Wednesday, January 25, 2023

सखी आयो , अबके ...बासंती गणतंत्र !

 

 वसंत पंचमी 2022 | Vasant Panchami Kyo Manai Jati hain - Easy HindiGantantra diwas hi-res stock photography and images - Alamy

सखी आयो ,
फिर छायो,
गदरायो , देख बसंत !

मनभावन ,
अति पावन ,
जन गण धन
भरी लायो ,

अबके , नेक बसंत !

सखी आयो ,
मन भायो ,
बौरायो , देख बसंत !

कुञ्ज गलिन अरु
पाथ  मलिन  सबै
पसरायो ,
हरसायो , एक बसंत !

सखी आयो ,
सुधि बिसरायो  ,
दिग छायो , देख बसंत !

हाथ रंगे
मेहंदी सन
पग भये
महावर

सगरी सखियन के ,


महुवा से भये
गात भरे 
झरै 
पीपर के पात हरे
बदरा बन
वन ही वन
आप झरै
ज्यो कजरा बन
बैरन पीर झरै

सखी आयो ,
सब्बे पगरायो ,
हुलसायो , मन-वेध बसंत !

जगी
बन जोगन
कितनी रात सखी
अबके
कह दूंगी वो
बात सखी ...

मन बाँध रखी
जो बात सखी ...

पिय समझावन
नयन मिलावन
पग पधरावन 
आ न सखी !

सखी आयो ,
पाती प्रिय लायो  ,
हरकायो, देख बसंत !

सभी प्रिय, माँ भारती के लाड़ले-लाड़लीयों को बासंती गणतंत्र दिवस की बहुत रंगभरी शुभकामनाएं  !
माँ सरस्वती , अपने वात्सल्य का सबको सहज उपहार दे ,यही प्रार्थना है , मातु चरणों में !

वन्दे वीणा-पुस्तक धारिणीं, शुभदा सकल जग तारिणीं |
नमामि मातु ऐं सरस्वत्यै, सकल कलि-कल्मष हारिणीं || 

Monday, January 23, 2023

संविधान अधूरा है .... तुम्हारे हस्ताक्षर बिना !

Indian constitution

 

उनके
और तुम्हारे
हस्ताक्षरों के बगैर
ये संविधान
अधूरा ही रहेगा !

वो
जो शहीद हो गए
सीमाओं पर
अनाम ही

वो
जो मिल गए
मिटा दिए गए
इसी मिट्टी में
इसी को
खोदते / जोतते

वो
जो पसीना बन
भाप हो गए
नारकीय भट्टियों और 
दमघोंटू
कारखानों में 

वो
जो हमें सिखाते
भूल गए
परिवार
और
स्वयं को भी

वो
जो जागते रहे
हमारी सेवा में
हस्पतालों
बसों , ट्रकों ,ट्रेनों 
और चौराहों तक

वो
जो खटती रही
रसोई में बरसों 
पिसती रही
पीहर और
ससुराल के बीच

वो
जो धोते
ढोते रहे
मैले
और साफ़
सारे ज़माने को

वो
जो खिलाते
पालते रहे
मूक पशु
वंचितों
और
पंछियों तक को

वो
कई और भी
जाहिर
और छुपे रह कर भी
कर गए
देश को
धन्य इतना

देखो
अबके चूक मत जाना

सबके
हस्ताक्षरों का
जरिया है
यह चुनाव ,

लोकतंत्र के
महानतम ग्रन्थ
संविधान पर
तुम्हे / उन्हें
हस्ताक्षर का
फिर से
एक अवसर देगा ...

Sunday, January 22, 2023

महफ़िल बहस में है ...

Humor, Cartoons, Hindi Cartoon, Indian Cartoon, Cartoon on Indian Politics  by Kirtish Bhatt: जो खुद बहस का विषय हो गए


एक आग सी 
लगी है 
वतन को 
और 
वीर सारे 
कही 
बहस में है !
 
जला के 
घर अपना 
तापते !
बदहवास 
सब ,
एक नई 
बहस में है !!

वतन पे 
जान देने वाले ,
सोचते है ...
सरहदों पे 
कब तक ,
यु मरे...
 
