Monday, January 9, 2023

जोशीमठ इज सिंकिंग डाउन आवर फेयर मोदी !

PMO to hold high-level meet on Joshimath crisis, Uttarakhand officials to  attend - India Today
joshimath is sinking down , our fair Modi !

 


जोशीमठ धंस रहा है ,
ढह रहा है प्यारे मोदी  !

जिससे बिजली ,
जिसका पानी ,
खूब खींची ,
खूब सींचा , देश ने ?
तुमने ... मित्रों ने भी !
आज वोही

बूढ़ा ... शंकर कह रहा है
जोशीमठ  दरक रहा है ,
ढह रहा है प्यारे मोदी  !

बनाया ,
जिद करके जो
खंड उत्तर ,
बह रहा है ...
बेअसुल
मुनाफा वसूल
विकास की
अंधी धार में


प्यारा , न्यारा ...
भोला बद्री  !
कराहता कर्णप्रयाग !
कह रहा ...
बचा सको.. गर
बचालो  ...

होते ,देखते , तुम्हारे
जोशीमठ डूब रहा है ,
ढह रहा है प्यारे मोदी !

बचा सको जिनको ,
उतनो को तो
बचा लो !
चौबीस का शंख
बज चुका
अब
कुर्सी ही मत सम्हालो  !

गरीब , गुरबा सब
कह रहा है
मत करना निराश ,
वक्त है,
सम्हलो नहीं
सम्हाल लो ...  !

जोशीमठ धंस रहा है ,
ढह रहा है प्यारे  मोदी !

Monday, January 2, 2023

अहो ! सिर्फ नारी हूँ मैं !

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मनुष्य कहाँ हूँ ?
पशु से भी 
कमतर ...
 
ढकी हुई 
लाचारी हूँ मैं !

संविधान के 
लच्छेदार 
अनुच्छेदों में ...
 
उलझी हुई 
बीमारी हूँ मैं !

धर्मग्रंथो की 
ग्रंथियों में ...
कुंठित !
 
शापित !
महामारी हूँ मैं ...

विश्वपटल के 
क्रियाकलाप पर ...
 
नैतिकता सी !
भारी हूँ मैं ....

माँ ,पत्नी ,
बहन ,बेटी ,
हो बटी हुई ...
 
हिन्दू मुस्लिम में 
कटी हुई...

भाषण कविता में 
रटी हुई ...
 
भूल गयी थी 
नारी हूँ मैं !!!

निर्लज्ज पौरुष के ,
लम्पट ,कपट भवन में ...
 
दबी हुई 
चिंगारी हूँ मैं ..... 




Thursday, December 29, 2022

परवाज़ ... एक उड़ान !

300+ Free Little Sparrow & Sparrow Images - Pixabay

 

मैं छोटा ,

मेरा मतलब छोटा ,

मनसूबे / हौंसले है ...

मगर छोटे !

 

लगा मत बैठना ...

मेरी परवाज़ का अंदाजा !!!

देखकर ...

ये मेरे ...पर छोटे !

Tuesday, December 27, 2022

बाबू अब तुम बड़े हो गए !

 

Father and son beginning to walk | Line art drawings, Father and son,  Simple line drawings
अपने बेटे को उसके बीसवे जन्मदिवस पर प्यार भरी सीख , ढेरो स्नेह और आशीर्वाद  के साथ !

 
बाबू अब तुम बड़े हो गए
जिम्मेदारी समझोगे !
अपना बचपन छोड़ के
एकदिन
हमरी चप्पलें जो पहनोगे .... 

तब ही
शायद समझ सकोगे
उलझन हमरी
सब सांझे सुख दुःख
हंस गा कर
तुम भी ऐसे जी लोगे  

जीवन क्या है ?
एक कपट जाल सा
मनुज उस में फंस जाते है
सब जीवो में
अलग जात है
बुद्धिमान कहलाते है ???

फिर रच रच
ना ना प्रपंच बहुत विधि
खुद ही को समझाते है !!!
पढ़ पढ़ पुराण
ईतिहास धुरंदर...
उसको ही
दोहराते है !!!

