Tuesday, December 27, 2022

कुतस्त्वा कश्मलमिदं ...


 
 एक सार्वभौम प्रासंगिक सन्दर्भ : मधुसूदन उवाच ! (गीता : द्वितीय अध्याय - भाग १ )
 
तब उस 
करुणामूर्ति ने 
करुणापूरित 
अश्रुरत 
नत नयन 
भीत भी 
क्लांत भी 
गांडीव धर चुके 
पस्त हृदय 
अर्जुन के प्रति 
यो कहा 
जैसे 
युगों से कहा ...
 
मधु मर्दन ने 
हां 
जिसने 
स्वयं की माया से 
उत्पन्न 
मधु को 
कैटभ संग 
मरीचिका के उत्तल पर 
जंघा ही को 
धरा कर 
छिन्न मस्तक 
किया था कभी ...
 
उसने 
हां उसने कहा 
तभी तो 
अब तलक ये 
सन्दर्भ 
सार्वभौम और 
प्रासंगिक रहा 
टिका रहा |

युक्त श्री और समस्त
ऐश्वर्य/वीर्य/स्मृति/यश/ज्ञान
से
वही श्री भगवान् स्वयं ,
पूछते विस्मय का स्वांग भर  ...

हे अर्जुन !
क्यों माननीयों के द्वारा
निर्णित समर समवेत में ,
प्रश्न पूछते हो अग्य-मूढ़ से  ?

तुम्हारे शोक-पीड़ा-संवेदना में
झलक रही बस
कातरता ,
पौरुषहीन-दीनता ही मुझे  !

तुम्हारा पलायन
न इस लोक में यश देगा ,
ना परलोक में सुख ही कभी !

कायरता और शोक ,
रणभूमि में वर्जित सदा !
त्याग कर तुच्छ
हृदय की  दुर्बलता ,
धर गांडीव खड़ा हो पार्थ !!

प्रत्युत्तर को 
प्रस्तुत अधर्म के
सन्नद्ध हो !!!
वर-वीर अहो ! सेनानी !!
इन शस्त्रों के निमित्त ही ?
इस घड़ी ही की आयोजना में ??
तो तप-रत रहा न तू अभिमानी ???




source : Bhagwad Geeta , chtr-2, ver -1

सञ्जय उवाच॥

तं तथा कृपयाविष्टमश्रुपूर्णाकुलेक्षणम् ।
विषीदन्तमिदं वाक्यमुवाच मधुसूदनः ॥२-१॥ .....

तब करुणापूरित वयाकुल नेत्रों वाले शोकयुक्त अर्जुन से मधु का वध करने वाले श्री भगवान ने ये वचन कहे 
 Sanjay says – Then, the destroyer of Madhu, Sri Krishna said to compassionate and sorrowful Arjun, who was anxious with tears in his eyes-॥1॥

गीता द्वितीय अध्याय श्लोक – २

श्रीभगवानुवाच कुतस्त्वा कश्मलमिदं विषमे समुपस्थितम्‌।
अनार्यजुष्टमस्वर्ग्यम्‌ कीर्तिकरमर्जुन॥२-२॥

-: हिंदी भावार्थ :-

श्रीभगवान बोले- हे अर्जुन! तुम्हें इस असमय में यह शोक किस प्रकार हो रहा है? क्योंकि न यह श्रेष्ठ पुरुषों द्वारा आचरित है, न स्वर्ग देने वाला है और न यश देने वाला ही है॥2॥

Lord Krishna says – O Arjun! How can you get sad at this inappropriate time? This sadness is not observed in nobles, it also does not lead to either heaven or glory.॥2॥

गीता द्वितीय अध्याय श्लोक – ३

क्लैब्यं मा स्म गमः पार्थ नैतत्त्वय्युपपद्यते।
क्षुद्रं हृदयदौर्बल्यं त्यक्त्वोत्तिष्ठ परन्तप॥२-३॥

-: हिंदी भावार्थ :-

हे पृथा-पुत्र! कायरता को मत प्राप्त हो, यह तुम्हें शोभा नहीं देती है। हे शत्रु-तापन! हृदय की तुच्छ दुर्बलता को त्याग कर(युद्ध के लिए) खड़े हो जाओ॥3॥

O son of Prutha! Do not yield to weakness, it is not apt for you. O tormentor of foes! Cast aside this small weakness of heart and arise(for battle).॥3॥

Wednesday, December 7, 2022

दीया और तूफ़ान

Rural Girl And Boy Studying In Lantern Stock Photo - Download Image Now -  Poverty, Child, Education - iStock

बाहर ..