लुट चुकी 
अस्मत पे भी
टी.आर.पी. ....???
गोया , 
सारे मजे ही 
बहस में है !!

पडोसी 
दुश्मनों ... !!
सरहदों को लांघ के ,
ज़रा 
चुपके से ...
आना तो प्यारे !
 
आंखे सेकता ...
जुबान चलाता ...
मेरा 
प्यारा वतन 
अभी 
बहस में है ...

एक बहस 
अभी 
ख़त्म हुई नहीं ,
लो ...
एक बहस ,
खुद 
बहस में है ??
 
बहस 
पे 
बहस ,
की 
बहस 
में ,
करता 
बहस 
जो ,
खुद 
अभी
बहस में है ....

Friday, January 20, 2023

एक चुटकी आजादी की कीमत ....तुम क्या जानो ?



आज 
कहाँ समझ पाओगे 
कीमत आजादी की 

जिसके बदले 
ज़रा सा टैक्स देते 
कराह उठते हो तुम 

तुम क्या जानो 
जब लगान में 
पीढ़ियां पेल दी जाती थी 
अय्याश हुकूमतों के 
कोल्हू में 

जब जवानी 
नारी देह का 
कोढ़ बन चुकी थी 
और दो वक्त की रोटी 
जिंदगियों का हासिल 

तब 
एक कतरा भी 
आजादी का 
तौल सकता था 
मन भर लहुँ ...
 
और 
मन भर लहुँ बहाकर भी 
नहीं मिला करती  थी 
एक कतरा आजादी !!!

Thursday, January 19, 2023

सुनहु पवनसुत रहनि हमारी !


सुनहु पवनसुत रहनि हमारी। जिमि दसनन्हि महुँ जीभ बिचारी।।

श्री हनुमान जी जब माँ जानकी को लंका में ढूंढते हुवे 
विभीषण जी से मिले तो स्वाभाविक कुशल प्रश्न किया
"हे राम भक्त , 
इस विषम लंका नगरी में किस प्रकार निर्वाह करते हो ?"

तब भक्त-शिरोमणि विभीषण महाराज द्रवित हो बोले 
" हम ऐसे रहते है पवनसुत जैसे बत्तीस दाँतों के बीच जीभ रहती है !"

हनुमान जी ने कहा : "बहुत सुन्दर विभीषण , तुम्हारे जैसी रहनी किसी बड़भागी को मिलती है " 

विभीषण आश्चर्य से कहने लगे : " प्रभु 32 दाँतो के बीच जीभ रहे वह सुन्दर कैसे ?"

हनुमान जी बोले : " विभीषण जगत में पहले जीभ आई की दाँत ? "
विभीषण : "जीभ प्रभु " ...

हनुमान जी : " पहले जीभ गिरती है या दाँत ? "
विभीषण : "दाँत ही गिरते है प्रभु "...

"तो बस विभीषण , 
एक मास में श्री राम आकर इन राक्षस रूपी दाँतो को गिरा देंगे 
और तुम जीभ जैसे कायम जीवी हो जाओगे "

जब हनुमान जी ने जब ये अर्थ बताया 
तो विभीषण को वही स्थिति जो पहले दू:खद लग रही थी 
वही अब अनुकूल लगने लगी ।

|| जीवन में जब सद्गुरु आता है तो वह दृष्टि बदल देता है ||
 
जीभ और दाँत की तरह ही , 
समाज में दुर्जन बहुत है और सज्जन बहुत थोड़े 
और सज्जनो को दुर्जनो के बीच ही रहना होता है । 
भोजन को काटने , चबाने , तोड़ने का काम दांत करते है , 
मगर स्वाद उनको नहीं मिलता स्वाद जीभ ले जाती है , 
उसी प्रकार दुर्जन समाज को तोड़ने का काम करते है 
इसलिए स्वयं भी सुखी नहीं रहते और अंत में नष्ट हो जाते है 
और सज्जन जीभ की तरह 
समन्वय और समाज को जोड़ने का काम करते है 
इसलिए समाज के साथ अंतत: स्वयं भी सुख प्राप्त करते है ।
 
|| बोलिए श्री सीताराम दुलारे हनुमान लला जी प्रिय हो ! ||
श्री सद्गुरु देव प्रिय हो !
(पूज्य बापू की कथा से उद्घृत )

