Thursday, December 1, 2022

बाबू ! सब्बै मीडिआ बिकाऊ ना बा ...

 

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ससुर  इहा हर खबर बिकात बा  ,
अउ जो बिकात बा 
सोइ ना छपात बा !
कहत हई के मीडिया बिकात बा ?

अरे भाई हर खबर
अब जरुरी तो नहीं होती ,
खबर छुपाना....
खबरे बनाना ...
सरकारी काम है देखो ,
ना ! मजबूरी कतई नहीं होती !!

अरे भाई साहब !
भाई से ऊपर भी कई ,
साहब पे साहेब
फिर सबसे बड़े जो
साहेब है ना...
हां ! हां !! जी !  जी !! वही -वही
ठीक समझे आप..
तो साहब जो लिख दिए
समझो अध्यादेश हो गया
उनका पार्टी-कार्यालय
और आँगन समझो देश हो गया

तो हम तो देश ही की
खबर बजाते है ,
जो जूठन सरकार
गिरा देते है
बस वही खाते है
लोगों का क्या है
यु ही बतियाते है

आप तो देखो
कितने समझदार है ,
क्यों इनकी बातों में आते है
आइये आपकी
कमाई कहा गवाना ..... मतलब
कहा लगाना है
हम बताते है

आपका अपना "मीडिया" , जो बिकाऊ तो कतई नहीं है

Wednesday, November 16, 2022

आ-कल-जल !

 

What My 83-Year-Old Great Grandma Taught Me About The Meaning of Life —  OMAR ITANI 

 

शब्दों के गुंजन में ,
अर्थों की ध्वनि नहीं थी ,
नितांत भावपूर्ण-अनर्थता थी !
यथार्थ के धरातल ,
चौरस-समतल नहीं थे ,
छंदहीन-समरसता थी वहां !

ज्ञान के आडम्बर से शून्य ,
अनुभवों का सहज आकाश ,
कथाओं के अलोक से जगमगाता ,
आलिंगन ले लोरियाँ सुनाता रहा ,
जगाता सुलाता रहा रातभर ,

वो रात की चाँदनी
और ये भोर की रश्मियाँ
मुझे क्यों सब एक से लगे ...
खैर दिन चढ़ आया है
फिर काम पर भी तो जाना है !

सच !
यही तो है जिंदगी...
उलझी उलझी मगर
निपट, सरल , सुलझी भी ...

 

Monday, November 14, 2022

भगत नहीं छपा करते नोटों पर


मैं एक मानव हूं और जो कुछ भी मानवता को प्रभावित करता है उससे मुझे मतलब है.
-भगत सिंह

भगत नहीं छपा करते नोटों पर 
भगत नहीं बिकते बाजारों में 
भगत की बोली नहीं लगती 
भगत विचारों ही से हिला देते है 
भगत जब बोलते है सब सुनते है 
भगत मिट कर भी खामोश नहीं होते 
भगत बदलते नहीं बदल देते है 
भगत होने के लिए सिर्फ कलेजा चाहिए 
भगत जिंदाबाद सुनने तक नहीं जीते 
भगत के लिए कोई क्या करेगा 
भगत का कर्ज चुकाना मुमकिन नहीं 
भगत का भूल जाना मुमकिन है 
भगत को भुला पाना मुमकिन नहीं 
भगत ने बनाया जिस हिन्दोस्तां को 
भगत को वहा मिटा पाना मुमकिन नहीं 

भगत सिंह अंग्रेजो के न्यायप्रियता के मुखौटे को नोच फेकने वाले शेर का वो पंजा था जिसने एक ही वार से कभी ना डूबने वाला फिरंगी गुमान को जमीं पे दे मारा था जिसकी गूंज  डिबिया जैसा सिकुड़ा ब्रितानी समाज आज भी सुनता है । 

Thursday, September 22, 2022

शिकायतें मगरूर है मगर ...

