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ॐ विद्या ददाति विनयं विनयाद्याति पात्रताम् ।
पात्रत्वाद्धनमाप्नोति धनाद्धर्मं ततः सुखम् ॥ १ ॥
विद्या से विनय प्राप्त होती है : कितना सुन्दर सूत्र है , आज विद्यार्थियों को अनेक परीक्षाओं और साक्षात्कार से गुजरना पड़ता है परन्तु फिर भी वे किसी संतोषप्रद पद को नहीं पा कर क्लेश ही पाते है । कितना ही अच्छा हो कि इस विनय की परीक्षा को लक्ष्य कर और इसी को आधार बना कर यदि लोकसेवकों और विद्वज्ञ पदो को सृजित किया जाऐ । विनय की तैयारी , अभ्यास , प्रशिक्षण और उपलब्धि ही शिक्षा का मूल हो फिर कोई भी कार्य हम करे वही सृजन और आनंद का साधन बन जाएगा , क्लेश मुक्त निर्मल आनंद यही तो जीवन की अभीष्ट प्रायोजना है । बाकी शेष चारो पुरुषार्थों की उपलब्धि फिर सहज ही हो जायेगी । ॐ
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यां मेधां देवगणाः पितरश्चोपासते । तया मामद्य मेधयाग्ने मेधाविनं कुरु ॥२॥
जिस प्रकृति की मेधा (प्रचलित अर्थ है बुद्धि ) की उपासना अथवा सत्कार हमारे पूर्वज (देशकाल अनुसार / स्मृति अनुसार ) और देवता (हमारे भीतर की आवाज जो तत्व निर्णय करने का अंतिम मानदंड है ) करते है , कृपा कर उसी उत्तम मेधा से हमें संयुक्त / हम को उपलब्ध कीजिये ।
परम्परा के साक्ष्य और उसकी अनुपलब्धता अथवा उससे भी उत्तम चयन अपनी समझ के आधार पर जिस समझ और प्रकृति / संस्कृति / विद्या /ज्ञान / धर्म / आस्था को हम यथेष्ठ और उत्तम मानते है उसी के अनुसार अपनी मति के परिमार्जन / सृजन हेतु माँ सरस्वती और श्री गुरु चरण में निवेदन करे ।
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ॐ असतो मा सद्गमय। तमसो मा ज्योतिर्गमय। मृत्योर्माऽमृतं गमय।
ॐ शान्ति: शान्ति: शान्ति: ॥
कौन सी विद्या और किस हेतु विद्या ? इसका अंतिम उत्तर यहाँ है जो "सत्य" के पथ पर अग्रसर रखे , "प्रकाश" अर्थात यथार्थ पर केंद्रित रखे और शाश्वत "तत्व" की उपलब्धि करावे जिसे श्री कृष्ण "आत्मा" कहते है और जिसका नाश कभी नहीं होता ।
यह उपरोक्त तो व्यक्तिगत उपलब्धि और स्वार्थपरक चर्चा लगती है परन्तु जीव और जगत से भी पर समस्त सृष्टि के लिए भी कहा गया है
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ॐ सह नाववतु | सह नौ भुनक्तु | सहवीर्यं करवावहै | तेजस्विनावधीतमस्तु | मा विद्विषावहै ||
ॐ शान्ति: शान्ति: शान्ति: ||
हम साथ साथ आये , साथ ही पुष्ट / तुष्ट हो और साथ मिलकर श्रेष्ठ पुरुषार्थ करते हुवे उत्तम तेज़ को उपलब्ध हो हम में कोई द्वेष/विषमता ना शेष रहे ॐ शांति ॥
अंत में माँ वीणावादनी के चरणो में सबके लिए सादर विनय
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सर्वे भवन्तु सुखिनः सर्वे सन्तु निरामया। सर्वे भद्राणि पश्यन्तु मा कश्चित् दुःखभाग् भवेत्।।
सभी सुखी होवें, सभी रोगमुक्त रहें, सभी मंगलमय घटनाओं के साक्षी बनें और किसी को भी दुःख का भागी न बनना पड़े।
ॐ शान्ति: शान्ति: शान्ति: ||