अंधेरों में 

तूफ़ान चल रहा था कोई | 

....

 भीतर ..

 दीये के 

सूरज पल रहे थे कई ||

Tuesday, December 6, 2022

दिल दियां गल्लां !

 

Rest of the winter in Odisha to see warmer nights, colder days- The New  Indian Express 

 

दिल है .... तो दुखता है ,
कम्बख्त रोता भी है !
रिश्ते है ना क्या करे .... ?
रिश्तों में ऐसा होता ही है !!

क्यों प्रेम की परीक्षा दू ... ?
फिर मै  ही ! बार-बार !!
मुश्किल है... दर्जा ,
ज़रूरी नहीं ,पास होता ही है !!

करनी है कोशिश !
तो फिर कर ही लीजिये...
ना करे... तो कुछ कम ,
कुछ अफसोस तो ... फिर भी होता ही है !!

लाख होकर भी आप, उनके,
अपने ....तो हो ना पाएंगे !
समझा के देख लिया ,
ये बेसबर....  बेक़रार होता ही है !!

ठंडी सड़क है जिंदगी,
लिहाज़ा तपिश भी जरुरी है ,
गरमाने मंजर कोई , आसपास 
अरमां-ऐ-नामुराद होता ही है !!

जरुरी नहीं , के आप चाहेंगे
और वैसा हो भी पाएगा ... 
सुलह ...रोज नहीं होती यहाँ , खैर
शहर में  , फ़साद तो होता ही है !!

कुछ कोहरा भी ...
कुछ ठण्ड सी है ,
बुझी बुझी मगर दिलों में
बासी , बगासी , उमंग भी है ....
पैंतरे बदल रही है सियासत ...
तो मुझको तुझको क्या ?
बिस्तर बदल बदल उसे तो
कुछ हासिल होता भी है ??

 

Thursday, December 1, 2022

बाबू ! सब्बै मीडिआ बिकाऊ ना बा ...

 

Image
 
ससुर  इहा हर खबर बिकात बा  ,
अउ जो बिकात बा 
सोइ ना छपात बा !
कहत हई के मीडिया बिकात बा ?

अरे भाई हर खबर
अब जरुरी तो नहीं होती ,
खबर छुपाना....
खबरे बनाना ...
सरकारी काम है देखो ,
ना ! मजबूरी कतई नहीं होती !!

अरे भाई साहब !
भाई से ऊपर भी कई ,
साहब पे साहेब
फिर सबसे बड़े जो
साहेब है ना...
हां ! हां !! जी !  जी !! वही -वही
ठीक समझे आप..
तो साहब जो लिख दिए
समझो अध्यादेश हो गया
उनका पार्टी-कार्यालय
और आँगन समझो देश हो गया

तो हम तो देश ही की
खबर बजाते है ,
जो जूठन सरकार
गिरा देते है
बस वही खाते है
लोगों का क्या है
यु ही बतियाते है

आप तो देखो
कितने समझदार है ,
क्यों इनकी बातों में आते है
आइये आपकी
कमाई कहा गवाना ..... मतलब
कहा लगाना है
हम बताते है

आपका अपना "मीडिया" , जो बिकाऊ तो कतई नहीं है

Wednesday, November 16, 2022

आ-कल-जल !

 

What My 83-Year-Old Great Grandma Taught Me About The Meaning of Life —  OMAR ITANI 

 

शब्दों के गुंजन में ,
अर्थों की ध्वनि नहीं थी ,
नितांत भावपूर्ण-अनर्थता थी !
यथार्थ के धरातल ,
चौरस-समतल नहीं थे ,
छंदहीन-समरसता थी वहां !

ज्ञान के आडम्बर से शून्य ,
अनुभवों का सहज आकाश ,
कथाओं के अलोक से जगमगाता ,
आलिंगन ले लोरियाँ सुनाता रहा ,
जगाता सुलाता रहा रातभर ,

वो रात की चाँदनी
और ये भोर की रश्मियाँ
मुझे क्यों सब एक से लगे ...
खैर दिन चढ़ आया है
फिर काम पर भी तो जाना है !