है वही आदतें
वही लड़कपन ,
वही खिलौने
नया कलेवर ,
रूप बदल कर
मृग-तृष्णा-तुर
अधुनातन कहलाते है ?

भोजन देना
भूखे को ,
दान कर सको
विद्या का कर देना
सब गौरव पा जाओगे !

बस यौवन / धन का
आग्रह मत रखना ,
मौज में रहना
सहज में कहना !

वर्तमान ही
जीवन है
बीत गई
सो बात गयी !

आगे का आगे सोचेंगे
बोझ ना मन पर
तनिक न लेना !

अंत समय
अपने मानस को
निर्मल ही
प्रभु चरण अर्पण कर देना !

अस्तु बिटुआ इतना ही
कहना है !
हमको तुमको
इस धरती / माटी में
रहकर / रचकर ही 
बहुत प्रेम से ...धीरे धीरे
परिपाटी को ... 
कुछ.. पहले से ... थोड़ा सा ही
बेहतर करना है !

सेन्योरुभ्योर्मध्ये विषीदन्तमिदं - समर मध्य क्यों विहँसे गोविन्द ?

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|| सेन्योरुभ्योर्मध्ये विषीदन्तमिदं ||

सहजता
निश्छलता
करुणा सहज हास
स्वभाव है जिनका ,
जो स्वयं ही
माया पति
लीला प्रपंच रचते रहते , नित सभी !

वो ही ,
बस केवल वही तो ,
हंस सकते है !
रणभूमि में , वरन
श्मशान में भी !

घटोत्कच के उत्सर्ग पर ,
द्रोण के "नरो वा कुंजरो वा "
जैसे लांछनो पर भी, तो
रथ निकालते  कर्ण के
धर्म-वचनो पर भी ,
दुर्योधन के कुचक्र पर ,
दुर्वासा के प्रयोजन ,
और गांधारी के श्राप तक पर !

हँसना ही तो !
भूल गया है ,
अति-आधुनिक
बहु-संपन्न-प्रबुद्ध-सबल मानव ?
इसलिए तो कुरुक्षेत्र  में
केवल वो गुरु है ,
ईश्वर है !
और पार्थ, तो बेबस मानव है !

जो छीन रहे हँसी
दुधमुहों
नवविवाहिताओं
कुमारिकाओं तक की
वे हो कोई , कभी , कही
वही कुरुसेनाहै |
निश्चय ही अधम है
दनुज है ,
वही दानव है !
 
हास्य योग ही नहीं ,
अस्तु उपलब्धि है योग की !
चरम अवस्था है ध्यान की !!
पराकाष्ठा प्राणायाम की !!!

हास्य करुणा है !
हास्य अनुभव से अर्जित
अजेय निर्भयता है ! प्रिय पार्थ !

अस्त्र है हास्य
जो हर लेता है
विकट काल को
सभी प्रपंच और जंजाल को भी |

तभी तो
कुंठित कुरु ही नहीं ,
उद्धत वीर पाण्डु भी नहीं ,
न संजय, न तो धृतराष्ट्र ही , हँसे |

अस्तु ,गीता में हँसे तो
बस मेरे गोविन्द ही
राधा के रमण
बृज के गोपाल
रच कर युद्ध का
देखो कैसा महारास हँसे ....

कुतस्त्वा कश्मलमिदं ...


 
 एक सार्वभौम प्रासंगिक सन्दर्भ : मधुसूदन उवाच ! (गीता : द्वितीय अध्याय - भाग १ )
 
तब उस 
करुणामूर्ति ने 
करुणापूरित 
अश्रुरत 
नत नयन 
भीत भी 
क्लांत भी 
गांडीव धर चुके 
पस्त हृदय 
अर्जुन के प्रति 
यो कहा 
जैसे 
युगों से कहा ...
 
मधु मर्दन ने 
हां 
जिसने 
स्वयं की माया से 
उत्पन्न 
मधु को 
कैटभ संग 
मरीचिका के उत्तल पर 
जंघा ही को 
धरा कर 
छिन्न मस्तक 
किया था कभी ...
 