Pahimakas - Being a giver taught me that it's okay to feel bad for others  and not help them in a way they needed. It's okay to look stern, arrogant,  and ungrateful 
 
पूछो ना क्या याद रहा , क्या मैंने भुला दिया |
उसका फिर याद आना , फिर मैंने भुला दिया ||

पलट पलट के किताबे-अतीत थक गया था मै |
जागता रहा रात भर मगर तुझको सुला दिया ||

आहिस्ते से बात कर , सुन धड़क रहा है दिल |
अभी चुप किया था मैंने , फिर तूने रुला दिया ||

शिकन ये चादरों पर, ये शिकन तन्हाइयों की है |
लम्हा है कटता नहीं यहाँ, तूने किस्सा बना दिया ||

इस हाल यार मुलाक़ात तो फिलहाल क्या होगी |
मसरूफ़े तंगहाल को मग़रूर तुम्ही ने बना दिया || 
 
कुछ लिखू मै ये ख्वाहिश तो कई दिनों से थी मगर |
मेरी मेज को जरूरतों ने जाने कब दफ्तर बना दिया ||

खैर शिकायतों की ये किश्त तो बस आखरी है दोस्त |
सबबे-बेसब को सबब जीने का नज़रिया दिला दिया ||


 


मच्छर बड़ा कि नेता ?


 

दोनों खाते
सुख और चैन
पीते
केवल
इंसानी खून

एक
शहीद 
होता ताली पर
दूजा बस 
कटा नाख़ून

साफ़ पानी में
एक है पलता
दूजा
गटर में भी
जी जाय

सख्त जान
दोनों की
पिए रक्त
ना शर्माय

एक मौसम में
ही भिन्नाता
दूजा
बारहों मास भिन्नाय

एक दे मारे
डेंगू मलेरिया
दूसरा
भ्रष्टाचार फैलाय

एक
काटे
मारे मार
स्वयं मर जाय
दूजा
तडपावे
जीतों को
अरु
मनुज मार के खाय

काहे छिड़के
धूंवा दवाई
करम सुन के
नेताओं के
मच्छर 
शर्म ही से न मर जाय !

Friday, September 16, 2022

वो रोज अनशन करता है



वो रोज अनशन करता है  

फुटपाथ पर 
झोपड़ों में 
जंगलों 
दुरान्चलों 
और 
तुम्हारी गली में भी 

भूख 
और 
गरीबी के खिलाफ 
जो 
रची 
थोपी 
गयी है 
पीढ़ी दर पीढ़ी  
उनके 
और 
उनकी 
संतानों द्वारा 
इन पर 
इनके 
बाप 
दादाओं पर 
वो 
तभी से 
अनशन पर है 

उसकी 
मंशा है 
कि 

कोई भी 
कभी भी 
तुड़वा सकता है 
उसका
अनिश्चितकालीन 
आमरण अनशन 
देकर 
एक टुकड़ा 
बासी रोटी 
सड़ा अनाज 
या 
जूठन ही 
मानवता के 
उत्सवी जनाजों की 

उड़ती उड़ती 
अफवाह है 
अब 
इसका भी 
बड़ा बाजार है 
वो मायूस तो है ही 
मरने को है 
ये जानकर कि 
भूख 
अब डर नहीं 
साधन बन गयी है 
डराने का 

वो जो 
नगर चौक पे 
गद्दों पर पसरा 
भीड़ से घिरा 
अनशना रहा है 
कुंवर है 
ऊँचे घराने का  |

अनशन 
अब सीढ़ी है 
स्वार्थ की 
इससे निबटना 
जानती है 
सामंती सत्ता 
वो डरती नहीं 
आकलन करती है 
भीड़ में 
विरोधी वोटों का 

उसका 
आमरण अनशन
हमेशा 
सफल रहा है 
मरण बन कर 
उसके साथ ही  
मिट जायेगी 
भूख 
गरीबी 
और 
नाकामियाँ 
नाकारा 
सरकार की |

Sunday, August 7, 2022

भटकने लगे है लोग



एक गरम साँस 
होठों के आगे
कानों के पीछे 
एक ठंडी फूंक की ख़ातिर 
बिकने लगे है लोग 


कितने ऊपर 
और चढ़ेंगे
अपने ही 
अगणित 
नरमुंडो पर 
फिसल फिसल 
अब तो 
गिरने लगे है लोग 

मंजिलों से आगे 
और भी आगे  
आसमानों की 
आदिम फ़िराक में
उड़ने से 
चलने या उठने भर से   
बहुत पहले ही 
थकने लगे है लोग 

एकदूजे को 
जकड़े भींचे 
राह दिखाते 
बेसब्र हल्कान 
लड़ने 
उलझने 
भटकने लगे है लोग ...