मानव का ईतिहास !
इसे
और
अनगिनत
छुपा दिया गया है !
करोड़ो शब्दों की
सुखी घास के पीछे ...
जो
सच
एक झौके से ...
जो
पैदा होता है
भूख
जिसमे
काले पड़ जाते है...
कई चहरे
जो पूजे जाते थे
जलसा घरों से
न्यायालयों तक ... ?
अगर
तो कहानी
वरना
ईतिहास
फिर कोई लोभ का रावण , साधू सा वेश धर वोट मांगता है | शहीदों ने खिंची थी जो लक्ष्मण रेखा वो फिर लहू मांगती है || Tarun Kumar Thakur,Indore (M P) "मेरा यह मानना है कि, कवि अपनी कविता का प्रथम पाठक/श्रोता मात्र होता है |"
माँ तुम कैसी हो ?
आज
पूछना चाहा
मगर
फोन नहीं लगा |
अगर
लग भी जाता
तो
ज्यादा बात नहीं होती|
वही
हमेशा की तरह
कैसे हो बेटा
हम सब ठीक है ,
अपना ख्याल रखना,
आदि
दोहराए जाते |
माँ मैं तुमसे कहना चाहता हू, कई बाते मगर तुम उसे टाल दोगी | जानता हू पूरा बचपन और जवानी गुजार दी मैंने , तुम्हारे आँचल की कवचनुमा छाव में , अब किसी और से उस गोद उस स्नेह स्पर्श आँचल और काँधे की उम्मीद सपना भर लगती है | फिर भी
बहुत घनी
है,
अब भी
उन यादों की छाव ,
गुजारने को
सौ जीवन ,
हो चाहे
नरक सामान ...
माँ तुम क्या हो ये सिर्फ मैं जानता हू | तुम भी शायद ये ना जान पाओगी , कितना अनोखा है ना माँ-बेटे का ये रिश्ता ! आज जब अपने बेटे को , उसकी माँ की गोद में मचलते, अनुनय करते , दुलारे जाते देखता हू तो अनायास उस स्राष्टिकर्ता पर उसके अजब करतब पर
बस
हैरान होकर
रह जाता हू
अपने बेटू की
प्यारी "मम्मी" को
मै भी
कभी कभी .....
"माँ"
कह जाता हू !
~ महिला दिवस की शुभकामनाए ~