फिर कोई लोभ का रावण , साधू सा वेश धर वोट मांगता है | शहीदों ने खिंची थी जो लक्ष्मण रेखा वो फिर लहू मांगती है || Tarun Kumar Thakur,Indore (M P) "मेरा यह मानना है कि, कवि अपनी कविता का प्रथम पाठक/श्रोता मात्र होता है |"
Monday, June 6, 2011
Thursday, May 19, 2011
अथ भ्रष्टासुर वध कथा - भाग २
क्रमश: भाग १ से आगे
समाधि के
वह छ: दशक
यू ही बीत गए
सोते संबल के
सब क्षण में रित गए
जैसे दूध फट जाता है
गिरते ही अम्ल की बूंद
बहुत विकल्प
तलाशते / तराशते
जनदेव अब
बुढ़ाते से लगने लगे
उनकी चिर यौवना सखी
सौन्दर्य स्वामिनी
सत्ता तब प्रकट हुई
समस्त वैभव
और पूर्ण प्रभाव के साथ
आलोकित हो उठे
जन गण मन प्रफुल्लित
तब
मंद स्मित से
बोली वह
हे प्राणाधार
आपको नहीं देख पाती हूँ
यू विवश व्याकुल अधीर
क्यों सूखा जा रहा
प्रभु के मुख का नीर
यू शुष्क गात
पिचके कपोलो को
अब सह ना पाउंगी
स्वामी , व्रहद्द जग को
क्या मुह दिखाऊंगी
जब की सत्ता ने बहुत चिरौरी
कुछ अस्फुट सा बोले
पहली बार जनदेव
"दिल्ली चलो " देवी
दिल्ली चलो ...
देखिये अब दिल्ली में क्या कुछ हुवा सो तो जनदेव जाने ,लगी हुई है सत्ता उन्हें दिल्ली भिजवाने सो तब तक भक्तों धीरज धरो और बोलो जय जय जनदेव ! दिल्ली चलो जनदेव ! दिल्ली चलो जनदेव !
आगे ...
आगे ...
Wednesday, May 18, 2011
अथ भ्रष्टासुर वध कथा भाग १
सोये थे जनदेव
भोगनिन्द्रा में
तन्मय हो
तन्मय हो
लिप्त थे
नित्य क्रीडा में
तभी
भ्रष्टासुर आ धमाका
ठीक सिर पर
प्रभु जागे नहीं
उनींदे ही
पूछ बैठे
कौन वत्स भ्रष्टासुर ...
तुम तो हो गये हो
दुराचारी
और
दुर्घर्ष भी
समाचार सब
नारद जी
फैला रहे है
तमाम माध्यमो पर
नित ही तुम
तोड़ते हो
स्वयं ही के कीर्तिमान
याद नहीं पड़ता
कैसे !
कब !!
उद्भव हूवा
सो कथा तुम ही कहो
मेरी ओर से नि:शंक रहो ...
प्रभो , बोला भ्रष्टासुर
परिचित
विनीत स्वर में
आपकी ही
उपेक्षाओं से जन्मा हूँ
अवसरवादिता
और
सुविधावृत्ति ने
पालन किया
मां लक्ष्मी की
रही कृपा बरस
आपसे क्या छिपा भगवन
बढ़ रहा हूँ
कलिकाल की
अनुकूलता में
पल पल हर क्षण
क्षुधा से
आकुल हो
इस द्वार आया हूँ
आप ही शेष रहे
शेष सबको तो खा आया हूँ !
अब कुछ
तंद्रा में विध्न पडा
तो विचलित हो
बोले जनदेव
मुर्ख
जानता नहीं
मेरी ताकत
मेरी सहमति
और मौन से ही
रहते है
भ्रष्ट सारे सत्तासीन
दीर्घायु अभामंडित सदा
मेरे अन्दोलनास्त्र की
एक फूंक से
ध्वस्त कर सकता हूँ
तुझ जैसे सहस्रों को
तेरे लिए तो
मेरा शांतिपूर्ण प्रदर्शन ही
पर्याप्त है
अट्हास से भ्रष्टासुर की
दहल उठा था नभमंडल तब
जनदेव, भले आप पूज्य हो
और समर्थ भी
भेद ना सकेंगे
मेरे संगठित
बेशर्मपुर गढ़ को
और
मेरे लिए तो
आप ही ने दिया था
संविधान का कवच
भूल गए प्रभु !!!
ओह , बड़ी भूल हुई
जनदेव अब भी
मूर्तिवत सोच रहे है
क्या पता
समाधि में है
या भ्रष्टासुर ने
बना दिया
उन्हें भी जड़ ...
कथा अभी शेष है , कृपया प्रतीक्षा करे , जय जय जनदेव !
आगे ...Sunday, May 15, 2011
उसमे वो आग अभी बाकी है
जी करता है
अखबार जला दू
ख़ुदकुशी कर लू
गोली ही मार दू
समाज के नासूरों को
फिर
कुछ सोच कर
रोता हूँ
हँसता हूँ
मन बदल लेता हूँ
दर्शन की आड़ ले लेता हूँ
दर्शन की आड़ ले लेता हूँ
खुद को
बहलाता हूँ
औरों को
समझाता हूँ
बस
बहस नहीं कर पाता
किसी युवा से
क्योंकि
अगर उसने ठान ली
तो मैं जानता हूँ
सब बदल डालेगा
होम हो जाएगा
बदलाव के हवन में
मैं जानता हूँ
क्योंकि
मैं भी
कभी
ऐसा ही हुवा करता था
टटोलता हूँ
भीतर
कही वो आग
शायद अब भी बाकी हो ...
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Thursday, May 12, 2011
अदद एक ईमानदार रचना के लिए
जूझ रहा हूँ
स्वयं से
अपनो से
परायों से
व्यवस्था से
कि
लिख सकू
चिर प्रतीक्षित
ईमानदार रचना
जिसमे
उघाड़ दूँ
स्वयं और समाज को
मर्यादित ही
अनावृत्त कर दू
मानवीय संवेदना के
आदि स्रोत
और
उसके प्रयोजन को
निहितार्थ को
परिणिति को
सरल
सहज शब्दों
और
शुद्ध
आडम्बरहीन
रचना द्वारा
गाई भले ना जा सके
पचाई जा सके
ऐसी
सर्वकालिक
मौलिक रचना का
आपकी तरह
मुझे भी
इन्तेजार है ...
Thursday, May 5, 2011
कठिन है मुसलमां होना
रोज
खबरों पर
मिडिया में
खुद को
देखते
पढ़ते
सुनते
समझ
बौराने लगी है
एक मेरे सिवा
सब को
फ़िक्र है
मेरी नहीं
मेरे मजहब
और
उस पर चिपके
पैबंद की
मैं भी
"जिहाद "
चाहता हूँ
जहालत
गरीबी से
निजात चाहता हूँ
मगर
लगता है
आसान है
ऐसे ही
खबरी मौत
रोज मरना
सचमुच
बहुत
कठिन है
जीना
जी कर
मुसलमा होना ...
इस्लाम
एक पिंजरा है
जो
उड़ना चाहता है
और
बंद भी रहना
भीतर से !!!
Tuesday, May 3, 2011
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