Saturday, January 14, 2023

अब तो उत्तरायण हो भाग्य मेरे !

 https://s3images.zee5.com/wp-content/uploads/sites/7/2020/01/Sankranti-Kannada.jpg


ले एक और
उत्तरायण हो गयी
सूर्य देवता
फिर
पूरब से निकले
फिर
अस्त हुए पश्चिम में

एक चक्कर
लगा आये वो
उत्तर से
दक्षिण का
फिर एक बार

खत्म हुआ
देव शयन भी तो कब का ...

हे भाग्य देव !
तुम क्यों ,
करवट नहीं लेते ,
आँखे तो खोलो ,
देखो तो जरा ...

कोई बैठा चरणों में
इंतजार में
मुरझा  रहा है ...

ख़त्म कीजिये
विरह के
अंतहीन
इस अंतराल को
तृप्त कीजिए
सुख की वर्षा से
हो आस हरी
यही इच्छा है प्रभु चरणों में !
दास की खरी खरी !

शुभ संक्रांति हो
मेरी ,आपकी और सबकी
शेष जो इच्छा उसकी ...


जय हो श्री हरि ! हरि  !!

 

Friday, January 13, 2023

वो पेड़ पतंगों वाला

Anna's Kite


याद है ना
बचपन अपना ,
रोज नई नन्ही
उमंगो वाला !
याद है वो पेड़ ,
पतंगों वाला !

जिस पर
उग आती थी ,
लोहड़ी / सक्रांत पर ,
ढेरो पतंगे ,
सूत , मांझे समेत ! ... फिर
किसी 'सांताक्लॉज़' सा
बांटता रहता था वो ,
उत्तरायण भर
रंग बिरंगी पतंगे

भेद नहीं किया
उस पेड़ ने कभी
काले , गोरे का ,
बिना ऊंच नीच
छुआछूत से पर ,
बांटता गया
पहली से अंतिम तक
पतंग और धागा ...

बांधता गया बचपन
समेटता रहा यादें ...

सर पर उसने ,
अरमानो का
विस्तृत , नीला
आसमान भी
उठा रक्खा था !

क्या पता
रातों को टूटकर
तमाम तारे ही
अटक जाते थे
उसकी सांखो में ...

सुबह पतंग बन
उतर जाते थे
नन्हे हाथों में

फिर नन्हे जादूगर
लग जाते थे
जुगत में
कि फिर एक बार
उड़ा कर
पहुंचा ही देंगे जैसे
उन तारों को
उसी अरमान में !

टूट भी
कट भी जाती थी
कुछ पतंगे
खींचतान में 

तो इत्मीनान था
तारा बन , भोर तक
अटकी रहेंगी ... ऊपर ही
या पेड़ पर कि ,
आसमान में !

Wednesday, January 11, 2023

नरेन्द्र ही बनते है विवेकानंद बिरले !



स्खलित होता ,
कुंठित ,
ढोता अपेक्षाएं,
सहता उपेक्षाए !
प्रवंचना...
 
दू:साहस 
और 
स्वप्न के बीच 
भ्रम को 
ब्रह्म मान
चौराहों पर 
बिकता !
कुचला जाता ?
 
मेरे भारत का 
गौरव बन सको 
तो स्वयं को 
युवा कहना !
वर्ना ...
शहीदी की राह भी 
जवानो ने बना रक्खी है !
 
बस ये ना करना 
कि
रोती माओं 
बिलखती बेवाओं 
को बेसहारा कर 
पलायन कर लो ...
 
गुनाह है...
तरुणाई जो राह भटके !
 
तुम दीप बनना राह के ,
फूल ही बनाना ,
भले धूल बन 
मिट जाना माटी पर !
 
मगर 
भूल ना बनना,
ये भूल ना करना ,
बेशर्मी और नादानी का फर्क 
ही बहुत है ...
 