सच !
यही तो है जिंदगी...
उलझी उलझी मगर
निपट, सरल , सुलझी भी ...

 

Monday, November 14, 2022

भगत नहीं छपा करते नोटों पर


मैं एक मानव हूं और जो कुछ भी मानवता को प्रभावित करता है उससे मुझे मतलब है.
-भगत सिंह

भगत नहीं छपा करते नोटों पर 
भगत नहीं बिकते बाजारों में 
भगत की बोली नहीं लगती 
भगत विचारों ही से हिला देते है 
भगत जब बोलते है सब सुनते है 
भगत मिट कर भी खामोश नहीं होते 
भगत बदलते नहीं बदल देते है 
भगत होने के लिए सिर्फ कलेजा चाहिए 
भगत जिंदाबाद सुनने तक नहीं जीते 
भगत के लिए कोई क्या करेगा 
भगत का कर्ज चुकाना मुमकिन नहीं 
भगत का भूल जाना मुमकिन है 
भगत को भुला पाना मुमकिन नहीं 
भगत ने बनाया जिस हिन्दोस्तां को 
भगत को वहा मिटा पाना मुमकिन नहीं 

भगत सिंह अंग्रेजो के न्यायप्रियता के मुखौटे को नोच फेकने वाले शेर का वो पंजा था जिसने एक ही वार से कभी ना डूबने वाला फिरंगी गुमान को जमीं पे दे मारा था जिसकी गूंज  डिबिया जैसा सिकुड़ा ब्रितानी समाज आज भी सुनता है । 

Thursday, September 22, 2022

शिकायतें मगरूर है मगर ...

Pahimakas - Being a giver taught me that it's okay to feel bad for others  and not help them in a way they needed. It's okay to look stern, arrogant,  and ungrateful 
 
पूछो ना क्या याद रहा , क्या मैंने भुला दिया |
उसका फिर याद आना , फिर मैंने भुला दिया ||

पलट पलट के किताबे-अतीत थक गया था मै |
जागता रहा रात भर मगर तुझको सुला दिया ||

आहिस्ते से बात कर , सुन धड़क रहा है दिल |
अभी चुप किया था मैंने , फिर तूने रुला दिया ||

शिकन ये चादरों पर, ये शिकन तन्हाइयों की है |
लम्हा है कटता नहीं यहाँ, तूने किस्सा बना दिया ||

इस हाल यार मुलाक़ात तो फिलहाल क्या होगी |
मसरूफ़े तंगहाल को मग़रूर तुम्ही ने बना दिया || 
 
कुछ लिखू मै ये ख्वाहिश तो कई दिनों से थी मगर |
मेरी मेज को जरूरतों ने जाने कब दफ्तर बना दिया ||

खैर शिकायतों की ये किश्त तो बस आखरी है दोस्त |
सबबे-बेसब को सबब जीने का नज़रिया दिला दिया ||


 


मच्छर बड़ा कि नेता ?


 

दोनों खाते
सुख और चैन
पीते
केवल
इंसानी खून

एक
शहीद 
होता ताली पर
दूजा बस 
कटा नाख़ून

साफ़ पानी में
एक है पलता
दूजा
गटर में भी
जी जाय

सख्त जान
दोनों की
पिए रक्त
ना शर्माय

एक मौसम में
ही भिन्नाता
दूजा
बारहों मास भिन्नाय

एक दे मारे
डेंगू मलेरिया
दूसरा
भ्रष्टाचार फैलाय

एक
काटे
मारे मार
स्वयं मर जाय
दूजा
तडपावे
जीतों को
अरु
मनुज मार के खाय

काहे छिड़के
धूंवा दवाई
करम सुन के
नेताओं के
मच्छर 
शर्म ही से न मर जाय !

