खोखली इंसानियत
जिसकी अगुवाई
सिर्फ
पुरुष करते आये है ..... अब तक !

Thursday, September 9, 2010

मानव का ईतिहास

मानव का ईतिहास
मानवता के ह्रास का भी
दस्तावेज है
इसे झूठ के पुलिंदो
और
अनगिनत लाशों से
छुपा दिया गया है
करोड़ो शब्दों की
सुखी घास के पीछे
जो सुलग उठती है
सच और साहस के
एक झौके से
जो
पैदा होता है
भूख और युद्ध की कोख से
जिसमे जल जाते है
काले पड़ जाते है
कई चहरे
जो पूजे जाते थे
जलसा घरों से
न्यायालयों तक ...

अगर सच ही पढ़ना है
तो
कहानी या कविता पढ़ना
वरना वक्त बिताने के लिए
ईतिहास अच्छी चीज है |

Wednesday, September 1, 2010

"सत्यम शिवम् सुन्दरम"

"सत्यम शिवम् सुन्दरम " ये तीन शब्द हमेशा मानस में मथते रहते है , और भारतीय सनातन मनीषा में इनका गहरा लक्ष्य या सरोकार कला से रहा है , या यू कहे कि समस्त जगत शिव पार्वती का क्रीडांगन ही है तो जीवन के वृहत्त पटल पर सूक्ष्म से लेकर अत्यंत व्यवहारिक चेतन सृष्टि तक , समस्त सार ही इन शब्दों में समा जाता है |
इन शब्दों का अलग अलग अर्थ तो बहुत व्यापक हो ही सकता है परन्तु इस विन्यास में ये सर्वाधिक सार्थक बन पड़े है | "सत्य ही शिव है , शिव ही सुन्दर है !" जैसा कि सामान्यत: भावार्थ किया जाता है , इसे भी सहज ही समझ पाना और आत्मसात कर पाना वैसे ही बहुत कठिन है फिर इसके ना ना अर्थों और व्याख्याओं का अनंत सिलसिला मिल सकता है |
सत्य बिना लाग लपेट के शुद्ध आचरण का आग्रह है और यहाँ प्रवंचना की कोई गुंजाइश है ही नहीं सो शिव को साक्षात करता है सत्य और केवल इसी रूप में दर्शनीय हो सकता है , सो यदि कोई ईश्वरीय सत्ता के साक्षात करना चाहता है तो उसका आधार व निष्कर्ष सत्य के अतिरिक्त और कुछ हो ही नहीं सकता | "सत्य ही शिव है ..." ये आख्यान हमारी श्रद्धा और विश्वास को अंतिम परिणिति देता है , वैसे तो सत्य प्रथमतया एक कल्पना या अवधारणा ही होता है , फिर उसका चाहे कोई नाम रख लो , मगर वो सत्य की ओर ही ले जाता है और वहा हमारा शिव सत्य से एकाकार हो जाता है और हम नि:संदेह शिव से एकाकार हो चुके होते है , बहुत पहले ही , तो सत्य तक यात्रा का लक्ष्य है शिव |
शिव की सहज व्याख्या करना अपने आप में एक अक्षम्य धृष्टता होगी , सो उनके पावन चरणों में श्रद्धा के फूल चढ़ाकर उन परम सनातन को प्रार्थना से ही प्रसन्न करना होगा , मगर प्रार्थना के मूलभूत नियमों में सर्वोपरि , पवित्रता को मासूमियत को सदैव स्मरण रखना होगा |ईमानदारी , स्वाभिमान , नि:स्वार्थता , त्याग कितने ही रूपों में कई तरह से ये प्रार्थना नित्य घटित होती है और जब यह घटित हो तो इसके साक्षी बने .... वही मार्ग है कैलाशवासी शिव के चरणों का |
"शिव ही सुन्दर है " , नाना प्रकार के आकर्षणों से बना ये जीवन वृत्त , इसमे पिता शिव , माँ पार्वती के साथ क्रीडा करते है , जगत कि स्रष्टि और लय ही नहीं करते , मध्य में विपुल सौन्दर्य और असीम वैविध्य का आमूल सर्जन भी करते है | उस घटित, अघटित , स्थूल एवं सूक्ष्म सौन्दर्य को कई तरह पुन:प्रस्तुत किया गया है , कई कई कलारूपों में और नाना भाति प्रयास जारी ही है | हर कण और हर नवसृजन हमें उसी कि झांकी देता है , जो शिव है जो सत्य है , बस हमारी दृष्टि की सीमा और प्रस्तोता कि मर्यादा उसे एकायामी या बहुआयामी तो बना पाती है पर पुर्नायाम तो शिव में ही मिलते है|
अंत में "सत्यम शिवम् सुन्दरम !" कह कर यही तक कह सकूंगा , उसके बारे में जिसे वेद भी "नेति , नेति .." कह चुके है |

Thursday, August 26, 2010

दुश्मन तेरा शुक्रिया !

आज बहुत दिनों बाद
फिर चेतना लौटी है
मैं भी लौटा हू
चेतना में

बेसुध
बहुत लड़ा
अँधेरे की बंदिशों से
विश्वास
और
श्रद्धा की खडग भी
छूटने लगी थी..

तभी
इश्वर स्वयं
खडग बन
ढाल बन
खड़े हो गए
जीत हार का
अब मै क्या करू...

दे रहा हू दुवाए
दुश्मनों को
के
उन्हीने ही सही
ईश्वर का
दीदार तो करा दिया !

Monday, August 23, 2010

जीवन की पाठशाला में

क्रोध की सीमा
और
मर्यादाओं के भंग तक
रोज तमाशों से
गुजरता हु
भोगता हूँ
अपने ही
उपेक्षित व्यवहार से
उपजी वित्रश्ना
और
दुर्व्यवहार को |

सीखता हू
सोचता हू
और कितना
कब तक
सीखना
सहना
बाकी है
जीवन की पाठशाला में |

Monday, August 16, 2010

१६ अगस्त मनाओ

१६ अगस्त मनाओ

आज थोड़ा सड़को पर निकल जाओ
जहा से कल हुजूम निकला था
तथाकथित देशभक्तों का
सड़क के किनारे पड़े ,
नाली में
झंडे उठाओ (अगर कर सको )
फिर देखो
उस मैदान की तरफ
जहां
कल सभा हुई थी आम
जिसमे ख़ास लोग आये थे
उस मैदान में
कल तक
बच्चे
फूटबाल खेला करते थे
अब
पूरा मैदान गड्ढों से भरा है
भीतर कीचड़ और कचरा भरा है
देखो
सफ़ेद खादी पहने
जो गुंडा
कल
झंडे का सरेआम
अपमान कर रहा था
आज वसूली कर रहा है
पुलिसवाला
जिसकी कमाई
कल मारी गयी थी
ड्यूटी और खातिरदारी में
जिसकी भूक और नींद भी गयी थी
आज फिर
चुस्ती से चौराहे पर अडा है
लाल बत्ती पर
पहरा कडा है
आज
भले कही बम फूटे
चाहे
कोई घर लूटे
इनसे आस मत रखना
मगर
भीतर
कही भारत को ढूँढना
पोछना
सम्हाल कर रख देना
क्योकि
बीते कल
बहुत अपमान हुवा है
मेरे भारत का
लालकिले से चौराहे तक
(शहीदों और सुभाष की दुखती आत्मा को श्रद्धांजलि सहित..जय हिंद !)