Tuesday, March 22, 2011

सोलहवे चुनाव के नज़ारे






बहुत सारे
गांधी
नजर आयेंगे
कुछ लोगो को
राम भी
याद आयेंगे
बाबा रामदेव भी
जुगाडासन लगायेंगे
दो चार करोड़
फर्जी
और
बीस पच्चीस करोड़
विथ मर्जी
वोटर लिस्ट में
जुड़ जायेंगे
बेरोजगार
दिग्भ्रमित
युवा
ना ना मोर्चो के
झंडे उठाएंगे
जेल भी जायेंगे
लाठियां
गोलियां
खायेंगे
सिम्पेथी की खातिर
एकाध गांधी
लुढ़का भी दिए जायेंगे
बीते मुद्दों की
मटियामेट
मजारों पर
भाषणों के
बासी फूल
चढ़ाएंगे
घराने
पुराने
दीवाने
सभी
किस्मत आजमाएंगे
छुट्टी वाले दिन
माध्यम वर्गी
झुंझलाते
निम्न वर्गी
धकियाते
उच्च वर्गी
इतराते
बटन दबाने जायेंगे
अंततोगत्वा
करोड़ो गधे मिलकर
नया धोबी
चुन आयेंगे
जो
संसद के
धोबीघाट पर
कलंकितों के
काले कपडे धोएगा
वक्त बेवक्त
विदेश जाकर
सोयेगा
मीडिया
और
विश्व मंच पर
रोयेगा
इससे
हमारी
निरुपारॉय वाली
रोतालू इमेज
फिर जमेगी
नयी सरकार
लुट खसोट के
नए पैतरे चलेगी

अपन को
इसमे
कोई इंटरेस्ट नहीं है
ये इंडिया
अपना भारत
जो नहीं है
अपने राम तो
स्वराज्य से सुराज के
सपने बुनेंगे
ऐसे ही किसी
लोकतंत्र के
मातमी ठीये पे
अपन फिर मिलेंगे

Tuesday, March 8, 2011

हमार गुजारिस !

सोचा
चलो एक याचिका
हम भी
डाल आते है
क्या है ना कि
यहाँ के जज
हमारे मौसा है
तो साहब
डाल दिए अर्जी
कि
इच्छा मृत्यु चाहिए
बुलाये गए
कोर्ट मा
दुई वकील
पिल पड़े
सरकारी किताब का
लट्ठमार भाषा में
क्यों भाई कल्लू
इच्छा मृत्यु चाहिए ?
हम कही
हां साहेब
हुई सके तो
बड़ी मेहरबानी होगी
कागज़ पत्तर
सब तैयार है
कौनो कमी रही
तो हुजुर देख ले
बाकी तो
आप खुदे समझदार है
जो खर्चा होगा
देख लेंगे
एक बार
इच्छा मिरतु मिल जाय
बस
हमारे चहरे को
बड़े गौर से
तक रहे थे
काले कोट वाले बाबू
गले मा अटक गया
उनके तमाकू
बोले हीचकाय के
डोले मचकाय के
क्या राशन कार्ड बनवा रहे हो
हमें कोर्ट में ही
रिश्वत खिला रहे हो
अरे भाई
क्यों
अदालत का वक्त
बर्बाद करते हो
बताओ बात क्या है
क्यों मरना चाहते हो
एड्स , केंसर
या लकवा हुवा है ?
या ब्रेन डेड हो लिए हो
अरे भाई
अदालत ने
अभी छूट नहीं दी है
अभी संसद की
मुहर बाकी है
इसीलिए हमने
इस पर
ना
की है
का कहा हुजुर
तो का
इच्छा मिरत्तु भी
संसद ही देगी
ससुरों के पास
पहले का
पावर कम थी
जो उनका
जमराज बनाय रहे हो
अरे हत्यारन हाथों
इच्छा मृत्यु
थमाय रहे हो !!!
अरे
हम तो सोचे थे
महाभारत के
भीष्म की तरह
देश की जनता को
वरदान मिला है
एही खातिर
अरजी दिए थे
के कम से कम
मरने का अधिकार
तो
अपना होगा
अब तो लागत है
घर मकान
खेत दूकान
कि तरह
ये भी बस
सपना होगा

त़ा हम तो
बुझ लिए
बकील बाबू से
और
देखे जाइत है
गुजारिश
बाकी
ऐ हमार
किसान
मजूर भाई
ना मरिहोऊ
छोड़ के
घर बिटुआ
देश
इन हरामियन के हाथ
छोड़ के लावारिस |
बस
आपन तो
इतनी ही हो
जनता से गुजारिश |

Monday, March 7, 2011

ख़रीदे टिकट का दरद देखिये !