Friday, September 16, 2022

वो रोज अनशन करता है



वो रोज अनशन करता है  

फुटपाथ पर 
झोपड़ों में 
जंगलों 
दुरान्चलों 
और 
तुम्हारी गली में भी 

भूख 
और 
गरीबी के खिलाफ 
जो 
रची 
थोपी 
गयी है 
पीढ़ी दर पीढ़ी  
उनके 
और 
उनकी 
संतानों द्वारा 
इन पर 
इनके 
बाप 
दादाओं पर 
वो 
तभी से 
अनशन पर है 

उसकी 
मंशा है 
कि 

कोई भी 
कभी भी 
तुड़वा सकता है 
उसका
अनिश्चितकालीन 
आमरण अनशन 
देकर 
एक टुकड़ा 
बासी रोटी 
सड़ा अनाज 
या 
जूठन ही 
मानवता के 
उत्सवी जनाजों की 

उड़ती उड़ती 
अफवाह है 
अब 
इसका भी 
बड़ा बाजार है 
वो मायूस तो है ही 
मरने को है 
ये जानकर कि 
भूख 
अब डर नहीं 
साधन बन गयी है 
डराने का 

वो जो 
नगर चौक पे 
गद्दों पर पसरा 
भीड़ से घिरा 
अनशना रहा है 
कुंवर है 
ऊँचे घराने का  |

अनशन 
अब सीढ़ी है 
स्वार्थ की 
इससे निबटना 
जानती है 
सामंती सत्ता 
वो डरती नहीं 
आकलन करती है 
भीड़ में 
विरोधी वोटों का 

उसका 
आमरण अनशन
हमेशा 
सफल रहा है 
मरण बन कर 
उसके साथ ही  
मिट जायेगी 
भूख 
गरीबी 
और 
नाकामियाँ 
नाकारा 
सरकार की |

Sunday, August 7, 2022

भटकने लगे है लोग



एक गरम साँस 
होठों के आगे
कानों के पीछे 
एक ठंडी फूंक की ख़ातिर 
बिकने लगे है लोग 


कितने ऊपर 
और चढ़ेंगे
अपने ही 
अगणित 
नरमुंडो पर 
फिसल फिसल 
अब तो 
गिरने लगे है लोग 

मंजिलों से आगे 
और भी आगे  
आसमानों की 
आदिम फ़िराक में
उड़ने से 
चलने या उठने भर से   
बहुत पहले ही 
थकने लगे है लोग 

एकदूजे को 
जकड़े भींचे 
राह दिखाते 
बेसब्र हल्कान 
लड़ने 
उलझने 
भटकने लगे है लोग ...

Friday, March 19, 2021

उफ़्फ़ ये बेहया बेलग़ाम आँकड़े !

 





एक तरफ बैठे थे
अफसरां लेकर के
बेरोज़गारी
अपराध और
बेपटरी अर्थनीति के
भयावह आँकडे !

दूजी और भी
वैसे ही मातहत
डरा रहे थे ..
दिखा-दिखा कर
महामारी ,
जनसंख्या ,
आत्महत्या और
नारी उत्पीड़न के
निर्लज्ज सूचकांक

बीच में
बेचारे???
मंत्री जी
सर पर हाथ धरे
बुदबुदा रहे थे
आलाकमान से ..
 
अब तो
हद ही पार कर दी है
कम्बख्तों ने  ..
हम सदन में
बाद में
करते रहेंगे बहस
आप तो
ताबड़तोड़
महामना के
पूर्व-हस्ताक्षरित
राजपत्रों पर
राष्ट्रवाद से आप्लावित !
एक और ... ?
फड़कता हुआ !!
अच्छा सा ???
अध्यादेश निकलवाईये  ...

समय आ गया है
ईन्हें  भी
विधान? की
थोड़ी तो मर्यादा
रखनी होगी !!
अब हमें ही
ईन भटके हुवे
आंकड़ों की
लग़ाम कसनी होगी !!!

Sunday, February 28, 2021

हर हर !! महाशिव हरे हरे !!!

Shiv shakti - Home | Facebook


 

 नहीं जानता
मैं
समय की
सीमाएँ
समय जानता है
सबकुछ
तय करता
बदलता
सबकी / सारी / सांझी
परिसीमाएँ

बदल बदल
बहुत बदल सको
तो भी बस
बदल सकोगे
कालांतर
युग बदल गये होंगे
लव निमेष ही में
नव सृष्टि
गढ़ेगा महाकाल
ईति शेष बचेंगे
रूपांतर

क्या उदित
अनुदित
अपघटित हो
रहे विदित
वेदना के पल-छिन
हो रहे भंग
सब शिलाखंड
एक सृष्टि भ्रंश
सौ ब्रह्मांड प्रकट
विकट-निकट
वह डमरू नाद
हरता विषाद
सब पाप ताप
कर भस्म
करे जो लेप
वही निर्लेप
करे संक्षेप
सदाशिव हरे हरे !!
हर हर !! महाशिव हरे हरे !!!
बम बम  ....



