भाषण कविता में
फिर कोई लोभ का रावण , साधू सा वेश धर वोट मांगता है | शहीदों ने खिंची थी जो लक्ष्मण रेखा वो फिर लहू मांगती है || Tarun Kumar Thakur,Indore (M P) "मेरा यह मानना है कि, कवि अपनी कविता का प्रथम पाठक/श्रोता मात्र होता है |"
Monday, January 2, 2023
अहो ! सिर्फ नारी हूँ मैं !
भाषण कविता में
Thursday, December 29, 2022
परवाज़ ... एक उड़ान !
मैं छोटा ,
मेरा मतलब छोटा ,
मनसूबे / हौंसले है ...
मगर छोटे !
लगा मत बैठना ...
मेरी परवाज़ का अंदाजा !!!
देखकर ...
ये मेरे
...पर
छोटे !
Tuesday, December 27, 2022
बाबू अब तुम बड़े हो गए !
एकदिन
तुम भी ऐसे जी लोगे
ना ना प्रपंच बहुत विधि
सेन्योरुभ्योर्मध्ये विषीदन्तमिदं - समर मध्य क्यों विहँसे गोविन्द ?
स्वभाव है जिनका ,
श्मशान में भी !
भूल गया है ,
बहु-संपन्न-प्रबुद्ध-सबल मानव ?
केवल वो गुरु है ,
ईश्वर है !
और पार्थ, तो बेबस मानव है !
जो छीन रहे हँसी
वही कुरुसेनाहै |
निश्चय ही अधम है
दनुज है ,
वही दानव है !
हास्य अनुभव से अर्जित
अजेय निर्भयता है ! प्रिय पार्थ !
जो हर लेता है
विकट काल को
सभी प्रपंच और जंजाल को भी |
देखो कैसा महारास हँसे ....
कुतस्त्वा कश्मलमिदं ...
तब उस
ऐश्वर्य/वीर्य/स्मृति/यश/ज्ञान से
पौरुषहीन-दीनता ही मुझे !
तं तथा कृपयाविष्टमश्रुपूर्णाकुलेक्षणम् ।
गीता द्वितीय अध्याय श्लोक – २
श्रीभगवानुवाच कुतस्त्वा कश्मलमिदं विषमे समुपस्थितम्।
अनार्यजुष्टमस्वर्ग्यम् कीर्तिकरमर्जुन॥२-२॥
-: हिंदी भावार्थ :-
श्रीभगवान
बोले- हे अर्जुन! तुम्हें इस असमय में यह शोक किस प्रकार हो रहा है?
क्योंकि न यह श्रेष्ठ पुरुषों द्वारा आचरित है, न स्वर्ग देने वाला है और न
यश देने वाला ही है॥2॥
गीता द्वितीय अध्याय श्लोक – ३
क्लैब्यं मा स्म गमः पार्थ नैतत्त्वय्युपपद्यते।
क्षुद्रं हृदयदौर्बल्यं त्यक्त्वोत्तिष्ठ परन्तप॥२-३॥
-: हिंदी भावार्थ :-
हे
पृथा-पुत्र! कायरता को मत प्राप्त हो, यह तुम्हें शोभा नहीं देती है। हे
शत्रु-तापन! हृदय की तुच्छ दुर्बलता को त्याग कर(युद्ध के लिए) खड़े हो
जाओ॥3॥
O son of Prutha! Do not yield to weakness, it is not apt for you. O tormentor of foes! Cast aside this small weakness of heart and arise(for battle).॥3॥
Wednesday, December 7, 2022
दीया और तूफ़ान
बाहर ..
अंधेरों में
तूफ़ान चल रहा था कोई |
....
भीतर ..
दीये के
सूरज पल रहे थे कई ||
Tuesday, December 6, 2022
दिल दियां गल्लां !
कम्बख्त रोता भी है !
रिश्तों में ऐसा होता ही है !!
फिर मै ही ! बार-बार !!
ज़रूरी नहीं ,पास होता ही है !!
तो फिर कर ही लीजिये...
कुछ अफसोस तो ... फिर भी होता ही है !!
अपने ....तो हो ना पाएंगे !
ये बेसबर.... बेक़रार होता ही है !!
लिहाज़ा तपिश भी जरुरी है ,
और वैसा हो भी पाएगा ...
कुछ ठण्ड सी है ,
तो मुझको तुझको क्या ?