Friday, January 20, 2023

एक चुटकी आजादी की कीमत ....तुम क्या जानो ?



आज 
कहाँ समझ पाओगे 
कीमत आजादी की 

जिसके बदले 
ज़रा सा टैक्स देते 
कराह उठते हो तुम 

तुम क्या जानो 
जब लगान में 
पीढ़ियां पेल दी जाती थी 
अय्याश हुकूमतों के 
कोल्हू में 

जब जवानी 
नारी देह का 
कोढ़ बन चुकी थी 
और दो वक्त की रोटी 
जिंदगियों का हासिल 

तब 
एक कतरा भी 
आजादी का 
तौल सकता था 
मन भर लहुँ ...
 
और 
मन भर लहुँ बहाकर भी 
नहीं मिला करती  थी 
एक कतरा आजादी !!!

Thursday, January 19, 2023

सुनहु पवनसुत रहनि हमारी !


सुनहु पवनसुत रहनि हमारी। जिमि दसनन्हि महुँ जीभ बिचारी।।

श्री हनुमान जी जब माँ जानकी को लंका में ढूंढते हुवे 
विभीषण जी से मिले तो स्वाभाविक कुशल प्रश्न किया
"हे राम भक्त , 
इस विषम लंका नगरी में किस प्रकार निर्वाह करते हो ?"

तब भक्त-शिरोमणि विभीषण महाराज द्रवित हो बोले 
" हम ऐसे रहते है पवनसुत जैसे बत्तीस दाँतों के बीच जीभ रहती है !"

हनुमान जी ने कहा : "बहुत सुन्दर विभीषण , तुम्हारे जैसी रहनी किसी बड़भागी को मिलती है " 

विभीषण आश्चर्य से कहने लगे : " प्रभु 32 दाँतो के बीच जीभ रहे वह सुन्दर कैसे ?"

हनुमान जी बोले : " विभीषण जगत में पहले जीभ आई की दाँत ? "
विभीषण : "जीभ प्रभु " ...

हनुमान जी : " पहले जीभ गिरती है या दाँत ? "
विभीषण : "दाँत ही गिरते है प्रभु "...

"तो बस विभीषण , 
एक मास में श्री राम आकर इन राक्षस रूपी दाँतो को गिरा देंगे 
और तुम जीभ जैसे कायम जीवी हो जाओगे "

जब हनुमान जी ने जब ये अर्थ बताया 
तो विभीषण को वही स्थिति जो पहले दू:खद लग रही थी 
वही अब अनुकूल लगने लगी ।

|| जीवन में जब सद्गुरु आता है तो वह दृष्टि बदल देता है ||
 
जीभ और दाँत की तरह ही , 
समाज में दुर्जन बहुत है और सज्जन बहुत थोड़े 
और सज्जनो को दुर्जनो के बीच ही रहना होता है । 
भोजन को काटने , चबाने , तोड़ने का काम दांत करते है , 
मगर स्वाद उनको नहीं मिलता स्वाद जीभ ले जाती है , 
उसी प्रकार दुर्जन समाज को तोड़ने का काम करते है 
इसलिए स्वयं भी सुखी नहीं रहते और अंत में नष्ट हो जाते है 
और सज्जन जीभ की तरह 
समन्वय और समाज को जोड़ने का काम करते है 
इसलिए समाज के साथ अंतत: स्वयं भी सुख प्राप्त करते है ।
 
|| बोलिए श्री सीताराम दुलारे हनुमान लला जी प्रिय हो ! ||
श्री सद्गुरु देव प्रिय हो !
(पूज्य बापू की कथा से उद्घृत )

Saturday, January 14, 2023

अब तो उत्तरायण हो भाग्य मेरे !

 https://s3images.zee5.com/wp-content/uploads/sites/7/2020/01/Sankranti-Kannada.jpg


ले एक और
उत्तरायण हो गयी
सूर्य देवता
फिर
पूरब से निकले
फिर
अस्त हुए पश्चिम में

एक चक्कर
लगा आये वो
उत्तर से
दक्षिण का
फिर एक बार

खत्म हुआ
देव शयन भी तो कब का ...

हे भाग्य देव !
तुम क्यों ,
करवट नहीं लेते ,
आँखे तो खोलो ,
देखो तो जरा ...

कोई बैठा चरणों में
इंतजार में
मुरझा  रहा है ...

ख़त्म कीजिये
विरह के
अंतहीन
इस अंतराल को
तृप्त कीजिए
सुख की वर्षा से
हो आस हरी
यही इच्छा है प्रभु चरणों में !
दास की खरी खरी !

शुभ संक्रांति हो
मेरी ,आपकी और सबकी
शेष जो इच्छा उसकी ...


जय हो श्री हरि ! हरि  !!

 

Friday, January 13, 2023

वो पेड़ पतंगों वाला

Anna's Kite


याद है ना
बचपन अपना ,
रोज नई नन्ही
उमंगो वाला !
याद है वो पेड़ ,
पतंगों वाला !

जिस पर
उग आती थी ,
लोहड़ी / सक्रांत पर ,
ढेरो पतंगे ,
सूत , मांझे समेत ! ... फिर
किसी 'सांताक्लॉज़' सा
बांटता रहता था वो ,
उत्तरायण भर
रंग बिरंगी पतंगे

भेद नहीं किया
उस पेड़ ने कभी
काले , गोरे का ,
बिना ऊंच नीच
छुआछूत से पर ,
बांटता गया
पहली से अंतिम तक
पतंग और धागा ...