Thursday, February 11, 2021

बड़े वो है ..... मुहलगे !


 

हमारे वो ...
वैसे तो
कुच्छ नहीं
हमारे सामने |
कुच्छ कहती नही हूँ
उनको
इसलिए कि
वो है
नेता जी के
बड़े ही
मुहलगे ||

आग मूत रक्खी है
मोहल्ले में
समझाती नहीं हूँ ...
जाने दो जीजी
कौन
ऐसो के
मूह लगे !!


Wednesday, August 26, 2020

ये राहें तरक्की औ वो रोड़े क़यामत

 
ये राहें तरक्की औ वो रोड़े क़यामत ...

सड़क
जो काटती थी
उसे
हर तरह
हर तरफ
दिन रात

गलती
पहाड़ ही की
रही होगी
जो ढह गया
एक दिन
उस पर ...
चुप-चाप | 
 
 
#landslide 
 

 

Thursday, November 26, 2015

दादी के अचार सा खट्टा-मीठा तीखा-कडुवा : "संविधान"



जाने कैसे 
जाने क्या क्या 
मसाले डालकर 
आम का 
पुराना अचार 
जो 
डाला करती थी 
दादीयां / नानीयां

उसका 
जायका 
ज्यादा मायने रखता था 
या 
वजह बनाने की ....
 
इस पर 
बहस हो 
या 
सैकड़ो / हजारों 
तरकीबों पर ...
 
या 
इस पर कि  
सब्जी - फलों तक ही 
महदूद हो 
हद-ऐ-अचार  ...
 
या कि 
गोश्त भी / हड्डियां भी हो !
इस फेहरिश्त में ,
बकौल सेक्युलर 
खरामा खरामा 
हाजमा दुरुस्त करने को !
मर्दानगी बढ़ाने को ....!!
 
या महज 
खालिस जायके 
की खातिर ??
अचार को 
आम की पहुंच 
और समझ से 
कोसो दूर ...
 
इतना 
कसैला / बेस्वाद 
और 
लगभग बेवजह 
बनाने के 
आधुनिकतम मनसूबे देखकर ...

क्या 
आपकी आँखों में 
आंसू नहीं आते ?
 
क्या 
आपका जी भी 
उल्टियाँ करने को 
नहीं करता ...??
 
उल्टियाँ करता मुल्क 
उम्मीद से तो 
नहीं लगता...   

Thursday, February 9, 2012

देस


जहां
मेरे नाम भी 
एक जमीन हो 
जिस पर 
चला सकूँ हल 
बो सकूँ 
सपनों के बीज 
जहां 
सावन 
तकादे ना कराये 
ना ही 
बिन  बुलाये 
बाढ़ / सूखा 
थोप दिए जाए 
जिसके बहाने 
सरकारी अमरबेल 
फिर 
पनप जाए 

मैं तो 
परदेस में 
ईटें बनाता हूँ 
सुना है 
मेरी 
गिरवी 
खपरैल पर 
नेता मुरदार 
वोट 
माँगने आये रहे 

ना 
हम नाही गए 
बटन दबाने 
और 
ऊँगली पर निसान 
अरे 
ये तो ईटा से 
कुचल गयी 
मुद्दा 
हम तो 
कब से 
"देस" गए ही नाही !


Sunday, February 5, 2012

मैं



खोजता हूँ
स्वयं को 
स्वयं ही में 
खो गया हूँ 
मैं !
कुछ और था 
कुछ देर पहले 
अब 
कोई और 
हो गया हूँ 
मैं !

Wednesday, February 1, 2012

धीरे धीरे


धीरे धीरे 
सब बदलता है 
वक्त भी 
समाज भी 
व्यक्ति भी 
साधन 
और 
साध्य भी 
मगर 
सोच ...
नहीं !
कुछ तो चाहिए 
वर्ना 
जिन्दगी 
मायनेदार ना हो जाए !


