बहुत भीड़ है
हर जगह अनाम से
खुली
छूट है आरक्षित
ओट से देख लो
रंग आसमानी हो ग़र ...
फिर केसरी तो
सबसे अच्छा है !
फिर केसरी तो
सबसे अच्छा है !
सभी को फागुन की बहुत बहुत रंग भीनी शुभकामनाये !
जय श्री कृष्ण जी ! राधे राधे !!
फिर कोई लोभ का रावण , साधू सा वेश धर वोट मांगता है | शहीदों ने खिंची थी जो लक्ष्मण रेखा वो फिर लहू मांगती है || Tarun Kumar Thakur,Indore (M P) "मेरा यह मानना है कि, कवि अपनी कविता का प्रथम पाठक/श्रोता मात्र होता है |"
आज फिर
तुमसे
दुःख अपने
कुछ टूटे सपने
बाँट रही हूँ
बोया था
एक बीज तुमने
उसके विकसित
कल्प तरु से
थोड़े काँटे
कुसंग कीट को
सहला समझा कर
छांट रही हूँ
अंतराल के
नीरव
रौरव को
नयन नीर से
अंतस ही में
धीरे धीरे
पाट रही हूँ
इंतज़ार के
औजारों से
जीवन की रेखा
घिसते घिसते
काट रही हूँ
अनुभव के
निष्कलंक
कोमल
रेशों से
वही तुम्हारा
एक ख़्वाब तिरंगा
देसी चरखे पर
कांत रही हूँ ...
तुम्हारी .....