उसने 
हां उसने कहा 
तभी तो 
अब तलक ये 
सन्दर्भ 
सार्वभौम और 
प्रासंगिक रहा 
टिका रहा |

युक्त श्री और समस्त
ऐश्वर्य/वीर्य/स्मृति/यश/ज्ञान
से
वही श्री भगवान् स्वयं ,
पूछते विस्मय का स्वांग भर  ...

हे अर्जुन !
क्यों माननीयों के द्वारा
निर्णित समर समवेत में ,
प्रश्न पूछते हो अग्य-मूढ़ से  ?

तुम्हारे शोक-पीड़ा-संवेदना में
झलक रही बस
कातरता ,
पौरुषहीन-दीनता ही मुझे  !

तुम्हारा पलायन
न इस लोक में यश देगा ,
ना परलोक में सुख ही कभी !

कायरता और शोक ,
रणभूमि में वर्जित सदा !
त्याग कर तुच्छ
हृदय की  दुर्बलता ,
धर गांडीव खड़ा हो पार्थ !!

प्रत्युत्तर को 
प्रस्तुत अधर्म के
सन्नद्ध हो !!!
वर-वीर अहो ! सेनानी !!
इन शस्त्रों के निमित्त ही ?
इस घड़ी ही की आयोजना में ??
तो तप-रत रहा न तू अभिमानी ???




source : Bhagwad Geeta , chtr-2, ver -1

सञ्जय उवाच॥

तं तथा कृपयाविष्टमश्रुपूर्णाकुलेक्षणम् ।
विषीदन्तमिदं वाक्यमुवाच मधुसूदनः ॥२-१॥ .....

तब करुणापूरित वयाकुल नेत्रों वाले शोकयुक्त अर्जुन से मधु का वध करने वाले श्री भगवान ने ये वचन कहे 
 Sanjay says – Then, the destroyer of Madhu, Sri Krishna said to compassionate and sorrowful Arjun, who was anxious with tears in his eyes-॥1॥

गीता द्वितीय अध्याय श्लोक – २

श्रीभगवानुवाच कुतस्त्वा कश्मलमिदं विषमे समुपस्थितम्‌।
अनार्यजुष्टमस्वर्ग्यम्‌ कीर्तिकरमर्जुन॥२-२॥

-: हिंदी भावार्थ :-

श्रीभगवान बोले- हे अर्जुन! तुम्हें इस असमय में यह शोक किस प्रकार हो रहा है? क्योंकि न यह श्रेष्ठ पुरुषों द्वारा आचरित है, न स्वर्ग देने वाला है और न यश देने वाला ही है॥2॥

Lord Krishna says – O Arjun! How can you get sad at this inappropriate time? This sadness is not observed in nobles, it also does not lead to either heaven or glory.॥2॥

गीता द्वितीय अध्याय श्लोक – ३

क्लैब्यं मा स्म गमः पार्थ नैतत्त्वय्युपपद्यते।
क्षुद्रं हृदयदौर्बल्यं त्यक्त्वोत्तिष्ठ परन्तप॥२-३॥

-: हिंदी भावार्थ :-

हे पृथा-पुत्र! कायरता को मत प्राप्त हो, यह तुम्हें शोभा नहीं देती है। हे शत्रु-तापन! हृदय की तुच्छ दुर्बलता को त्याग कर(युद्ध के लिए) खड़े हो जाओ॥3॥

O son of Prutha! Do not yield to weakness, it is not apt for you. O tormentor of foes! Cast aside this small weakness of heart and arise(for battle).॥3॥

Wednesday, December 7, 2022

दीया और तूफ़ान

Rural Girl And Boy Studying In Lantern Stock Photo - Download Image Now -  Poverty, Child, Education - iStock

बाहर ..

अंधेरों में 

तूफ़ान चल रहा था कोई | 

....

 भीतर ..

 दीये के 

सूरज पल रहे थे कई ||