Thursday, January 19, 2012

मिटटी में खेलता बचपन



खो ना जाए मिटटी ही में 
उसे पनपने दोगे ना !
अपने भागते जीवन में 
उसे भी जगह दोगे ना !
कुचल तो नहीं दोगे ?
अंधी दौड़ में 
कोई बचपन 
गति 
अन्धविकास की
थाम कर 
कुछ क्षण 
उसे राह दोगे ना !
वो क्या देगा ?
ये ना समझ पाओगे 
अभी 
तो भी 
झंझावत में समय के 
किनारे ढूंढ़ती 
मानवी जीवन रेखा के 
संबल के खातिर ही 
अकिंचन बात मेरी 
मान लोगे ना !


Saturday, January 14, 2012

सरकारी स्कूल


राम रहीम 
सरजू बिरजू 
पोलियो वाली दुलारी 
सब 
कट्ठे ही 
रास्ता देखते है 
टीचर दीदी का 
जिसके सम्मान से 
गाव का लाला 
और सरपंच तक 
ईर्ष्या करते है
यही कही 
पढ़ाया जाता है 
पाठ 
समाजवाद का 
जिसे 
कागजो के शेर 
और कुर्सियों के कारीगर 
बदलने की कोशिश 
करते रहते है 
और हंसती रहती है 
उनकी टीचर दीदी 
नहीं टोकती उन्हें 
उनकी ऐसी 
नादानी पर !


Thursday, January 12, 2012

कुछ ख़त अजनबी पते पर अपनो के नाम ...



पहला ख़त 
मेरे गाव की मिटटी को 
जिससे ही पाया 
प्यार दुलार 
जहा अंकित हुवे 
स्वप्न 
आज भी 
अमिट है 
हे मातृभूमि !
सदा वंदनीया !
तुझे प्रणाम !
भूली नहीं होगी 
तू मुझे 
मैं भले भूल जाऊं 
स्वार्थी हो परवश |
जैसे कण कण धूल का 
सहेजा है 
सब अच्छा बुरा 
तूने 
आदि से अब तक 
मुझे भी विश्वास है 
तेरे आँचल में 
मेरी जगह 
आज भी खाली है |

दूसरा ख़त 
सभी बुजुर्गो को 
माता पिता 
दादियो नानियों 
और असंख्य रिश्तों को 
जिन्होंने 
मुझे मेरा नाम दिया 
आज भी 
पुकारता है कोई 
जब उस नाम से 
लगता है 
तुम्ही ने पुकारा है 
जब कोई हाथ 
छू जाता है 
शीश को 
लगता है 
तुम्ही ने दुलारा है
तुम्हारा प्यार 
मैं अब सबमे बाटता हूँ 
अकेले में 
भीतर ही 
ख़त सब तुम्हारे 
नित वाचता हूँ 
आशीष दो 
बनू सबका दुलारा 
और मिलु जब 
तुमसे कही ... कभी 
तो नाज हो तुमको 
तुम्हारा 
नालायक , नटखट ... राजदुलारा 

तीसरा ख़त 
अपने बाल सखा को 
जो छूट कर भी 
नहीं छूटे 
ना जाने कितनी बार 
माने फिर रूठे 
मना लेने का भरोसा 
अब भी है मुझको
बस रूठने का हक़ 
बनाए रखना 
यू ही 
स्मृतियों में आना रोज 
रौनक जीवन में 
सवाप्नो में ही 
सदा लगाए रखना |

चौथा ख़त 
गुरुजनों को 
सादर 
क्या कहूँ उनसे 
अभी 
कर्मरत हूँ 
लिख रहा हूँ 
भविष्य 
कठिन भी सरल भी 
सब आपका दिया है 
संबल हो 
छाया हो 
सूरज हो
दर्पण हो 
क्या नहीं हो 
मैं तो केवल 
कृतज्ञता ही 
अर्पण कर सका था 
कर सकूंगा 
सो करता हूँ |

पांचवा और 
अंतिम ख़त 
स्वप्नों के नाम 
चहरे भी 
नाम भी तमाम 
स्वप्नवत ही लगते है 
जीवन भी 
जोकुछ भी है 
पाया खोया 
जो पाना है 
मेल करता हूँ 
तो पाता हूँ 
स्वप्न सच ही होते है 
जैसे स्वपन होते है 
वैसे यकीं भी हो 
तो स्वप्न ही साकार होते है 

जैसे सब मेरे . मैं भी सबका 
सिया राम मय सब जग जानी ,
करहु प्रणाम जोरी जुग पानी ||

जय हो ! शुभ हो ! ...  लाभ भी हो 
अवश्य ही 
हां मगर शुभ हो !