शेष तो 
कोई ठाकुर बना ही देगा 
अपने आशीष के बल से 
तुम्हे 
नर से नरेन्द्र !

विवेक हो सदा 
आनंद से पहले 
ऐसे तुम कोटि कोटि 
विवेकानंद बनो !

उत्तिष्ठ भारत !
प्राणवान हो !!
प्राणवान हो !!!
प्रज्ञा हो प्रखर ,
मानव की जिजीविषा का 
अकाट्य एक प्रमाण हो !
 
तुम दान हो माटी को 
पूज्य वंशधरो का 
भारती का यश हो 
यशगान हो !


Monday, January 9, 2023

जोशीमठ इज सिंकिंग डाउन आवर फेयर मोदी !

PMO to hold high-level meet on Joshimath crisis, Uttarakhand officials to  attend - India Today
joshimath is sinking down , our fair Modi !

 


जोशीमठ धंस रहा है ,
ढह रहा है प्यारे मोदी  !

जिससे बिजली ,
जिसका पानी ,
खूब खींची ,
खूब सींचा , देश ने ?
तुमने ... मित्रों ने भी !
आज वोही

बूढ़ा ... शंकर कह रहा है
जोशीमठ  दरक रहा है ,
ढह रहा है प्यारे मोदी  !

बनाया ,
जिद करके जो
खंड उत्तर ,
बह रहा है ...
बेअसुल
मुनाफा वसूल
विकास की
अंधी धार में


प्यारा , न्यारा ...
भोला बद्री  !
कराहता कर्णप्रयाग !
कह रहा ...
बचा सको.. गर
बचालो  ...

होते ,देखते , तुम्हारे
जोशीमठ डूब रहा है ,
ढह रहा है प्यारे मोदी !

बचा सको जिनको ,
उतनो को तो
बचा लो !
चौबीस का शंख
बज चुका
अब
कुर्सी ही मत सम्हालो  !

गरीब , गुरबा सब
कह रहा है
मत करना निराश ,
वक्त है,
सम्हलो नहीं
सम्हाल लो ...  !

जोशीमठ धंस रहा है ,
ढह रहा है प्यारे  मोदी !

Monday, January 2, 2023

अहो ! सिर्फ नारी हूँ मैं !

https://i.pinimg.com/736x/00/2d/fe/002dfe37a242c4d5fac314549ff3bb8f.jpg



मनुष्य कहाँ हूँ ?
पशु से भी 
कमतर ...
 
ढकी हुई 
लाचारी हूँ मैं !

संविधान के 
लच्छेदार 
अनुच्छेदों में ...
 
उलझी हुई 
बीमारी हूँ मैं !

धर्मग्रंथो की 
ग्रंथियों में ...
कुंठित !
 
शापित !
महामारी हूँ मैं ...

विश्वपटल के 
क्रियाकलाप पर ...
 
नैतिकता सी !
भारी हूँ मैं ....

माँ ,पत्नी ,
बहन ,बेटी ,
हो बटी हुई ...
 
हिन्दू मुस्लिम में 
कटी हुई...

भाषण कविता में 
रटी हुई ...
 
भूल गयी थी 
नारी हूँ मैं !!!

निर्लज्ज पौरुष के ,
लम्पट ,कपट भवन में ...
 
दबी हुई 
चिंगारी हूँ मैं ..... 




Thursday, December 29, 2022

परवाज़ ... एक उड़ान !

300+ Free Little Sparrow & Sparrow Images - Pixabay

 

मैं छोटा ,

मेरा मतलब छोटा ,

मनसूबे / हौंसले है ...

मगर छोटे !

 

लगा मत बैठना ...

मेरी परवाज़ का अंदाजा !!!

देखकर ...

ये मेरे ...पर छोटे !

Tuesday, December 27, 2022

बाबू अब तुम बड़े हो गए !

 

Father and son beginning to walk | Line art drawings, Father and son,  Simple line drawings
अपने बेटे को उसके बीसवे जन्मदिवस पर प्यार भरी सीख , ढेरो स्नेह और आशीर्वाद  के साथ !

 
बाबू अब तुम बड़े हो गए
जिम्मेदारी समझोगे !
अपना बचपन छोड़ के
एकदिन
हमरी चप्पलें जो पहनोगे .... 