ट्रेन के डिब्बे में
गपशप थी चालू
सभी खा रहे थे
समोसे बिना आलू
प्रधान जी बोले
अरे भोले
रेलवे का भी
बड़ा बुरा हाल है
लगता था
पहले
लालू की ससुराल है
अब ससुरा
पूरा बंगाल है
ये मिनिस्टर
इसे
भैंस की तरह
हांक रहे है
और हम
बर्थ के लिए
हाफ रहे है
और चारा ही क्या है
बिटुआ
पूरे देश का
ऐसा ही हाल है
कही बाढ़
कही जाड़ा
कही अकाल है
ऐसे में
जनता करे भी
तो क्या करे
जब
पी एम् ही लाचार है
हमने पूछा
चचा
टिकट लिए हो
बोले हां बिटुआ
हमने फिर पूछा
प्लेटफार्म पर
थूके हो
बोले हां बिटुआ
कितना मजा आया
मजा क्या बिटुआ
हक़ बनता है
टिकट लिए है
पूरा दस रुपिया दिए है
हमने कहा
उ जौन
राजधानिया में
बैठे
देश पर
कुल्ला करत है
उ दरअसल
टिकट खर्चे का
दरद है
अब बुझे
अरे
बुझे की नाही
लिखत लिखत
हमारी तो
सुखी जाय है स्याही

जय राम जी की भैया !

Thursday, March 3, 2011

हमारी भी गिनती हो गयी !

हरिया खुश
घरवाली खुश
चलो
हमारी भी
गिनती हो गयी

टीचर पस्त
कर्मचारी त्रस्त
अब
बेगारों में
इनकी भी
गिनती हो गयी

सरकार मस्त
तेज है गस्त
चलों
ये भी
खानापूर्ति
हो गयी

कौन गरीब ,
कौन किसान ,
अगड़ा ,
पिछड़ा ,
महिला ,
पुरुष ,
सब
गडमड पडा है
सरकारी गोदामों में |

अब
इसमे से
आंकड़े
निकाले जायेंगे
अंदाजे
लगाए जायेंगे
विदेशो से
ऋण
उगाहे जायेंगे

ना
गरीबी घटी
ना ही बढ़ी
विकास दर
लो
हमने
मानदंड ही
बदल दिए
अब देखो
नए चश्मे से
सब
हरा हरा
दिखाया जाएगा
सन पचास को
नया माडल
बनाया जाएगा

नयी
जनसंख्या नीती
और
विकास की
अफलातूनी झांकी
सजाई जायगी
फिर
दस बरस बाद
नयी
जनगणना की
डुगडुगी
बजाई जायेगी

तब तक
जो हाथ पैर
मार सका
खुद ही
किनारे
लग जाएगा
बाकी का
भारत
खुद ही
सलट जाएगा

ज़रा पूछो
ये
किसे
मुरख बनाते है
और
किस मुह से
नयी पीढ़ी को
पुराने सबक
पढ़ाते है

आज
कितने सरकारी
स्कूलों में
शिक्षक आते है ?
श्रेष्ठी वर्ग के बच्चे
किस स्कूल में
जाते है ?
बिना ईलाज
कितनी मौते
रोज होती है ?
किसानो की
आत्महत्या पर
कितनी विधवाएं रोती है ???

कितने लोग
फूट्पातों पर
सोते है ?
कितने
बलात्कार
हर मिनट होते है ?
मासूम बच्चे
क्यों
बोझा
ढोते है ?
आज भी
मंत्री की
उपस्थिति में
कितने
बाल विवाह
होते है ???

किसके बच्चे
विदेशों में
पढ़ते है ?
किसके बच्चे
मिटटी से
भविष्य
गढ़ते है ?