Wednesday, January 11, 2012

अधूरे ख़त ...


तुझे लिखूं तो क्या !
तेरे कितने नाम लिखूं 
तू मेरा है 
सिर्फ मेरा तो नहीं 
तुझे क्या कहूँ 
इसी उलझन में 
कई ख़त 
अधूरे ही 
बिना नाम पता 
स्थगित / अनुत्तरित ही 
पड़े है ...कब से 
मानस के पटल पर ,
ह्रदय के डाकखाने में |


Tuesday, January 10, 2012

कागज़ की नाव है कविता


कविता 
जैसे कागज़ की नाव 
समय सागर में 
किनारे ढूंढ़ती सी 
तैरती रहती है 
नि:स्पृह ...
छूती है 
परम को सहज ही 
नहीं छूती 
समय को 
या समय ही 
तैरता है 
उस नाव के नीचे 
उसी परम-आदर का 
शब्दरूप है "गीता"

भगवत गीता रूपी कालजयी रचना करने वाले मात्र कवि श्री कृष्ण के परम चरणों में सादर समर्पित , उन्ही की रचना ... जय श्री कृष्ण !


Monday, January 9, 2012

एक नि:शब्द कविता के लिए !


सोचता हूँ 
एक कविता 
ऐसी भी लिखूं 
जिसमे 
कोई शब्द ना हों 
जो 
शोर ना करे 
सुनाई ना दे 
दिखाई ना दे 
जो शांत हो ...

जैसे 
बुद्ध है 
जैसे समय है 

नहीं 
वो घडी है 
जो टिक टिक है 
समय तो चुप है 
चलता है बेआवाज 
फिर भी 
 बदल देता है ... सब !

नहीं 
समय नहीं बदलता 
हम ही 
समय के सापेक्ष 
बदलते है ...

हां 
समय धुरी है 
काल्पनिक जगत-वृत्त की 
जिसके 
निकट दूर 
हम बटे है 
बट रहे है 
कण कण हो 
और दुरूह
और क्लिष्ट हो चले है 
बाहर भी 
भीतर भी ...

या तो 
टूट जाना होगा
इकाई तक 
या 
जुड़ना ही होगा 
इकाई तक 
तब तक 
शब्द  ही है 
हमारे बीच 
मैं भी 
कविता भी ...

बस तभी तक तो
सब शब्द ही है 
तभी तक |


Thursday, January 5, 2012

अंतर्युगांतरण


मोर मुकुट धर 
लकुटी धर 
वंशीधर 
पीताम्बर धर 
गिरिधर 
शंख चक्रधर 
लीलाधर नटनागर 
धरनीधर माधव 
केशव अनंतजित 
अनंतकर 
रथ धर 
रण कर 
रणछोड़ 
रणमध्ये गीता कर 
मोक्ष धर 
योगक्षेम कर 
ओंकार रचनाकर
युग धर 
युगांत कर 
हे योगी कर्मरत 
कर्मफल स्पृहारहितं  
कृष्णं वन्दे जगद्गुरुम 
ॐ नेति नेति कर 
वेद वेदान्त कर 
त्वं अखिलं विश्वं विभुं 
करुणाकरम  रघुवरं 
हे नीलाभ ज्योतिधरम 
श्रीधरं माधवं अच्युतम केशवं 
नमामि  त्वं अनंत धुतिम 
अद्भुतम निरतं निरामयम 
अनघम अगम करुनामयं 
त्वं तत तत्त्वं त्वं अखिलं जगतं 
सारं संभूतं उद्भवं अनन्तकम 
हे हरी: ! हे  हरी: !! हे हरी: !!!
पाहि माम , पाहिमाम प्रभू ...