तब ही
शायद समझ सकोगे
उलझन हमरी
सब सांझे सुख दुःख
हंस गा कर
तुम भी ऐसे जी लोगे  

जीवन क्या है ?
एक कपट जाल सा
मनुज उस में फंस जाते है
सब जीवो में
अलग जात है
बुद्धिमान कहलाते है ???

फिर रच रच
ना ना प्रपंच बहुत विधि
खुद ही को समझाते है !!!
पढ़ पढ़ पुराण
ईतिहास धुरंदर...
उसको ही
दोहराते है !!!

है वही आदतें
वही लड़कपन ,
वही खिलौने
नया कलेवर ,
रूप बदल कर
मृग-तृष्णा-तुर
अधुनातन कहलाते है ?

भोजन देना
भूखे को ,
दान कर सको
विद्या का कर देना
सब गौरव पा जाओगे !

बस यौवन / धन का
आग्रह मत रखना ,
मौज में रहना
सहज में कहना !

वर्तमान ही
जीवन है
बीत गई
सो बात गयी !

आगे का आगे सोचेंगे
बोझ ना मन पर
तनिक न लेना !

अंत समय
अपने मानस को
निर्मल ही
प्रभु चरण अर्पण कर देना !

अस्तु बिटुआ इतना ही
कहना है !
हमको तुमको
इस धरती / माटी में
रहकर / रचकर ही 
बहुत प्रेम से ...धीरे धीरे
परिपाटी को ... 
कुछ.. पहले से ... थोड़ा सा ही
बेहतर करना है !

सेन्योरुभ्योर्मध्ये विषीदन्तमिदं - समर मध्य क्यों विहँसे गोविन्द ?

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|| सेन्योरुभ्योर्मध्ये विषीदन्तमिदं ||

सहजता
निश्छलता
करुणा सहज हास
स्वभाव है जिनका ,
जो स्वयं ही
माया पति
लीला प्रपंच रचते रहते , नित सभी !

वो ही ,
बस केवल वही तो ,
हंस सकते है !
रणभूमि में , वरन
श्मशान में भी !

घटोत्कच के उत्सर्ग पर ,
द्रोण के "नरो वा कुंजरो वा "
जैसे लांछनो पर भी, तो
रथ निकालते  कर्ण के
धर्म-वचनो पर भी ,
दुर्योधन के कुचक्र पर ,
दुर्वासा के प्रयोजन ,
और गांधारी के श्राप तक पर !

हँसना ही तो !
भूल गया है ,
अति-आधुनिक
बहु-संपन्न-प्रबुद्ध-सबल मानव ?
इसलिए तो कुरुक्षेत्र  में
केवल वो गुरु है ,
ईश्वर है !
और पार्थ, तो बेबस मानव है !

जो छीन रहे हँसी
दुधमुहों
नवविवाहिताओं
कुमारिकाओं तक की
वे हो कोई , कभी , कही
वही कुरुसेनाहै |
निश्चय ही अधम है
दनुज है ,
वही दानव है !
 
हास्य योग ही नहीं ,
अस्तु उपलब्धि है योग की !
चरम अवस्था है ध्यान की !!
पराकाष्ठा प्राणायाम की !!!

हास्य करुणा है !
हास्य अनुभव से अर्जित
अजेय निर्भयता है ! प्रिय पार्थ !

अस्त्र है हास्य
जो हर लेता है
विकट काल को
सभी प्रपंच और जंजाल को भी |

तभी तो
कुंठित कुरु ही नहीं ,
उद्धत वीर पाण्डु भी नहीं ,
न संजय, न तो धृतराष्ट्र ही , हँसे |

अस्तु ,गीता में हँसे तो
बस मेरे गोविन्द ही
राधा के रमण
बृज के गोपाल
रच कर युद्ध का
देखो कैसा महारास हँसे ....

कुतस्त्वा कश्मलमिदं ...