कौन
बेवकूफ !!!
अपने
आँख के तारे को
सीमा पर
भेजता है ?
किसका दिल
भूख पर
पसीजता है ?

कौन
चुराता है टेक्स ?
किसके घर
पड़ते है
दिन में भी डाके ?
किसको
करने होते है
हर रोज फाके ?

कोई जनगणना
जवाब नहीं देती
किसी
देशहित के सवाल का
कौन खर्च उठाता है
आखिर
इस तुगलकी बवाल का ?

Monday, February 28, 2011

अजब बन्दर बाट है साहब [:)]

बजट आते रहेंगे
जैसे
आजादी के बाद
दसियों बार
आये
और
बीत गए

बीत गए
सो
बीत गए
अब उनका
कोई भान नहीं
ये वाला
नया है

नया है
मगर
पुराना है

नया है
क्योंकि अभी
आया है
संशोधन
अभी
बाकी है ...मेरे दोस्त

पुराना है
क्योंकि
चौकाता नहीं है
फुसलाता है
उम्मीद
जगाता है
सरकार
बचाता है
ढोल
बजाता है
शोर
मचाता है

मगर
इसमे
बहुत से
मगर है
किन्तु है
परन्तु भी है
जिन्हें
जाहिर होने को
पूरा सत्र
पडा है
जल्दी क्या है
अभी तो
जनता खुश है
सरकार
उनींदी है
शेयर
उछल रहे है
प्रचार / समाचार तंत्र
मचल रहे है

कुल जमा
चार
सब खुश है
यार
तो तुम क्यों ...
ख्वामखा
रुसवा होते हो
क्यों नहीं
बहती गंगा में
हाथ धोते हो

मगर नहीं साहब
बुद्धिजीवी होना भी
कम बीमारी नहीं है
जिसका कोई
ईलाज नहीं है

बड़े मियाँ सोच रहे है
मंसूबों के
तम्बू तान रहे है
स्विस अकाउंट को
अपना मान रहे है
उन्हें लगता है
लौटे हुवे रुपयों में
बिटिया ब्याह जायेगी
राधे को लगता है
उसके खूंटे भी
जरसी बंध जायेगी

बाबा
के साथ
सब
टकटकी लगा
ताक रहे है
सरकारी गल्ले में
झाँक रहे है
बाहर से पैसा
अब आया
कि
तब आया
मगर
फिर मगर
क्या करे
दिल्ली के
तरणताल में
मगरों का
मोहल्ला है
गरीब के चौके में तो
बस
बर्तनों का हल्ला है |

Friday, February 25, 2011

फाटक रहित रेलवे क्रासिंग

देश खडा है
बैलगाड़ी में
लादे
अपेक्षाओं के
अनबिके धान
और
निचुड़े पसीने वाला
पिरोया हुवा
किसान/ मजदूर
इस ओर
जिधर से
पगडंडी
गाँव को जाती है
उधर
पटरी के
उस तरफ
अनियंत्रित
शहर है
स्वछंदता
और
व्यस्तता की
धूल से अटा
बीच में
पटरी है
विकास की
जो
राजधानी
ले जाती है
अपराधियों
बलात्कारियों
देशद्रोहियों
और
चाटुकारों को
कल ही
गाव का हरिया
और
परसों
शहरी
सरिता की
लाशें
कटी मिली थी
इस
बगैर फाटक की
रेल लाइन पर |

Thursday, February 24, 2011

सोचता हूँ

सब ऐसा ही क्यों है
बदलता है
तो
बदलता क्यों है
जो थमा है
बदलता क्यों नहीं है

अजीब सी
तंद्रा
उदासी है
चहु ओर छाई है
जो
हर बदलाव की
खबर भर से
बैचैन
हो उठती है

कोहरे में
टटोल कर चलना
आँख वालों में
आदत
बन चुका है
सहन नहीं होती
धूप की चुभन
सदियों से
बंद आँखों को

ये कौन
आँख का अंधा
शोर मचाता
चला आ रहा है
इसे रोको
वरना
सब
देखने लगेंगे

और पायेंगे
ठगा सा
खुद को
तब
बड़ी शर्मिंदगी होगी
.....
खुद से |