बांधता गया बचपन
समेटता रहा यादें ...

सर पर उसने ,
अरमानो का
विस्तृत , नीला
आसमान भी
उठा रक्खा था !

क्या पता
रातों को टूटकर
तमाम तारे ही
अटक जाते थे
उसकी सांखो में ...

सुबह पतंग बन
उतर जाते थे
नन्हे हाथों में

फिर नन्हे जादूगर
लग जाते थे
जुगत में
कि फिर एक बार
उड़ा कर
पहुंचा ही देंगे जैसे
उन तारों को
उसी अरमान में !

टूट भी
कट भी जाती थी
कुछ पतंगे
खींचतान में 

तो इत्मीनान था
तारा बन , भोर तक
अटकी रहेंगी ... ऊपर ही
या पेड़ पर कि ,
आसमान में !

Wednesday, January 11, 2023

नरेन्द्र ही बनते है विवेकानंद बिरले !



स्खलित होता ,
कुंठित ,
ढोता अपेक्षाएं,
सहता उपेक्षाए !
प्रवंचना...
 
दू:साहस 
और 
स्वप्न के बीच 
भ्रम को 
ब्रह्म मान
चौराहों पर 
बिकता !
कुचला जाता ?
 
मेरे भारत का 
गौरव बन सको 
तो स्वयं को 
युवा कहना !
वर्ना ...
शहीदी की राह भी 
जवानो ने बना रक्खी है !
 
बस ये ना करना 
कि
रोती माओं 
बिलखती बेवाओं 
को बेसहारा कर 
पलायन कर लो ...
 
गुनाह है...
तरुणाई जो राह भटके !
 
तुम दीप बनना राह के ,
फूल ही बनाना ,
भले धूल बन 
मिट जाना माटी पर !
 
मगर 
भूल ना बनना,
ये भूल ना करना ,
बेशर्मी और नादानी का फर्क 
ही बहुत है ...
 
शेष तो 
कोई ठाकुर बना ही देगा 
अपने आशीष के बल से 
तुम्हे 
नर से नरेन्द्र !

विवेक हो सदा 
आनंद से पहले 
ऐसे तुम कोटि कोटि 
विवेकानंद बनो !

उत्तिष्ठ भारत !
प्राणवान हो !!
प्राणवान हो !!!
प्रज्ञा हो प्रखर ,
मानव की जिजीविषा का 
अकाट्य एक प्रमाण हो !
 
तुम दान हो माटी को 
पूज्य वंशधरो का 
भारती का यश हो 
यशगान हो !


Monday, January 9, 2023

जोशीमठ इज सिंकिंग डाउन आवर फेयर मोदी !

PMO to hold high-level meet on Joshimath crisis, Uttarakhand officials to  attend - India Today
joshimath is sinking down , our fair Modi !

 


जोशीमठ धंस रहा है ,
ढह रहा है प्यारे मोदी  !

जिससे बिजली ,
जिसका पानी ,
खूब खींची ,
खूब सींचा , देश ने ?
तुमने ... मित्रों ने भी !
आज वोही

बूढ़ा ... शंकर कह रहा है
जोशीमठ  दरक रहा है ,
ढह रहा है प्यारे मोदी  !

बनाया ,
जिद करके जो
खंड उत्तर ,
बह रहा है ...
बेअसुल
मुनाफा वसूल
विकास की
अंधी धार में


प्यारा , न्यारा ...
भोला बद्री  !
कराहता कर्णप्रयाग !
कह रहा ...
बचा सको.. गर
बचालो  ...

होते ,देखते , तुम्हारे
जोशीमठ डूब रहा है ,
ढह रहा है प्यारे मोदी !

बचा सको जिनको ,
उतनो को तो
बचा लो !
चौबीस का शंख
बज चुका
अब
कुर्सी ही मत सम्हालो  !

गरीब , गुरबा सब
कह रहा है
मत करना निराश ,
वक्त है,
सम्हलो नहीं
सम्हाल लो ...  !

जोशीमठ धंस रहा है ,
ढह रहा है प्यारे  मोदी !

Monday, January 2, 2023

अहो ! सिर्फ नारी हूँ मैं !

https://i.pinimg.com/736x/00/2d/fe/002dfe37a242c4d5fac314549ff3bb8f.jpg



मनुष्य कहाँ हूँ ?
पशु से भी 
कमतर ...
 
ढकी हुई 
लाचारी हूँ मैं !

संविधान के 
लच्छेदार 
अनुच्छेदों में ...
 
उलझी हुई 
बीमारी हूँ मैं !

धर्मग्रंथो की 
ग्रंथियों में ...
कुंठित !
 
शापित !
महामारी हूँ मैं ...

विश्वपटल के 
क्रियाकलाप पर ...
 
नैतिकता सी !
भारी हूँ मैं ....

माँ ,पत्नी ,
बहन ,बेटी ,
हो बटी हुई ...
 
हिन्दू मुस्लिम में 
कटी हुई...

भाषण कविता में 
रटी हुई ...
 
भूल गयी थी 
नारी हूँ मैं !!!

निर्लज्ज पौरुष के ,
लम्पट ,कपट भवन में ...
 
दबी हुई 
चिंगारी हूँ मैं .....