 
 एक सार्वभौम प्रासंगिक सन्दर्भ : मधुसूदन उवाच ! (गीता : द्वितीय अध्याय - भाग १ )
 
तब उस 
करुणामूर्ति ने 
करुणापूरित 
अश्रुरत 
नत नयन 
भीत भी 
क्लांत भी 
गांडीव धर चुके 
पस्त हृदय 
अर्जुन के प्रति 
यो कहा 
जैसे 
युगों से कहा ...
 
मधु मर्दन ने 
हां 
जिसने 
स्वयं की माया से 
उत्पन्न 
मधु को 
कैटभ संग 
मरीचिका के उत्तल पर 
जंघा ही को 
धरा कर 
छिन्न मस्तक 
किया था कभी ...
 
उसने 
हां उसने कहा 
तभी तो 
अब तलक ये 
सन्दर्भ 
सार्वभौम और 
प्रासंगिक रहा 
टिका रहा |

युक्त श्री और समस्त
ऐश्वर्य/वीर्य/स्मृति/यश/ज्ञान
से
वही श्री भगवान् स्वयं ,
पूछते विस्मय का स्वांग भर  ...

हे अर्जुन !
क्यों माननीयों के द्वारा
निर्णित समर समवेत में ,
प्रश्न पूछते हो अग्य-मूढ़ से  ?

तुम्हारे शोक-पीड़ा-संवेदना में
झलक रही बस
कातरता ,
पौरुषहीन-दीनता ही मुझे  !

तुम्हारा पलायन
न इस लोक में यश देगा ,
ना परलोक में सुख ही कभी !

कायरता और शोक ,
रणभूमि में वर्जित सदा !
त्याग कर तुच्छ
हृदय की  दुर्बलता ,
धर गांडीव खड़ा हो पार्थ !!

प्रत्युत्तर को 
प्रस्तुत अधर्म के
सन्नद्ध हो !!!
वर-वीर अहो ! सेनानी !!
इन शस्त्रों के निमित्त ही ?
इस घड़ी ही की आयोजना में ??
तो तप-रत रहा न तू अभिमानी ???




source : Bhagwad Geeta , chtr-2, ver -1

सञ्जय उवाच॥

तं तथा कृपयाविष्टमश्रुपूर्णाकुलेक्षणम् ।
विषीदन्तमिदं वाक्यमुवाच मधुसूदनः ॥२-१॥ .....

तब करुणापूरित वयाकुल नेत्रों वाले शोकयुक्त अर्जुन से मधु का वध करने वाले श्री भगवान ने ये वचन कहे 
 Sanjay says – Then, the destroyer of Madhu, Sri Krishna said to compassionate and sorrowful Arjun, who was anxious with tears in his eyes-॥1॥

गीता द्वितीय अध्याय श्लोक – २

श्रीभगवानुवाच कुतस्त्वा कश्मलमिदं विषमे समुपस्थितम्‌।
अनार्यजुष्टमस्वर्ग्यम्‌ कीर्तिकरमर्जुन॥२-२॥

-: हिंदी भावार्थ :-

श्रीभगवान बोले- हे अर्जुन! तुम्हें इस असमय में यह शोक किस प्रकार हो रहा है? क्योंकि न यह श्रेष्ठ पुरुषों द्वारा आचरित है, न स्वर्ग देने वाला है और न यश देने वाला ही है॥2॥

Lord Krishna says – O Arjun! How can you get sad at this inappropriate time? This sadness is not observed in nobles, it also does not lead to either heaven or glory.॥2॥

गीता द्वितीय अध्याय श्लोक – ३

क्लैब्यं मा स्म गमः पार्थ नैतत्त्वय्युपपद्यते।
क्षुद्रं हृदयदौर्बल्यं त्यक्त्वोत्तिष्ठ परन्तप॥२-३॥

-: हिंदी भावार्थ :-

हे पृथा-पुत्र! कायरता को मत प्राप्त हो, यह तुम्हें शोभा नहीं देती है। हे शत्रु-तापन! हृदय की तुच्छ दुर्बलता को त्याग कर(युद्ध के लिए) खड़े हो जाओ॥3॥

O son of Prutha! Do not yield to weakness, it is not apt for you. O tormentor of foes! Cast aside this small weakness of heart and arise(for battle).॥3॥