एकदिन
तुम भी ऐसे जी लोगे
ना ना प्रपंच बहुत विधि
फिर कोई लोभ का रावण , साधू सा वेश धर वोट मांगता है | शहीदों ने खिंची थी जो लक्ष्मण रेखा वो फिर लहू मांगती है || Tarun Kumar Thakur,Indore (M P) "मेरा यह मानना है कि, कवि अपनी कविता का प्रथम पाठक/श्रोता मात्र होता है |"
श्रीभगवानुवाच कुतस्त्वा कश्मलमिदं विषमे समुपस्थितम्।
अनार्यजुष्टमस्वर्ग्यम् कीर्तिकरमर्जुन॥२-२॥
-: हिंदी भावार्थ :-
श्रीभगवान
बोले- हे अर्जुन! तुम्हें इस असमय में यह शोक किस प्रकार हो रहा है?
क्योंकि न यह श्रेष्ठ पुरुषों द्वारा आचरित है, न स्वर्ग देने वाला है और न
यश देने वाला ही है॥2॥
क्लैब्यं मा स्म गमः पार्थ नैतत्त्वय्युपपद्यते।
क्षुद्रं हृदयदौर्बल्यं त्यक्त्वोत्तिष्ठ परन्तप॥२-३॥
-: हिंदी भावार्थ :-
हे
पृथा-पुत्र! कायरता को मत प्राप्त हो, यह तुम्हें शोभा नहीं देती है। हे
शत्रु-तापन! हृदय की तुच्छ दुर्बलता को त्याग कर(युद्ध के लिए) खड़े हो
जाओ॥3॥
O son of Prutha! Do not yield to weakness, it is not apt for you. O tormentor of foes! Cast aside this small weakness of heart and arise(for battle).॥3॥
बाहर ..
अंधेरों में
तूफ़ान चल रहा था कोई |
....
भीतर ..
दीये के
सूरज पल रहे थे कई ||