
मनुष्य कहाँ हूँ ?
पशु से भी 
कमतर ...
ढकी हुई 
लाचारी हूँ मैं !
संविधान के 
लच्छेदार 
अनुच्छेदों में ...
उलझी हुई 
बीमारी हूँ मैं !
धर्मग्रंथो की 
ग्रंथियों में ...
कुंठित !
शापित !
महामारी हूँ मैं ...
विश्वपटल के 
क्रियाकलाप पर ...
नैतिकता सी !
भारी हूँ मैं ....
माँ ,पत्नी ,
बहन ,बेटी ,
हो बटी हुई ...
हिन्दू मुस्लिम में 
कटी हुई...
भाषण कविता में
रटी हुई ...
भूल गयी थी 
नारी हूँ मैं !!!
निर्लज्ज पौरुष के ,
लम्पट ,कपट भवन में ...
दबी हुई 
चिंगारी हूँ मैं ..... 
वाह!!
ReplyDeleteजय श्री कृष्ण जी !
Delete@very nice yarr@
ReplyDeleteजय श्री कृष्ण जी !
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