Sunday, August 7, 2022

भटकने लगे है लोग



एक गरम साँस 
होठों के आगे
कानों के पीछे 
एक ठंडी फूंक की ख़ातिर 
बिकने लगे है लोग 


कितने ऊपर 
और चढ़ेंगे
अपने ही 
अगणित 
नरमुंडो पर 
फिसल फिसल 
अब तो 
गिरने लगे है लोग 

मंजिलों से आगे 
और भी आगे  
आसमानों की 
आदिम फ़िराक में
उड़ने से 
चलने या उठने भर से   
बहुत पहले ही 
थकने लगे है लोग 

एकदूजे को 
जकड़े भींचे 
राह दिखाते 
बेसब्र हल्कान 
लड़ने 
उलझने 
भटकने लगे है लोग ...

Friday, March 19, 2021

उफ़्फ़ ये बेहया बेलग़ाम आँकड़े !

 





एक तरफ बैठे थे
अफसरां लेकर के
बेरोज़गारी
अपराध और
बेपटरी अर्थनीति के
भयावह आँकडे !

दूजी और भी
वैसे ही मातहत
डरा रहे थे ..
दिखा-दिखा कर
महामारी ,
जनसंख्या ,
आत्महत्या और
नारी उत्पीड़न के
निर्लज्ज सूचकांक

बीच में
बेचारे???
मंत्री जी
सर पर हाथ धरे
बुदबुदा रहे थे
आलाकमान से ..
 
अब तो
हद ही पार कर दी है
कम्बख्तों ने  ..
हम सदन में
बाद में
करते रहेंगे बहस
आप तो
ताबड़तोड़
महामना के
पूर्व-हस्ताक्षरित
राजपत्रों पर
राष्ट्रवाद से आप्लावित !
एक और ... ?
फड़कता हुआ !!
अच्छा सा ???
अध्यादेश निकलवाईये  ...

समय आ गया है
ईन्हें  भी
विधान? की
थोड़ी तो मर्यादा
रखनी होगी !!
अब हमें ही
ईन भटके हुवे
आंकड़ों की
लग़ाम कसनी होगी !!!

Sunday, February 28, 2021

हर हर !! महाशिव हरे हरे !!!

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 नहीं जानता
मैं
समय की
सीमाएँ
समय जानता है
सबकुछ
तय करता
बदलता
सबकी / सारी / सांझी
परिसीमाएँ

बदल बदल
बहुत बदल सको
तो भी बस
बदल सकोगे
कालांतर
युग बदल गये होंगे
लव निमेष ही में
नव सृष्टि
गढ़ेगा महाकाल
ईति शेष बचेंगे
रूपांतर

क्या उदित
अनुदित
अपघटित हो
रहे विदित
वेदना के पल-छिन
हो रहे भंग
सब शिलाखंड
एक सृष्टि भ्रंश
सौ ब्रह्मांड प्रकट
विकट-निकट
वह डमरू नाद
हरता विषाद
सब पाप ताप
कर भस्म
करे जो लेप
वही निर्लेप
करे संक्षेप
सदाशिव हरे हरे !!
हर हर !! महाशिव हरे हरे !!!
बम बम  ....



Thursday, February 11, 2021

बड़े वो है ..... मुहलगे !


 

हमारे वो ...
वैसे तो
कुच्छ नहीं
हमारे सामने |
कुच्छ कहती नही हूँ
उनको
इसलिए कि
वो है
नेता जी के
बड़े ही
मुहलगे ||

आग मूत रक्खी है
मोहल्ले में
समझाती नहीं हूँ ...
जाने दो जीजी
कौन
ऐसो के
मूह लगे !!


Wednesday, August 26, 2020

ये राहें तरक्की औ वो रोड़े क़यामत

 
ये राहें तरक्की औ वो रोड़े क़यामत ...

सड़क
जो काटती थी
उसे
हर तरह
हर तरफ
दिन रात

गलती
पहाड़ ही की
रही होगी
जो ढह गया
एक दिन
उस पर ...
चुप-चाप | 
 
 
#landslide 
 

 

Thursday, November 26, 2015

दादी के अचार सा खट्टा-मीठा तीखा-कडुवा : "संविधान"



जाने कैसे 
जाने क्या क्या 
मसाले डालकर 
आम का 
पुराना अचार 
जो 
डाला करती थी 
दादीयां / नानीयां

उसका 
जायका 
ज्यादा मायने रखता था 
या 
वजह बनाने की ....
 
इस पर 
बहस हो 
या 
सैकड़ो / हजारों 
तरकीबों पर ...
 
या 
इस पर कि  
सब्जी - फलों तक ही 
महदूद हो 
हद-ऐ-अचार  ...
 
या कि 
गोश्त भी / हड्डियां भी हो !
इस फेहरिश्त में ,
बकौल सेक्युलर 
खरामा खरामा 
हाजमा दुरुस्त करने को !
मर्दानगी बढ़ाने को ....!!
 
या महज 
खालिस जायके 
की खातिर ??
अचार को 
आम की पहुंच 
और समझ से 
कोसो दूर ...
 
इतना 
कसैला / बेस्वाद 
और 
लगभग बेवजह 
बनाने के 
आधुनिकतम मनसूबे देखकर ...

क्या 
आपकी आँखों में 
आंसू नहीं आते ?
 
क्या 
आपका जी भी 
उल्टियाँ करने को 
नहीं करता ...??
 
उल्टियाँ करता मुल्क 
उम्मीद से तो 
नहीं लगता...   

Thursday, February 9, 2012

देस


जहां
मेरे नाम भी 
एक जमीन हो 
जिस पर 
चला सकूँ हल 
बो सकूँ 
सपनों के बीज 
जहां 
सावन 
तकादे ना कराये 
ना ही 
बिन  बुलाये 
बाढ़ / सूखा 
थोप दिए जाए 
जिसके बहाने 
सरकारी अमरबेल 
फिर 
पनप जाए 

मैं तो 
परदेस में 
ईटें बनाता हूँ 
सुना है 
मेरी 
गिरवी 
खपरैल पर 
नेता मुरदार 
वोट 
माँगने आये रहे 

ना 
हम नाही गए 
बटन दबाने 
और 
ऊँगली पर निसान 
अरे 
ये तो ईटा से 
कुचल गयी 
मुद्दा 
हम तो 
कब से 
"देस" गए ही नाही !